यदि जीवविज्ञानी यह जानना चाहते हैं कि किसी स्थान के निवासी जीव कौन-से हैं, तो इसके लिए जल्द ही शमल गुबरैले इसमें सहायक हो सकते हैं। इन गुबरैलों की विशेषता है कि ये अपना पोषण काफी हद तक अन्य जंतुओं की विष्ठा से प्राप्त करते हैं। हाल ही में हुए अध्ययन में इन गुबरैलों की आंत में स्तनधारी जीवों के डीएनए पाए गए हैं, जो जैव-विविधता को सूचीबद्ध करने में मदद कर सकते हैं।
पर्यावरणीय डीएनए (eDNA) से किसी क्षेत्र की जैव-विविधता पता करने का विचार कुछ ही दशक पुराना है। इसमें वैज्ञानिक धूल, मिट्टी और विशेषकर पानी में जीवों के शरीर की त्वचा के अवशेष, म्यूकस और शरीर के अन्य तरल पदार्थ खोजते हैं। फिर इन नमूनों में वे पहचानने योग्य डीएनए ढूंढते हैं ताकि पता किया जा सके कि उस क्षेत्र में कौन-से जंतु रहते हैं।
समुद्री वैज्ञानिकों ने eDNA तकनीक का अधिक उपयोग किया है क्योंकि डीएनए पानी में कई दिनों तक बना रह सकता है और धूल या मिट्टी की तुलना में पानी से डीएनए आसानी से और अधिक मात्रा में निकाला जा सकता है। लेकिन भूमि पर eDNA तकनीक (या डीएनए बारकोडिंग) का उपयोग कम ही हो पाता है। वैसे कुछ वैज्ञानिक जोंक और मच्छरों की आंतों के रक्त से उनके मेज़बान जीवों का डीएनए पता करने की कोशिश करते हैं। दिक्कत यह है कि जोंक का इलाका बहुत सीमित होता है और मच्छरों को पकड़ना अक्सर मुश्किल होता है।
लंदन की क्वीन मैरी युनिवर्सिटी की आणविक जीव विज्ञानी रोज़ी ड्रिंकवाटर ने डीएनए-समृद्ध शमल गुबरैलों के साथ परीक्षण करने का विचार बनाया। स्कारेबैडी कुल के ये अकशेरुकी जीव अन्य जानवरों के मल पर निर्भर होते हैं। शमल गुबरैले अंटार्कटिका को छोड़कर हर महाद्वीप पर पाए जाते हैं और ये रेगिस्तान से लेकर जंगलों जैसी हर जगह पर रह सकते हैं।
ड्रिंरकवाटर और उनके साथियों ने बोर्नियो के जंगल से कैथार्सियस जीनस के अंगूठे की साइज़ के 24 शमल गुबरैलों को पकड़ा, और उनकी आंत में मिले डीएनए का अनुक्रमण किया। फिर शोधकर्ताओं ने इसकी तुलना बोर्नियो के जंगली जानवरों के जीनोम से की। बायोआर्काइव प्रीप्रिंट में शोधकर्ताओं ने बताया है कि आंत से प्राप्त डीएनए दढ़ियल सूअर, सांभर, मंटजेक (एक किस्म का हिरन), छोटा कस्तूरी मृग, साही और उस इलाके में पाए जाने वाले अन्य सभी जानवरों के डीएनए से मेल खाते हैं। उन्होंने एक दुर्लभ धारीदार उदबिलाव के डीएनए की भी पहचान की लेकिन इसका अनुक्रमण इतना स्पष्ट नहीं था कि इसकी पुष्टि की जा सके। इसके अलावा उन्हें आंत में प्रचुर मात्रा में मानव डीएनए भी मिले जो ‘चारा’ खिलाने वाले लोगों के नहीं थे; संभवत: ये डीएनए निकट स्थित ताड़ के बागानों में काम करने वाले लोगों के थे। इन परिणामों से लगता है कि शमल गुबरैलों की मदद से eDNA तकनीक का पानी के अलावा अन्यत्र भी इस्तेमाल किया जा सकेगा।
वैसे अभी इस अध्ययन की समकक्ष-समीक्षा की जानी बाकी है, और विभिन्न स्थानों और गुबरैलों के लिए इस तरीके की पुष्टि होना भी बाकी है। फिर भी शमल गुबरैले eDNA तकनीक में मददगार साबित हो सकते हैं।
अन्य शोधकर्ताओं के मुताबिक यह तरीका अच्छा तो है, लेकिन इसके लिए काफी गुबरैलों की अनावश्यक बलि चढ़ानी पड़ेगी। बेहतर होगा कि इसकी बजाय मिट्टी या तलछट आधारित गैर-हिंसक eDNA तकनीकें विकसित की जाएं। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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