मानव इतिहास में दर्ज सबसे जानलेवा बीमारियों के बारे में सोचें तो ब्लैक डेथ, प्लेग, स्पैनिश फ्लू और कोविड-19 की ओर ध्यान जाता है। इन जानलेवा महामारियों में लाखों लोग मारे गए। लेकिन आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि इन महामारियों की तुलना में टीबी से होने वाली मौतों की संख्या अधिक है। पिछले 2000 सालों में टीबी के कारण एक अरब से अधिक लोग मारे गए हैं, और वर्तमान में हर साल दुनिया भर में लगभग 15 लाख लोग टीबी की वजह से मारे जाते हैं। लेकिन यह रहस्य लंबे समय से बना हुआ है कि टीबी कब और कैसे इतनी घातक हो गई।
हाल ही में शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि किस तरह टीबी ने लौह युगीन युरोप में रहने वाले लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली में बदलाव किया था। दरअसल दो साल पूर्व युनिवर्सिटी ऑफ पेरिस के शोधकर्ता गैसपर्ड कर्नर ने पाया था कि जिन लोगों में TKY2 नामक प्रतिरक्षा जीन के P1104A नामक दुर्लभ संस्करण की दो प्रतियां होती हैं उन लोगों के टीबी से गंभीर रूप से संक्रमित होने की संभावना अधिक होती है। इसके बाद पॉश्चर इंस्टीट्यूट के साथ उन्होंने क्वीन्टाना-मर्सी के नेतृत्व में पिछले 10,000 साल के 1013 युरोपीय लोगों के जीनोम का विश्लेषण कर यह पता लगाया था कि यह दुर्लभ जीन संस्करण कब-कब और कितने अधिक लोगों में उभरा। इस दौरान शोधकर्ताओं को विचार आया कि इसकी मदद से यह भी पता लगाया जा सकता है कि प्रतिरक्षा जीन टीबी के साथ-साथ किस तरह सह-विकसित हुआ है।
टीबी का सबसे पहला प्रमाण कृषि के आविष्कार के तुरंत बाद, लगभग 9000 साल पहले के मध्य-पूर्व क्षेत्र में दफन कंकालों में मिलता है। लेकिन टीबी बैक्टीरिया का मौजूदा संस्करण – माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस – जो लोगों के लिए घातक साबित हो सकता है, वह लगभग 2000 साल पहले उभरा था, जब लोग पालतू जानवरों के साथ घनी बस्तियों में रहा करते थे। ये बस्तियां अक्सर टीबी बैक्टीरिया के भंडार की तरह काम करती थीं।
अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि प्रतिरक्षा जीन का P1104A उत्परिवर्तन प्राचीन है। यह संस्करण लगभग 8500 साल पूर्व एनाटोलिया (आजकल का तुर्की) में रहने वाले एक किसान के डीएनए में पाया गया है और उनकी गणना के मुताबिक यह उत्परिवर्तन कम से कम 30,000 साल पुराना है। जब एनाटोलिया के किसानों और यमनाया चरवाहों ने मध्य युरोप का रुख किया तो उन्होंने जीन के इस संस्करण को फैलाया। अध्ययन में पाया गया कि लगभग 5000 साल पहले तक यह संस्करण लगभग तीन प्रतिशत युरोपीय आबादी में था। फिर कांस्य युग के मध्य, लगभग 3000 साल पहले तक, यह युरोप के लगभग 10 प्रतिशत लोगों में फैल चुका था। लेकिन इसके बाद फिर इसके प्रसार में कमी आई और तब से अब तक यह लगभग 2.9 प्रतिशत युरोपीय आबादी में दिखाई देता है।
प्राचीन डीएनए अध्ययनों के अनुसार, यह कमी उस दौरान आई जब टीबी का मौजूदा घातक संस्करण उभर रहा था। शोधकर्ताओं ने कंप्यूटर सिमुलेशन की मदद से यह भी पता किया कि कैसे आबादी के आकार और लोगों के प्रवास ने जीन के प्रसार की आवृत्ति को प्रभावित किया है। उन्होंने बताया कि जिन लोगों में प्रतिरक्षा जीन के दुर्लभ संस्करण की दो प्रतियां थीं उनमें से लगभग 20 प्रतिशत लोगों की जान टीबी के कारण गई थी या वे इससे गंभीर रूप से बीमार हुए थे। इनमें से कुछ ही लोगों की संतानें कांस्य युग के बाद तक जीवित रह सकी थीं। दी अमेरिकन जर्नल ऑफ ह्यूमन जेनेटिक्स में शोधकर्ता बताते हैं कि नतीजतन, इस घातक जीन को कम करने के लिए प्राकृतिक चयन ने तेज़ी और दृढ़ता से काम किया और इस संस्करण में कमी आई। यदि मनुष्य में इस जीन संस्करण की दो प्रतियां होंगी और साथ ही वहां टीबी फैला होगा तो यह आबादी के लिए जोखिमपूर्ण होगा।
यह अध्ययन तो यह समझने के लिए मात्र शुरुआत है कि हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली विशिष्ट रोगजनकों के साथ किस तरह विकसित होती है। बहरहाल कुछ शोधकर्ता चिंता जताते हैं कि यह जानने की तत्काल आवश्यकता है कि P1104A संस्करण दुनिया में कितना फैला है। टीबी वाले देशों जैसे भारत, इंडोनेशिया, चीन और अफ्रीका के कुछ हिस्सों की आबादी में तो यह संस्करण दुर्लभ है, लेकिन यूके बायोबैंक डैटाबेस के अध्ययन में देखा गया है कि प्रत्येक 600 में से एक ब्रिटिश व्यक्ति में इस संस्करण की दो प्रतियां उपस्थित हैं। यदि वहां टीबी का प्रकोप होगा तो वे गंभीर संक्रमण या मृत्यु के अत्यधिक जोखिम में होंगे। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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