यह वर्ष प्रौद्योगिकी विकास के लिए आशा भरा साबित हो सकता है। टीकों से लेकर गंध संवेदना के क्षेत्र में और तंत्रिका विज्ञान से लेकर मास स्पेक्ट्रोमेट्री तक कई नवीन तकनीक और उपकरण विकसित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। यहां ऐसी ही सात प्रौद्योगिकियों के बारे में बात की जा रही है।
ताप-सह टीके
संक्रामक रोगों के खिलाफ टीके की प्रभाविता और सुरक्षा के आकलन को गति देने, टीका उत्पादन बढ़ाने और असुरक्षित आबादी तक टीकों की पहुंच बढ़ाने के उद्देश्य से वर्ष 2017 में कोलीशन फॉर एपिडेमिक प्रीपेयर्डनेस इनोवेशन (CEPI) नामक वैश्विक संगठन की स्थापना की गई थी।
कोविड-19 महामारी से पहले कभी बहुत कम समय में टीका विकसित करने की ज़रूरत नहीं पड़ी थी। फिर भी, मॉडर्ना और फाइज़र कंपनी ने कोविड-19 के खिलाफ mRNA (संदेशवाहक आरएनए) आधारित टीके को महज़ चार महीनों में अनुक्रमण के चरण से लेकर प्रथम चरण के परीक्षण तक पहुंचा दिया।
लेकिन ये टीके और भी बेहतर बनाए जा सकते हैं। चूंकि mRNA बहुत नाज़ुक अणु होता है, यदि इसे सीधे कोशिका में प्रवेश कराया जाए तो हमारे शरीर के एंज़ाइम इसे छिन्न-भिन्न कर देंगे। एक नवीन टेक्नॉलॉजी में mRNA को आयनीकरण-योग्य नैनोपार्टिकल लिपिड के भीतर सुरक्षित किया जाता है। mRNA का यह लिपिड कवच शरीर की पीएच में तो उदासीन रहता है, लेकिन जब यह कोशिका के एंडोसोम में प्रवेश करता है तो वहां के अम्लीय वातावरण में आवेशित हो जाता है और कवच खुल जाता है। इस तरह mRNA कोशिका में पहुंच जाएगा। और अब, नैनोपार्टिकल लिपिड को और भी बेहतर तरीके से कार्य करने के लिए विकसित किया जा रहा है। इसमें नैनोपार्टिकल को ग्राहियों से जुड़कर किन्हीं विशिष्ट ऊतकों या कोशिकाओं को लक्षित करने के लिए तैयार किया जा रहा है।
टीकों के क्षेत्र में अन्य नवाचार टीकों की पहुंच बढ़ाने के लिए किए जा रहे हैं। जैसे कुछ तरीकों में टीके की परिष्कृत संरचना को नुकसान पहुंचाए बिना प्रभावी तरीके से फ्रीज़-ड्राय (कम तापमान पर शुष्क) करने के लिए शर्करा अणुओं का उपयोग किया जा रहा है। इससे टीकों को भंडारित करना और उनका परिवहन करना आसान हो जाएगा।
टीकों की पहुंच बढ़ाने का एक अन्य प्रयास है पोर्टेबल आरएनए-प्रिंटिंग तकनीक का विकास। कुछ ही देशों के पास बड़े पैमाने पर उच्च-गुणवत्ता वाले टीके उत्पादन करने के लिए पूंजी और विशेषज्ञता दोनों हैं। लेकिन सीमित संसाधन वाले क्षेत्र या देश भी स्वयं mRNA आधारित टीका निर्माण कर पाएं, इसके लिए फरवरी 2019 में क्कघ्क्ष् ने पोर्टेबल आरएनए-प्रिंटिंग इकाई विकसित करने के लिए CureVac कंपनी में लगभग साढ़े तीन करोड़ डॉलर का निवेश किया है। उम्मीद है कि इसकी बदौलत अगली किसी महामारी में तैयारी बेहतर होगी।
मस्तिष्क में होलोग्राम
ऑप्टोजेनेटिक्स चिन्हित मस्तिष्क कोशिकाओं और सर्किट (परिपथों) की गतिविधि को नियंत्रित करने की एक तकनीक है। इस तकनीक के उभरने के बाद से तंत्रिका विज्ञान के क्षेत्र में काफी उत्साह पैदा हुआ है। ऑप्टोजेनेटिक्स वर्ष 2005 में विकसित एक तकनीक है जिसमें न्यूरॉन्स में एक प्रोटीन (ऑप्सिन) का जीन जोड़ दिया जाता है। इस जीन से बने प्रोटीन की बदौलत वह न्यूरॉन अब प्रकाश मिलने पर सक्रिय हो उठता है। इसकी मदद से वैज्ञानिक विशिष्ट न्यूरॉन्स के साथ छेड़छाड़ तो कर पाते हैं लेकिन इसकी मदद से अभी भी कोशिकाओं की परस्पर संवाद की भाषा को समझना संभव नहीं हुआ है।
इस प्रयास में, कुछ तंत्रिका वैज्ञानिकों ने नए प्रकाश-संवेदी प्रोटीन विकसित किए हैं। इनकी मदद से किसी तंत्रिका-मार्ग को सक्रिय करने के लिए प्रकाश के विशिष्ट रंग का उपयोग किया जा सकता है। कुछ संशोधित प्रोटीन द्वि-फोटोन उद्दीपन की मदद से न्यूरॉन्स को अधिक सटीकता से सक्रिय कर सकते हैं। लेकिन लेज़र बीम कितने कम समय में किसी विशिष्ट न्यूरॉन को सक्रिय कर पाती है, इसकी सीमा है। और इसलिए नैसर्गिक गतिविधि का हू-ब-हू उद्दीपन पैटर्न बनाना मुश्किल होता है।
पिछले कुछ सालों में, किसी एक न्यूरॉन में बदलाव करने के लिए होलोग्राफी और अन्य प्रकाशीय तरीके विकसित हुए हैं। इनकी मदद से लेज़र प्रकाश को इतने सूक्ष्म पुंजों में विभाजित किया जा सकता है कि वह न्यूरॉन्स का आकार ले ले। इस तरह न्यूरॉन्स को सटीक रूप से उद्दीपन देने के लिए होलोग्राम के ज़रिए त्रि-आयामी जटिल पैटर्न बनाना संभव हुआ है।
जहां एक अकेले लेज़र पुंज से किसी एक न्यूरॉन को उद्दीप्त करने में 10-20 मिलीसेकंड का समय लगता है, होलोग्राफी की मदद से एक मिलीसेकंड से भी कम समय में यह किया जा सकता है। और एक साथ कई होलोग्राम बनाए जा सकते हैं।
लेकिन ऐसा कर पाना अब तक विशेष प्रयोगशालाओं तक ही सीमित था क्योंकि इसे अंजाम देने के लिए यह पता होना चाहिए कि विशिष्ट सूक्ष्मदर्शी कैसे बनाया जाए। और अब, कुछ कंपनियों ने अपनी द्वि-फोटॉन इमेजिंग प्रणाली में होलोग्राफी को भी जोड़ दिया है। अब तंत्रिका विज्ञानी माइक्रोस्कोप से तस्वीर खींचकर जिस न्यूरॉन को सक्रिय करना है उस विशिष्ट न्यूरॉन्स को चिन्हित कर सकते हैं, और सॉफ्टवेयर की मदद से इसे उद्दीपन देने वाले पैटर्न जैसा होलोग्राम बना सकते हैं।
बेहतर एंटीबॉडी निर्माण
1990 के मध्य दशक से ही एंटीबॉडी का उपयोग उपचार में किया जा रहा है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में ही एंटीबॉडी की संभावनाओं के बारे में पता चला है। अधिकांश एंटीबॉडी-आधारित उपचार में सामान्य, असंशोधित एंटीबॉडी का उपयोग किया जाता है जो किसी वांछित लक्ष्य, जैसे वायरस या ट्यूमर कोशिका की सतह पर मौजूद किसी प्रोटीन से जाकर जुड़ जाती हैं। लेकिन कई एंटीबॉडी प्रतिरक्षा कोशिकाओं को सक्रिय करने में अप्रभावी रह जाती हैं। अब, आणविक जीव विज्ञान में हुई प्रगति की मदद से हम एंटीबॉडी को संशोधित कर सकते हैं और इसके ज़रिए शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को रोग के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार कर सकते हैं।
इस दिशा में किंग्स कॉलेज, लंदन की प्रयोगशाला ने एक तीव्र और कुशल आणविक-क्लोनिंग विधी, PIPE (पोलीमरेज़ इनकंप्लीट प्राइमर एक्सटेंशन), की मदद से किसी भी एंटीबॉडी में मनचाहे परिवर्तन संभव कर दिए हैं। इस तरह संशोधित एंटीबॉडी किलर कोशिकाओं के साथ आसानी से जुड़ सकती हैं। इन संशोधित एंटीबॉडी द्वारा चूहों के स्तन कैंसर का उपचार करने पर पाया गया कि इनसे अधिक कैंसर कोशिकाओं की मृत्यु हुई।
इसके अलावा, इम्युनोग्लोबुलिन ई (IgE) आधारित एंटीबॉडी पर भी अध्ययन शुरू हुए हैं। चूंकि लोगों को लगता था कि IgE एलर्जी सम्बंधित एंटीबॉडी है इसलिए अधिकांश चिकित्सकीय एंटीबॉडी इम्युनोग्लोबुलिन जी (IgG) पर आधारित होती हैं। लेकिन IgE एंटीबॉडी कैंसर कोशिकाओं को लक्षित करने का शानदार ज़रिया हो सकती हैं।
वांछित संशोधन कर संशोधित एंटीबॉडी द्वारा कैंसर से लेकर ऑटो-इम्यून बीमारियों और एलर्जी का इलाज और कोविड-19 सहित कई संक्रामक रोगों के खिलाफ प्रतिरक्षा हासिल की जा सकती है।
एकल-कोशिका अध्ययन
हमारे शरीर की कोशिकाएं विभिन्न तरह के कार्य करती हैं। लेकिन इन सभी कोशिकाओं का जन्म एक कोशिका और एक जीनोम से ही होता है। सवाल है कि कैसे एक कोशिका इतनी सारी विभिन्न कोशिकाओं को जन्म देती है?
इस सवाल का जवाब पता करने के लिए पिछले कुछ समय से एकल-कोशिका को अनुक्रमित करने की तीन नई तकनीकों पर काम हो रहा है। इनमें से एक तकनीक है हाइ-सी (Hi-C) विधि, जिसकी मदद से जीनोम की त्रि-आयामी संरचना का अध्ययन किया जा सकता है। इसकी मदद से चूहे के भ्रूण के प्रारंभिक विकास के विभिन्न चरणों के दौरान एकल-कोशिका में मातृ और पितृ गुणसूत्रों का अध्ययन करने पर पाया गया कि मातृ और पितृ जीनोम निषेचन के तुरंत बाद मिश्रित नहीं होते, एक कोशिका से 64 कोशिका बनने के चरणों के बीच एक ऐसा क्षण आता है जहां मातृ जीनोम की संरचना पितृ जीनोम से अलग दिखती है। हालांकि अब तक यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि कुछ समय की यह विषमता क्यों होती है। लेकिन अनुमान है कि आगे जाकर लिंग-विशिष्ट जीन अभिव्यक्ति को शुरू करने में इसकी भूमिका होगी।
दूसरी तकनीक है कट एंड टैग (या काटो-निशान लगाओ) तकनीक। इसकी मदद से जीनोम के विशिष्ट जैव-रासायनिक ‘चिन्हों’ को पहचान कर यह पता किया जा सकता है कि किस तरह इन रसायनों में परिवर्तन प्रत्येक जीवित कोशिका में किसी जीन को चालू-बंद करता है।
और तीसरी तकनीक है SHARE-seq। यह तकनीक दो अनुक्रमण विधियों का मिश्रण है। इसकी मदद से जीनोम के उन हिस्सों की पहचान की जा सकती है जहां अनुलेखन सक्रिय करने वाले अणु हो सकते हैं।
इन तकनीकों से विकासशील भ्रूण का अध्ययन कर पता किया जा सकता है कि जीनोम की कुछ खास विशेषताएं भ्रूण विकास में कैसे किसी कोशिका का भाग्य लिखती हैं।
कोशिका में बल संवेदना
वृद्धि कारकों और अन्य अणुओं के अलावा कोशिकाएं भौतिक बल भी महसूस करती हैं। बल का प्रभाव जीन अभिव्यक्ति, कोशिका संख्या वृद्धि, विकास और संभवत: कैंसर को नियंत्रित कर सकता है।
बल का अध्ययन करना मुश्किल है क्योंकि यह केवल एक प्रभाव के रूप में दिखता है – जब हम किसी चीज़ को धक्का लगाते हैं तो उसमें विकृति या हलचल होती है। लेकिन अब, दो उपकरणों की मदद से जीवित कोशिकाओं में बल को समझा जा सकता है और उसमें बदलाव किया जा सकता है। और इस तरह भौतिक बल और कोशिकीय कार्यों के बीच कार्य-कारण सम्बंध पता किया जा सकता है।
इंपीरियल कॉलेज, लंदन द्वारा विकसित GenEPi दो अणुओं को जोड़ सकता है। इनमें से एक अणु है पीज़ो-1। यह एक आयन मार्ग है जो कोशिका झिल्ली पर तनाव महसूस होने पर अपने छिद्रों से कैल्शियम आयनों का संचार करता है। दूसरा अणु इन आयनों की पहचान करता है – यह कैल्शियम से जुड़ने के बाद और अधिक चमकता है।
पूर्व में कोशिकाओं पर बल के प्रभाव को पता करने के लिए भौतिक या भेदक उपकरणों का उपयोग किया जाता था। लेकिन GenEPi की मदद से वास्तविक वातावरण में बदलाव किए बिना कोशिकाओं का अध्ययन किया जा सकता है। सभी तरह के कोशिका द्रव्य कैल्शियम पर नज़र रखने वाले पूर्व के सेंसरों के विपरीत, GenEPi केवल उन कैल्शियम गतिविधियों पर नज़र रखता है जो पीज़ो-1 के ज़रिए बल संवेदना से जुड़ी होती हैं। इस तरह वैज्ञानिकों ने परमाणु बल सूक्ष्मदर्शी कैंटीलीवर से ह्मदय की मांसपेशियों की कोशिकाओं में उद्दीपन देकर GenEPi प्रतिदीप्ति में बदलाव करने में सफलता प्राप्त की है।
दूसरा उपकरण है ActuAtor। इसे रोगजनक सूक्ष्मजीव लिस्टेरिया मोनोसाइटोजीनस के प्रोटीन ActA की मदद से बनाया है। जब यह बैक्टीरिया किसी स्तनधारी कोशिका को संक्रमित करता है तो ActA प्रोटीन मेज़बान कोशिका की मशीनरी पर अपना नियंत्रण कर लेता है ताकि बैक्टीरिया की सतह पर एक्टिन पोलीमराइज़ेशन शुरू कर सके। इससे बल उत्पन्न होता है जो कोशिका द्रव्य में बैक्टीरिया को इधर-उधर धकेलता है।
बैक्टीरिया की इस नियंत्रण प्रणाली का उपयोग हम अपने उद्देश्य के लिए कर सकते हैं। ActA प्रोटीन में बदलाव करके, प्रकाश या रासायनिक उद्दीपन देकर कोशिका के भीतर किसी भी वांछित स्थान पर एक्टिन पॉलीमराइज़ेशन किया जा सकता है। ActuAtor की मदद से कोशिका के बहुत अंदर तक बल लगाया जा सकता। जैसे, ActuAtor को माइटोकॉन्ड्रिया की सतह पर छोड़ने पर यह इसे छोटे-छोटे हिस्सों में तोड़ सकता है। इस तरह क्षतिग्रस्त माइटोकॉन्ड्रिया चयनित रूप से तोड़ा जा सकता है, और माइटोकॉण्ड्रिया द्वारा एटीपी संश्लेषण भी अप्रभावित रहता है।
पूर्व में ऐसे कामों को अंजाम देना मुश्किल था क्योंकि हमारे पास जीवित कोशिका को भेदे बिना कोशिकांग को क्षतिग्रस्त करने वाले उपकरण नहीं थे। ActuAtor ऐसा करने में सक्षम पहला उपकरण है।
नैदानिक मास स्पेक्ट्रोमेट्री
मास स्पेक्ट्रोमेट्री जटिल नमूनों में से भी सैकड़ों-हज़ारों तरह के अणुओं के बारे में तुरंत और सटीकता से पता कर सकती है। कुछ वैज्ञानिक मास स्पेक्ट्रोमेट्री की मदद से जैविक ऊतकों की बारीकी से पड़ताल करने के लिए बेहतर तकनीक विकसित करने का प्रयास कर रहे हैं। और कुछ शोधकर्ता मास स्पेक्ट्रोमेट्री को सरल बनाने का प्रयास कर रहे हैं ताकि चिकित्सकीय नैदानिक कार्यों में इसका इस्तेमाल हो सके।
MALDI (मैट्रिक्स-असिस्टेड लेज़र डीसॉर्प्शन/ऑयनाइज़ेशन) एक मास स्पेक्ट्रोमेट्री इमेजिंग तकनीक है जिसका उपयोग जैविक ऊतकों का विश्लेषण करने में किया जाता है। लेकिन अणुओं को ऊतकों से निकालना और निर्वात में उन्हें आयनित करना मुश्किल काम होता है। इसलिए 2017 में MALDI में किए गए कुछ बदलावों ने निर्वात के बजाय हवा की उपस्थिति में ही आयन में बदलाव करना संभव बनाया। इस बदलाव से MALDI प्रणाली और भी सरल हुई। और इस कारण मिश्रित सूक्ष्मदर्शी, जैवदीप्ति चित्रण, ब्लॉकफेस इमेजिंग और एमआरआई जैसी अन्य तकनीकों के साथ इसका उपयोग संभव हुआ। इतनी विविध कार्यक्षमता के कारण ही सूक्ष्मजीव और मेज़बान की अंत:क्रिया, और आणविक और ऊतकीय सटीकता के साथ चयापचय परिवर्तनों का बारीकी से अध्ययन संभव हो सका।
इसके अलावा शोधकर्ताओं ने एक MasSpec पेन बनाया है, जिसे हाथ से पकड़कर मास स्पेक्ट्रोमेट्री की जा सकती है। इसकी मदद से सर्जन ट्यूमर ऊतकों और उनके फैलाव को देख सकते हैं। यह उपकरण शरीर के चयापचय उत्पादों पर आधारित है जिसमें अभिक्रिया में बने उत्पादों के आधार पर यह पेन सामान्य ऊतक और ट्यूमर ऊतक की पहचान करता है। इस प्रक्रिया में ऊतक पर पानी की एक बूंद डाली जाती है जिसमें चयापचय उत्पाद घुल जाते हैं और फिर इनकी मास स्पेक्ट्रोमेट्री की जाती है। यह हमें पता चल गया है कि प्रयोगशाला में सामान्य ऊतक और ट्यूमर ऊतक के चयापचय उत्पाद में कौन-कौन से अणु होते हैं। अब वास्तविक परिस्थिति में परीक्षण किया जा रहा है। इस साल स्तन कैंसर, गर्भाशय के कैंसर और अग्नाशय कैंसर, या रोबोटिक प्रोस्टेट कैंसर सर्जरी में MasSpec पेन को जांचने की योजना है।
सूंघ कर बीमारी पता करना
दृष्टि, श्रवण और स्पर्श के विपरीत, गंध के रासायनिक संवेदक काफी जटिल हैं। वे सैकड़ों-हज़ारों रसायनों के मिश्रण की पहचान करते हैं। कोरिया युनिवर्सिटी के शोधकर्ता कृत्रिम घ्राण प्रणाली को बेहतर बनाने की कोशिश में हैं।
इनमें से एक तरीका है द्वि-स्तरीय डिज़ाइन कर गैस-संवेदी पदार्थों की विविधता को बढ़ाना। मसलन, गैस-संवेदना को बेहतर करने के लिए 10 विभिन्न संवेदी पदार्थों पर 10 विभिन्न उत्प्रेरक पदार्थों की परत चढ़ाना, जिससे 100 विभिन्न सेंसर बन सकते हैं। यह 100 अलग-अलग संवेदी पदार्थों के उपयोग से कहीं अधिक आसान होगा।
इसके अलावा, सेंसरों को त्वरित प्रतिक्रिया देने के लिए तैयार करने की भी आवश्यकता है। प्रकृति से सीखकर हम सेंसरों को त्वरित प्रतिक्रिया के लिए तैयार कर सकते हैं। जैसे संवेदी सतह का क्षेत्रफल बढ़ाना।
कृत्रिम घ्राण-तंत्र का उपयोग निदान में भी किया जा सकता है। जैसे दमा से पीड़ित लोगों की सांस में नाइट्रिक ऑक्साइड की उच्च सांद्रता का पता करने के लिए। इसके अलावा वायु प्रदूषण, खाद्य गुणवत्ता जांचने में और पौधों के हार्मोन संकेतों के आधार पर स्मार्ट खेती करने में कृत्रिम घ्राण-तंत्र का उपयोग किया जा सकता है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://media.nature.com/w1172/magazine-assets/d41586-021-00191-z/d41586-021-00191-z_18782774.jpg