भारत में लगभग सितंबर 2020 से कोविड मामलों में निरंतर गिरावट से ऐसा माना जा रहा था कि अब महामारी का प्रभाव कम हो रहा है। लेकिन फरवरी माह के मध्य में देशव्यापी मामलों की संख्या 11000 प्रतिदिन से बढ़कर मार्च के अंतिम सप्ताह में 50,000 प्रतिदिन हो गई। इन बढ़ते मामलों से निपटने के लिए नए प्रतिबंधों के साथ टीकाकरण अभियान भी चलाया जा रहा है लेकिन इसकी गति धीमी है।
एंटीबॉडी सर्वेक्षण का निष्कर्ष था कि दिल्ली और मुंबई जैसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में लगभग झुंड प्रतिरक्षा प्राप्त कर ली गई है। महामारी के जल्द अंत की उम्मीद की जाने लगी थी लेकिन 700 ज़िलों में किए गए सर्वेक्षण में केवल 22 प्रतिशत भारतीय ही वायरस के प्रभाव में आए हैं। इस दौरान कई नियंत्रण उपायों में काफी ढील दी गई।
इस महामारी के दोबारा पनपने का कारण वायरस में उत्परिवर्तन बताया जा रहा है। 10,000 से अधिक नमूनों के जीनोम अनुक्रमण पर 736 में अधिक संक्रामक बी.1.1.7 संस्करण पाया गया है। यह संस्करण सबसे पहले यूके में पाया गया था। वर्तमान में वैज्ञानिक अत्यधिक मामलों वाले ज़िलों में पाए गए दो उत्परिवर्तित संस्करणों का अध्ययन कर रहे हैं – E484Q और L452L। ये दोनों उत्परिवर्तन प्रतिरक्षा प्रणाली से बच निकलने, एंटीबॉडी को चकमा देकर संक्रमण में वृद्धि के लिए ज़िम्मेदार माने जा रहे हैं लेकिन अभी स्पष्ट प्रमाण नहीं है कि नए मामलों में वृद्धि इन संस्करणों के कारण हुई है।
जलवायु की भूमिका को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार जिस तरह युरोप और अमेरिका में लोग ठंड के मौसम में अधिकांश समय घरों में बिताते हैं उसी तरह भारत के लोग गर्मियों में घरों के अंदर रहना पसंद करते हैं। बंद परिवेश में वायरस अधिक तेज़ी से फैलता है।
टीकाकरण के मामले में 5 प्रतिशत से कम भारतीयों को कम से कम टीके की पहली खुराक मिल पाई है। कोविशील्ड और कोवैक्सीन दोनों ही टीकों की दो खुराक आवश्यक है। वर्तमान में प्रतिदिन 20 से 30 लाख टीके दिए जा रहे हैं जिसे बढ़ाने के निरंतर प्रयास जारी हैं। पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के महामारी विज्ञानी गिरिधर बाबू के अनुसार सरकार को प्रतिदिन एक करोड़ टीके का लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए ताकि 30 करोड़ लोगों को जल्द से जल्द कवर किया जा सके।
हालांकि अधिकारियों के अनुसार टीकों की आपूर्ति कोई समस्या नहीं है लेकिन रॉयटर के अनुसार भारत ने घरेलू मांग को पूरा करने के लिए एस्ट्राज़ेनेका टीके के निर्यात पर रोक लगा दी है। भारत ने जनवरी से लेकर अब तक ‘टीका कूटनीति’ के तहत 80 देशों को 6 करोड़ खुराकों का निर्यात किया है। वैसे सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने चेतावनी दी है कि अमेरिका द्वारा निर्यात पर अस्थायी रोक से टीके के लिए आवश्यक कच्चे माल की कमी से टीका आपूर्ति प्रभावित हो सकती है।
देखा जाए तो टीका लगवाने वालों में मध्यम और उच्च वर्ग के लोगों की संख्या अधिक है और निम्न वर्ग के लोगों की संख्या काफी कम है। इसका मुख्य कारण जागरूकता में कमी और श्रमिकों द्वारा दिन भर के काम से समय न निकाल पाना हो सकता है। हालांकि मुंबई की झुग्गी बस्तियों में टीकाकरण शिविर लगाए जा रहे हैं लेकिन टीकाकरण के भय को दूर करने के लिए बड़े पैमाने पर समुदाय-आधारित कार्यक्रम चलाने की ज़रूरत है। टीकाकरण के प्रति शंका का एक कारण कोवैक्सीन को जल्दबाज़ी में दी गई मंज़ूरी भी है।
इसके अलावा परीक्षणों के दौरान सहमति के उल्लंघन के समाचार और अपर्याप्त पारदर्शिता ने भी लोगों के आत्मविश्वास को डिगाया है। मार्च में 29 डॉक्टरों और शोधकर्ताओं के एक समूह ने जनवरी में शुरू हुए टीकाकरण अभियान के बाद से 80 लोगों के मरने की सूचना दी है। यह मान भी लिया जाए कि मौतें टीके के कारण नहीं हुई हैं तो भी याचिकाकर्ताओं के अनुसार सरकार को इसकी जांच करके निष्कर्षों का खुलासा करना चाहिए। भारत ने अभी तक कोविशील्ड के उपयोग को रोका नहीं है जबकि क्लॉटिंग के गंभीर मामलों के चलते 20 युरोपीय देशों ने इसके उपयोग को रोक दिया है।
फिलहाल दूसरी लहर को रोकने के लिए कई राज्यों और शहरों में सामाजिक समारोहों पर रोक और अस्थायी तालाबंदी लगाई गई है। इसके साथ ही परीक्षण और ट्रेसिंग की प्रक्रिया को भी अपनाया जा रहा है। हरिद्वार में महाकुम्भ आयोजन में कई प्रतिबंध लगाए गए हैं। देखना यह कि पालन कितना हो पाता है। यहां 30 लाख से ज़्यादा लोगों के शामिल होने का अनुमान है।
एक बात तय है कि यह वायरस अभी भी मौजूद है और समय-समय पर नए संस्करणों के साथ हमें आश्चर्यचकित करता रहेगा। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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