बिना बालों वाले नग्न मोल रैट दिखने में भले ही आकर्षक न लगें लेकिन इनकी विचित्र खूबियां वैज्ञानिकों को खूब आकर्षित करती हैं। जैसे इन्हें शायद ही कभी कैंसर होता है, ये अन्य कृंतकों की तुलना में काफी लंबे समय तक जीवित रहते हैं, और इनकी दर्द सहन करने की क्षमता भी काफी अधिक होती है। ऐसे ही इनकी एक विशेषता यह भी है कि अन्य स्तनधारियों के विपरीत, ये नग्न मोल रैट मधुमक्खियों-तितलियों की तरह कॉलोनी बनाकर रहते हैं। कॉलोनी में एक रानी होती है और बाकी सदस्य मज़दूर। और अब, शोधकर्ताओं ने पाया है कि मनुष्यों और कई पक्षियों की तरह नग्न मोल रैट की प्रत्येक कॉलोनी की अपनी बोली होती है, जो समूह की रानी द्वारा जीवित रखी जाती है। कृंतकों में ध्वनि-उच्चारण सीखने यह का पहला प्रमाण मिला है।
वैज्ञानिक यह तो जानते थे कि नग्न मोल रैट (हेटरोसेफेलस ग्लैबर) लगभग अंधे और (अधिकांश आवृत्तियों के लिए) बहरे होते हैं, और ये आपस में संवाद उच्च तारत्व (पिच) में किकिया कर करते हैं। लेकिन इस बारे में अब तक पता नहीं था कि उनका ध्वनि-उच्चारण कितना जटिल होता है?
यह जानने के लिए मैक्स डेलब्रुक सेंटर फॉर मॉलीक्यूलर मेडिसिन की न्यूरोलॉजिस्ट एलिसन बार्कर और उनके साथियों ने अध्ययन की शुरुआत में नग्न मोल रैट के मेलजोल के समय उत्पन्न की जाने वाली ध्वनियों को रिकॉर्ड किया, जो एक धीमी किकियाने की ध्वनि होती है। इस तरह दो वर्षों में उन्होंने जर्मनी और दक्षिण अफ्रीका की प्रयोगशालाओं की सात कॉलोनियों से 166 नग्न मोल रैट की 36,000 से अधिक किकियाने की ध्वनियों को रिकॉर्ड कर लिया।
ध्वनियों को समझने के लिए टीम ने एक ऐसा सॉफ्टवेयर बनाया जो ध्वनियों को उनकी ध्वनिक विशेषताओं के आधार पर वर्गीकृत करता था। यह सॉफ्टवेयर ध्वनि तरंगों के पैटर्न और ध्वनि तारत्व के आधार पर प्रत्येक नग्न मोल रैट की आवाज़ पहचान सकता था। इसकी मदद से पता चला कि प्रत्येक कॉलोनी का किकियाने का अपना विशिष्ट तरीका होता है। साइंस पत्रिका में शोधकर्ताओं ने बताया है कि जब उन्होंने यही ध्वनियां कुछ नग्न मोल रैट को सुनाई तो उन्होंने उन ध्वनियों पर अधिक प्रतिक्रिया दी जो उनके अपने समूह की थीं।
फिर शोधकर्ताओं ने प्रत्येक कॉलोनी की बोली में एक कृत्रिम ध्वनि बनाई और यह सुनिश्चित किया कि नग्न मोल रैट ने अपनी कॉलोनी की बोली पर प्रतिक्रिया दी थी या परिचित आवाज़ के प्रति? जब कृत्रिम ध्वनि इन कृंतकों को सुनाई गई तो पाया कि नग्न मोल रैट ने उस कृत्रिम ध्वनि पर अधिक प्रतिक्रिया दी जो उनकी अपनी कॉलोनी की बोली में थी। इससे पता चलता है कि वे अपनी बोली पहचान सकते हैं।
शोधकर्ताओं का अनुमान है कि कॉलोनियों की अपनी-अपनी बोली का विकास घुसपैठियों या बाहरी शख्स की पहचान के लिए हुआ होगा। नग्न मोल रैट अजनबियों से काफी डरते हैं। इसलिए वे यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि वे अपने समूह के बीच ही हैं। चूंकि वे अंधेरे में रहते हैं और लगभग अंधे होते हैं, तो अपरिचित की पहचान के लिए ध्वनि का उपयोग सबसे अच्छा तरीका है। अजनबी पहचाने जाने पर ये उन्हें मार ही डालते हैं।
यह भी पाया गया कि छुटपन में ही ये जीव अपनी कॉलोनी की बोली सीख लेते हैं। जब नवजातों को पराई कॉलोनियों में रखा तो पाया गया कि उन्होंने छह महीने के भीतर ही नई कॉलोनी की बोली सीख ली थी। इसके अलावा मनुष्यों की तरह इनकी भी बोली लुप्त हो सकती है। देखा गया कि रानी के मरने या हटा दिए जाने पर उनकी कॉलोनी की बोली लुप्त हो गई और नई रानी के बनने पर कॉलोनी की नई बोली बन गई। रानी-विहीन समूह के कुछ सदस्य स्वतंत्र हो गए और पुरानी बोली छोड़कर नए तरीके से किकियाने लगे। हालांकि यह अब तक पता नहीं लगा है कि रानी भाषा पर नियंत्रण कैसे करती है।
कुछ शोधकर्ता नवजात नग्न मोल रैट्स में अध्ययन करके देखना चाहते हैं कि उनकी ध्वनि का कौन-सा हिस्सा जेनेटिक है और कौन-सा सीखा गया है। इससे यह समझने में मदद मिल सकती है कि विभिन्न जानवरों में सीखा गया ध्वनि संवाद कैसे विकसित हुआ होगा। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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