गत 28 जनवरी को पॉल जे. क्रटज़ेन ने 87 वर्ष की आयु में इस दुनिया से रुखसती ले ली। क्रटज़ेन ने ही हमें इस बात से अवगत कराया था कि वायुमंडल में मौजूद प्रदूषक पृथ्वी की ओज़ोन परत को क्षति पहुंचाते हैं। इस काम के लिए उन्हें 1995 में दो अन्य शोधकर्ताओं के साथ रसायन विज्ञान के नोबेल पुरस्कार से नवाज़ा गया था। पृथ्वी पर जैविक, रासायनिक और भूगर्भीय गतिविधियों पर मनुष्य के वर्चस्व के मद्देनज़र इस युग के लिए उन्होंने एक नया शब्द ‘एंथ्रोपोसीन’ गढ़ा था। ।
वर्ष 2000 में मेक्सिको में हुए एक सम्मेलन में क्रटज़ेन ने सबसे पहले एंथ्रोपोसीन शब्द का उपयोग किया था और बताया था कि हम ‘एंथ्रोपोसीन युग’ में रह रहे हैं। इस शब्द को तुरंत ही लोगों ने अपना लिया, और इस शब्द ने कई विषयों में बहस छेड़ दी।
पृथ्वी पर एंथ्रोपोसीन युग (या मानव वर्चस्व का युग) की शुरुआत बीसवीं सदी के मध्य से मानी जाती है, जब से मनुष्यों ने पृथ्वी पर मौजूद संसाधनों का अंधाधुंध दोहन शुरू किया। इस विचार के ज़रिए क्रटज़ेन ने पृथ्वी की जलवायु परिवर्तन की स्थिति और पर्यावरणीय दबावों पर अपनी चिंता जताई थी।
क्रटज़ेन का जन्म 1933 में एम्स्टर्डम में हुआ था। सिविल इंजीनियरिंग की शिक्षा हासिल करने के बाद 1960 के दशक में उन्होंने एक कंप्यूटर प्रोग्रामर के रूप में काम करते हुए स्टॉकहोम विश्वविद्यालय से मौसम विज्ञान का अध्ययन किया। स्नातक शिक्षा के दौरान उन्होंने अपने प्रोग्रामिंग और वैज्ञानिक कौशल दोनों का उपयोग कर समताप मंडल का एक कंप्यूटर मॉडल बनाया था। वायुमंडल में विभिन्न ऊंचाइयों पर ओज़ोन के वितरण समझाते हुए उन्होंने पाया कि नाइट्रोजन के ऑक्साइड्स ओज़ोन को क्षति पहुंचाने वाली अभिक्रियाओं में उत्प्रेरक की भूमिका निभाते हैं। 1970 के दशक की शुरुआत में जब सुपरसोनिक विमानों द्वारा उत्सर्जित नाइट्रोजन ऑक्साइड्स के स्तर पर चर्चा शुरू हुई, तब क्रटज़ेन ने पाया कि मानवजनित उत्सर्जन समताप मंडल में मौजूद ओज़ोन परत को नुकसान पहुंचाता है। उसी समय दो अन्य शोधकर्ता मारियो जे. मोलिना और एफ. शेरवुड रॉलैंड ने पाया था कि प्रणोदक, विलायकों और रेफ्रिजरेंट के रूप में इस्तेमाल किए जाने वाले क्लोरीन युक्त यौगिक भी ओज़ोन परत के ह्रास में योगदान देते हैं। 1985 में वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिक के ऊपर ओज़ोन परत में एक ‘सुराख’ पाया था।
क्रटज़ेन 1970-1980 के दशक में ओज़ोन ह्रास पर होने वाली सार्वजनिक बहसों में काफी सक्रिय रहे। 1980 में उन्होंने जर्मनी के मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर केमिस्ट्री में निदेशक का पदभार संभाला। वे पृथ्वी के वायुमंडल की सुरक्षा के लिए निवारक उपायों को ध्यान में रखकर गठित एक जर्मन संसदीय आयोग के सदस्य भी थे। इस आयोग द्वारा वर्ष 1989 में प्रकाशित रिपोर्ट ने वातावरण और जलवायु नीतियों का प्रारूप बनाने को दिशा दी। क्रटज़ेन ने 1987 में मॉन्ट्रियल संधि की नींव रखने में मदद की, जिसके तहत हस्ताक्षरकर्ता देश ओज़ोन-क्षयकारी पदार्थों के इस्तेमाल को धीरे-धारे कम करते हुए खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इस संधि के तहत हानिकारक क्लोरीन यौगिकों पर प्रतिबंध लगा, सुपरसोनिक विमान सीमित हुए। नतीजतन, ओज़ोन परत में अब कुछ सुधार दिखाई दे रहे हैं।
नाभिकीय जाड़े के बारे में सर्वप्रथम आगाह करने वाले क्रटज़ेन ही थे। 1970 के दशक में वे कोलोरेडो स्थित नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक रिसर्च के लिए काम कर रहे थे, तभी उन्होंने यूएस नेशनल ओशेनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन के साथ मिलकर समताप मंडलीय अनुसंधान कार्यक्रम की शुरुआत की थी। इसी समय उनकी रुचि निचले वायुमंडल (क्षोभमंडल) और जलवायु परिवर्तन के रसायन विज्ञान को जानने में बनी, और उन्होंने तब वायु प्रदूषण के स्रोतों की पड़ताल की। उन्होंने पाया कि अधिकतर ऊष्णकबंधीय इलाकों में वायु प्रदूषण का स्रोत कृषि और वनों की कटाई से निकलने वाले बायोमास का अत्यधिक उपयोग है। और उन्होंने बताया कि क्षोभमंडल में इस अत्यधिक प्रदूषण का प्रभाव ऊष्णकटिबंधीय इलाकों और दक्षिणी गोलार्ध में अधिक दिखता है, जहां अन्य मानवजनित प्रदूषण (जैसे जीवाश्म र्इंधन का उपयोग) उत्तरी औद्योगिक देशों की तुलना में कम था।
इसने क्रटज़ेन को आग के तूफानों का अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया, जो नाभिकीय युद्ध के कारण शुरू हो सकते हैं। ऐसी आग से निकलने वाले धुएं में उपस्थित कार्बन-कण सूर्य के प्रकाश से ऊष्मा अवशोषित करते हैं, और धुएं को ऊपर उठाते हैं। इस तरह यह धुंआ पृथ्वी के ऊपर लंबे समय तक बना रहेगा और पृथ्वी की सतह को ठंडा करेगा। 1982 में उन्होंने जॉन बर्क के साथ लिखे एक लेख ‘ट्वाइलाइट एट नून’ (दोपहर में धुंधलका) में नाभिकीय शीतकाल के बारे में चेताया था। इसी से प्रेरित होकर सोवियत संघ के प्रमुख मिखेल गोर्बाचेव ने 1987 में अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के साथ परमाणु हथियार-नियंत्रण समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।
वर्ष 2000 में औपचारिक सेवानिवृत्ति के बाद क्रटज़ेन ने अपना काम जारी रखा। 2006 में उन्होंने जिओइंजीनियरिंग में अनुसंधान का आव्हान किया; उनका कहना था कि यदि उत्सर्जन थामने के प्रयास असफल रहे तो यही एकमात्र विकल्प बचेगा। ऐसे एक विकल्प पर विचार हुआ था: सल्फर डाइऑक्साइड को समताप मंडल में छोड़ा जाए, जो वहां सल्फेट में परिवर्तित हो जाएगी। ये सल्फेट कण पृथ्वी को सूरज से बचाएंगे और ग्रीनहाउस प्रभाव का मुकाबला करेंगे। क्रटज़ेन इस विचार के समर्थक नहीं थे, लेकिन वे इस तरह के प्रयोग करके देखना चाहते थे। आज, कुछ लोग इस विचार पर काम कर रहे हैं, तो कुछ अन्य इसे उत्सर्जन पर नियंत्रण की दिशा से भटकाव मानते हैं।
क्रटज़ेन एक रचनात्मक वैज्ञानिक और जोशीले व्यक्ति थे। कई वैज्ञानिक और सार्वजनिक बहसों में मानवजनित चुनौतियों को वे सामने लाए। कोविड-19 महामारी भी एंथ्रोपोसीन-जनित है। क्रटज़ेन की अपेक्षा होती कि हम विज्ञान, समाज और पृथ्वी को लेकर ज़्यादा ज़िम्मेदारी से काम करें। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।