खरपतवार व फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीट किसानों को अपने दुश्मन लगते हैं। इनका सफाया करने के लिए वे रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग करते हैं। लेकिन ये रसायन सिर्फ दुश्मनों का सफाया नहीं करते बल्कि वे मधुमक्खियों, मछलियों और क्रस्टेशियन जैसे निर्दोष जीवों को भी नुकसान पहुंचाते हैं।
हाल ही में एक विशाल अध्ययन ने हाल के दशकों में अमेरिका के किसानों द्वारा कीटनाशकों के उपयोग में हुए बदलाव के चलते ऐसे प्रभावों में हुए परिवर्तनों का विश्लेषण किया है। देखा गया कि कीटनाशकों के उपयोग में आए बदलाव से पक्षियों और स्तनधारियों की स्थिति बेहतर रही, जबकि इससे परागणकर्ता जीव व जलीय अकशेरुकी जीव बहुत बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।
खरपतवारों में खरपतवारनाशकों के खिलाफ प्रतिरोध विकसित हो जाने से किसानों द्वारा इन रसायनों का उपयोग बढ़ा और इसके चलते भूमि पर उगने वाले पौधों में भी विषाक्तता का प्रभाव बहुत बढ़ गया।
पिछले कुछ दशकों में संयुक्त राज्य अमेरिका में कीटनाशकों के उपयोग की मात्रा में लगभग 40 प्रतिशत की कमी आई है। लेकिन इसके साथ अधिक शक्तिशाली और विषाक्त रसायनों का उपयोग बढ़ा है। उदाहरण के लिए पायरेथ्रॉइड्स अत्यधिक प्रभावी कीटनाशक समूह है। इनकी बहुत कम मात्रा भी अत्यधिक ज़हरीली होती है और ये तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करते हैं। पूर्व में उपयोग किए जाने वाले कीटनाशक (जैसे ऑर्गेनोफॉस्फेट या कार्बेमेट) एक हैक्टर में कई किलोग्राम लगते थे, लेकिन पायरेथ्रॉइड्स की महज़ 6 ग्राम मात्रा पर्याप्त होती है।
पारिस्थितिकी-विषाक्तता विज्ञानी रॉल्फ शुल्ज़ और उनके साथियों ने वर्ष 1992 से 2016 तक स्वयं किसानों द्वारा कीटनाशकों के उपयोग के बारे में दी गई जानकारी के अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण डैटा से शुरुआत की। फिर उन्होंने उपयोग किए गए सभी यौगिकों (381 रसायनों) के लिए अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (ईपीए) द्वारा निर्धारित विषाक्तता के स्तर (जितनी मात्रा में कोई पदार्थ या रसायन वनस्पतियों या वन्यजीवों को नुकसान पहुंचा सकता है) और खेतों में उपयोग किए गए प्रत्येक कीटनाशक की मात्रा की तुलना की और कुल प्रयुक्त विषाक्तता पता की।
साइंस पत्रिका में प्रकाशित नतीजों के अनुसार संभवत: पुराने कीटनाशकों के उपयोग में आई कमी के कारण 1992 से 2016 तक पक्षियों और स्तनधारियों के लिए कुल विषाक्तता में 95 प्रतिशत से अधिक की कमी आई है। मछलियों के लिए विषाक्तता स्तर में एक-तिहाई की कमी आई है। मछलियों के लिए विषाक्तता में होने वाली कमी का प्रतिशत कम दिखता है क्योंकि मछलियां पायरेथ्रॉइड्स के प्रति अधिक संवेदनशील हैं और खेतों में इनका उपयोग बढ़ा है। लेकिन पायरेथ्रॉइड्स की वजह से जलीय अकशेरुकी जीवों (जैसे प्लवक और कीट-लार्वा) के लिए विषाक्तता दुगनी हो गई है। इसके अलावा निओनिकोटिनॉइड्स कीटनाशक ने मधुमक्खियों और भौंरों जैसे परागणकर्ताओं के लिए विषाक्तता का जोखिम दुगना कर दिया है। इसी तरह के नतीजे एक छोटे अध्ययन में भी देखने को मिले थे, जिसके अनुसार इस बदलाव से कशेरुकी जीव कम प्रभावित हुए लेकिन अकशेरुकी जीवों को बहुत क्षति पहुंची है।
कुछ कीटनाशकों और प्रजातियों के लिए वास्तविक प्रभाव का अनुमान लगाना मुश्किल है, क्योंकि पौधों और जीवों को सिर्फ रसायन ही प्रभावित नहीं करते बल्कि मौसम या वर्ष का समय जैसे कई अन्य कारक भी होते हैं। यह देखने के लिए कि सिर्फ कीटनाशकों ने जलीय क्रस्टेशियन और कीटों को किस तरह प्रभावित किया, शोधकर्ताओं ने संयुक्त राज्य अमेरिका की 231 झीलों और नदियों का विषाक्तता सम्बंधी डैटा खंगाला। जब इसकी तुलना उन्होंने उन क्षेत्रों के आसपास उपयोग किए गए कीटनाशकों की मात्रा के साथ की तो उन्होंने पाया कि इनके बीच काफी सम्बंध है।
जीवों के अलावा विषाक्तता से पौधे भी प्रभावित हुए हैं। 2004 के बाद से थलीय पौधों में खरपतवारनाशी रसायनों के कारण आई कुल विषाक्तता दुगनी हुई है। इस विषाक्तता को बढ़ाने में सबसे अधिक योगदान ग्लायफोसेट नामक खरपतवारनाशी का है। कुछ खरपतवारों ने ग्लायफोसेट के खिलाफ प्रतिरोध विकसित कर लिया, और किसान उनके सफाए के लिए अधिकाधिक मात्रा में ग्लायफोसेट का छिड़काव करने लगे। इससे मेड़ों पर उगने वाले पौधों और उन पर आश्रित जीवों के लिए खतरा बढ़ गया।
कीटनाशकों का उपयोग कम करने के लिए मक्का की एक किस्म को जेनेटिक रूप से परिवर्तित करके उसमें कीटनाशक रसायन बीटी जोड़ा गया था। इसके चलते विषाक्त रसायनों का उपयोग कम होना था लेकिन देखा गया कि पिछले एक दशक में बीटी मक्का और सामान्य मक्का दोनों में डाली गई विषाक्तता में प्रति वर्ष 8 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
शुल्ज़ को उम्मीद है कि ये नतीजे नीति निर्माताओं और अन्य लोगों को कीट और खरपतवार नियंत्रण की जटिलता पर और जंगली प्रजातियों को बेवजह होने वाली क्षति को कम करने के लिए सोचने में मदद करेंगे। अमेरिका में कीटनाशक के उपयोग के पैटर्न और विषाक्तता सम्बंधी डैटा से बाकी दुनिया को सबक लेना चाहिए, जहां कीट नियंत्रण के लिए पर्यावरण हितैषी तरीकों की बजाय कीटनाशकों का उपयोग किया जा रहा है।
कीटनाशक उपयोग सम्बंधी फैसले इस पर भी निर्भर करते हैं कि किसी समाज या समुदाय के लिए कौन-सी प्रजातियां महत्व रखती हैं। जैसे युरोपीय संघ में नियामकों ने नियोनिकोटिनॉइड्स के उपयोग को प्रतिबंधित कर दिया ताकि परागणकर्ताओं को नुकसान न हो। लेकिन संभवत: अब किसान अन्य कीटनाशकों का उपयोग करेंगे जो अन्य प्रजातियों को जोखिम में डाल सकता है, या पैदावार घट जाएगी और खाद्यान्न की कीमतें आसमान छूएंगी। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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