वर्ष 2010 में क्रिस्टोफर नोलन द्वारा निर्देशित एक फिल्म आई थी इंसेप्शन। इसमें लियोनार्डो डीकैप्रियो दूसरों के सपनों में जाकर, उनसे बातचीत कर उनसे खुफिया जानकारी उगलवाते दिखते हैं। और यह फिल्मी कल्पना अब हकीकत बनने की ओर कदम बढ़ाती दिखती है।
शोधकर्ताओं ने पहली बार सवालों के माध्यम से सपना देखने वाले उन लोगों के साथ सपनों में संवाद साधा है जिन्हें ये पता होता है कि वे सपना देख रहे हैं। ऐसे लोगों को ल्यूसिड ड्रीमर कहते हैं। चार अलग-अलग प्रयोगशालाओं में 36 प्रतिभागियों पर किए गए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि लोग सोते समय बाहरी परिवेश से संकेत ग्रहण कर सकते हैं और उन पर प्रतिक्रिया दे सकते हैं।
यह अध्ययन नींद की मूलभूत परिभाषा को भी चुनौती देता है, जो कहती है कि नींद एक ऐसी अवस्था है जिसमें मस्तिष्क का बाहरी परिवेश से संपर्क नहीं रहता और नींद में मस्तिष्क अपने आस-पास के परिवेश से अनभिज्ञ रहता है।
ल्यूसिड ड्रीमिंग एक ऐसी अवस्था है जिसमें सपने में व्यक्ति को एहसास होता है कि वह सपना देख रहा है, और अपने सपनों पर उसका कुछ हद तक नियंत्रण भी होता है। ल्यूसिड ड्रीमिंग का उल्लेख सबसे पहले चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में ग्रीक दार्शनिक अरस्तू के लेखन में मिलता है। और 1970 के बाद से वैज्ञानिक इस पर अध्ययन करते रहे हैं। देखा गया है कि प्रत्येक दो में से एक व्यक्ति को कम से कम एक बार तो ल्यूसिड ड्रीमिंग का अनुभव होता है, और लगभग 10 प्रतिशत लोगों को महीने में एक या उससे अधिक बार ल्यूसिड ड्रीमिंग अनुभव होता है। हालांकि ल्यूसिड ड्रीमिंग दुर्लभ है लेकिन प्रशिक्षण देकर इसके अनुभव को बढ़ाया जा सकता है।
पूर्व में कुछ अध्ययनों में रोशनी, बिजली के झटकों और ध्वनियों के माध्यम से लोगों के सपनों में प्रवेश कर उनसे संवाद करने की कोशिश की गई थी, लेकिन उनमें संपर्क करने पर लोगों की तरफ से बहुत कम प्रतिक्रिया मिली थी, और उनसे जटिल जानकारियां या सूचनाएं भी नहीं हासिल हो सकी थीं।
फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड और संयुक्त राज्य अमेरिका स्थित चार प्रयोगशालाओं के दल ने पूर्व में हुए इन अध्ययनों को आगे बढ़ाने की सोची, जिसमें उन्होंने सवालों-संकेतों की मदद से सपनों में लोगों से दो-तरफा संवाद स्थापित किया। इसके लिए उन्होंने 36 प्रतिभागी चुने। इनमें से कुछ प्रतिभागियों को पहले ही ल्यूसिड ड्रीमिंग का अनुभव था, और कुछ को नहीं लेकिन उन्हें हफ्ते में कम से कम एक सपना याद रहता था।
शोधकर्ताओं ने सभी प्रतिभागियों को ल्यूसिड ड्रीमिंग से परिचित कराया और ध्वनियों, रोशनियों या उंगली की थाप के माध्यम प्रतिभागियों को सपना देखने के एहसास से वाकिफ होने के लिए प्रशिक्षित किया।
अध्ययन में अलग-अलग समय पर नींद के सत्र रखे गए थे। कुछ सत्र रात के थे और तो कुछ सत्र अल-सुबह रखे गए थे। प्रतिभागियों के साथ सपनों में संवाद करने के लिए चारों प्रयोगशालाओं ने अलग-अलग तरीकों का इस्तेमाल किया। प्रतिभागियों को कहा गया कि जब उन्हें एहसास हो जाए कि वे सपनों में प्रवेश कर गए हैं तो तय संकेतों (जैसे आंखो को बार्इं ओर तीन बार घुमाकर, चेहरा घुमाकर) के माध्यम से इसका संकेत दे दें।
प्रतिभागियों के नींद में पहुंचने पर वैज्ञानिकों ने उनके मस्तिष्क की गतिविधि, आंखों की गति और चेहरे की मांसपेशियों के संकुचन की निगरानी ईईजी हेलमेट की मदद से की। नींद के कुल 57 सत्रों में से, छह लोगों ने 15 बार यह संकेत दिए कि वे सपनों में प्रवेश कर गए हैं। इसके बाद शोधकर्ताओं ने प्रतिभागियों से कुछ सवाल किए जिनके जवाब या तो हां या ना में दिए जा सकते थे, या गणित के कुछ सवाल पूछे, जैसे आठ में से छह गए तो कितने बचे। इनका जवाब प्रतिभागियों को कुछ तय संकेतों के माध्यम से देना था – जैसे मुस्कराकर या त्यौरियां चढ़ा कर, या गणित का सवाल हल करने पर आए जवाब के बराबर संख्या में आंखों को हिलाकर वगैरह।
शोधकर्ताओं ने कुल 158 सवाल पूछे। करंट बायोलॉजी में प्रकाशित निष्कर्ष बताते हैं कि शोधकर्ताओं को 18.6 प्रतिशत सही जवाब मिले। 3.2 प्रतिशत सवालों के गलत जवाब मिले; 17.7 प्रतिशत जवाब स्पष्ट नहीं थे और 60.8 प्रतिशत सवालों के कोई जवाब नहीं मिले। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह संख्या दर्शाती है कि मुश्किल ही सही, लेकिन नींद में किसी व्यक्ति से संपर्क साधा जा सकता है, और दो-तरफा संवाद किया जा सकता है।
प्रतिभागियों के जागने के बाद उनसे उनके सपनों का वर्णन भी पूछा गया। कुछ प्रतिभागियों को पूछे गए सवाल उनके सपनों के हिस्से के रूप में याद रहे थे। एक प्रतिभागी को लगा था कि सपने में सवाल कोई कार रेडियो पूछ रहा है, तो एक अन्य प्रतिभागी को सवाल किसी सूत्रधार की आवाज़ में सुनाई पड़ा।
शोधकर्ताओं का कहना है कि यह प्रयोग सपनों का अध्ययन करने का एक बेहतर तरीका प्रदान करता है। अब तक सपनों के बारे में जानने का आधार सपना देखने वाले द्वारा दिए गए विवरण थे, जिनमें गड़बड़ की उम्मीद रहती थी। उम्मीद है कि भविष्य में इस तकनीक से सदमे, अवसाद से गुज़र रहे लोगों के सपनों को प्रभावित कर इस स्थिति से उबरने में उनकी मदद की जा सकेगी। इसके अलावा सपनों में ‘संवाद’ कर लोगों की समस्याओं को हल करने, नए कौशल सीखने या किसी रचनात्मक विचार को लाने में भी मदद मिल सकेगी। वैसे यह तकनीक व्यक्ति द्वारा दिए गए विवरण की पूरक ही है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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