यह तो हम सब जानते हैं कि मधुमक्खियां बहुत ही अच्छी परागणकर्ता होती हैं। बादाम और सेब जैसी फसलों के लिए वे परागणकर्ता के रूप में बहुत महत्वपूर्ण भी हैं। लेकिन जब कपास की फसल की बात आती है तो इसमें तितलियां अप्रत्याशित भूमिका निभाती हैं। हाल ही में हुआ एक अध्ययन बताता है कि मधुमक्खियां कपास के जिन फूलों पर नहीं जातीं, उन फूलों पर अन्य प्रकार के कीट और तितलियों के जाने से अमेरिका के टेक्सास प्रांत में ही प्रति वर्ष कपास की फसल में लगभग 12 करोड़ डॉलर का अतिरिक्त उत्पादन होता है।
तितलियां मधुमक्खियों की तरह अधिक संख्या में नहीं पाई जातीं और न ही वे उनकी तरह पराग इकट्ठा करने का प्रयास करती हैं। मधुमक्खियों का शरीर रोएंदार होता है जिन पर परागकण आसानी से चिपककर एक फूल से दूसरे तक पहुंच जाते हैं। दूसरी ओर, तितलियों के पैर पतले और लंबे होते हैं जो शायद ही कभी फूल के परागकोश से टकराते हैं। इसलिए जब भी परागण की बात आती है तो मकरंद पान करने वाली तितलियों को परागणकर्ता के रूप में नहीं देखा जाता।
युनिवर्सिटी ऑफ वरमॉन्ट की सारा कसर देखना चाहती थीं कि आवास और परागणकर्ता में विविधता किस तरह कृषि में योगदान देती है। उन्होंने नौ हैक्टर के कपास के खेत का तीन साल की अवधि में तीन बार अवलोकन किया और देखा कि कपास के फूलों का परागण करने में कौन-कौन से कीट शामिल हैं। किसी फूल पर किसी भी कीट के बैठते समय उन्होंने उसे नेट की मदद से पकड़ा और एथेनॉल से भरी शीशी में एकत्रित किया। इस तरह उन्होंने कुल 2444 कीट पकड़े और उनका अध्ययन किया। जैसी कि उम्मीद थी इन कीटों में अधिकतर परागणकर्ता तो मधुमक्खियां ही थीं। लेकिन इनके अलावा वहां की एक देशज मक्खी के साथ अन्य तरह की मक्खियां और तितलियां भी परागण करती पाई गर्इं। उन्होंने मधुमक्खियों की 40 प्रजातियां, मक्खियों की 16 प्रजातियां और तितलियों की 18 प्रजातियां परागणकर्ता के रूप में पहचानी।
कसर ने यह भी पाया कि विभिन्न तरह के परागणकर्ता फूलों पर दिन के अलग-अलग समय आते हैं। मक्खियां फूलों पर सबसे पहले और सुबह जल्दी आती हैं, संभवत: इसलिए कि वे खेतों में ही रहती हैं। उसके बाद फूलों पर तितलियां आती हैं। और जब दिन में अधिक गर्मी पड़ने लगती है तब मधुमक्खियां आती हैं। परागणकर्ताओं का फूलों पर आने का समय मायने रखता है क्योंकि कपास का फूल कुछ ही घंटों के लिए परागण योग्य होता है, और सूर्यास्त के साथ ही वह कुम्हला जाता है।
कसर ने यह भी पता लगाया कि विभिन्न परागणकर्ता कपास के पौधे के किन अलग-अलग भागों पर जाते हैं। उन्होंने पाया कि मधुमक्खियां भीतर की ओर (मुख्य तने के पास) खिले फूलों पर जाती हैं जबकि मक्खियां और तितलियां बाहर की ओर खिले फूलों पर जाती हैं। एग्रीकल्चर, इकोसिस्टम एंड एनवायरमेंट पत्रिका में प्रकाशित नतीजों के अनुसार मक्खियों और तितलियों की फूलों पर जाने की इस वरीयता और योगदान के कारण लगभग 50 प्रतिशत अधिक फूलों का परागण होता है।
मुख्य परागणकर्ता के अलावा अन्य कीटों द्वारा परागण करना परागण पूरकता कहलाता है। और परागण पूरकता सिर्फ कपास में ही नहीं बल्कि अन्य फसलों में भी पाई जाती है। बादाम के बागानों में जंगली मधुमक्खियां और पालतू मधुमक्खियां दोनों पेड़ के अलग-अलग हिस्से पर जाती हैं।
यह तो सही है कि परागण का अधिकांश काम मधुमक्खियां ही करती हैं लेकिन तितलियों और अन्य परागणकर्ताओं की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। कपास में लगभग 66 प्रतिशत परागण मधुमक्खियों द्वारा होता है लेकिन तितलियां और मक्खियां सिर्फ टेक्सास में कपास की फसल में प्रति वर्ष लगभग 12 करोड़ डॉलर का अतिरिक्त योगदान देती हैं। कसर को उम्मीद है कि ये निष्कर्ष किसानों को उपेक्षित परागणकर्ताओं और उनके आवास को संरक्षित करने के लिए प्रेरित करेंगे।
लोग तितलियों को इसलिए महत्व देते हैं क्योंकि वे सुंदर और आकर्षक लगती हैं, लेकिन कृषि में परागणकर्ता के रूप में भी वे महत्वपूर्ण हो सकती हैं। यदि ऐसे ही परिणाम अन्य फसलों में भी दिखे तो महत्वपूर्ण परागणकर्ताओं की सूची में तितलियां भी शामिल हो जाएंगी। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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