मशीनों की खासियत है कि उन्हें हम मनुष्यों (और अन्य प्राणियों) की तरह सोने की ज़रूरत नहीं पड़ती। लेकिन कैसा हो यदि आपका फ्रिज, कार या अन्य कोई उपकरण कुछ देर की नींद चाहे। ऐसा हो भी सकता है यदि इन उपकरणों में बिल्कुल मानव मस्तिष्क के समान कृत्रिम बुद्धि (आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस) हो। लॉस अलामोस नेशनल लेबोरेटरी के शोधकर्ताओं का कहना है कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को भी ठीक से काम करते रहने के लिए थोड़ी नींद की ज़रूरत होती है।
इस ज़रूरत का पता शोधकर्ताओं को तब चला जब वे एक ऐसा न्यूरल नेटवर्क तैयार कर रहे थे जो बिल्कुल जीवित मस्तिष्क की तरह काम करता हो। वे न्यूरल नेटवर्क को मनुष्यों और अन्य जीवों की तरह सीखने के लिए तैयार कर रहे थे, जिसमें उन्होंने नेटवर्क को बगैर किसी पूर्व डैटा या प्रशिक्षण के वस्तुओं को वर्गीकृत करने के लिए तैयार किया। ठीक वैसे ही जैसे यदि कोई किसी छोटे बच्चे को कुछ जानवरों की तस्वीरें देकर समूह बनाने कहे तो वह बना देगा हालांकि वह उनके नाम नहीं जानता। बच्चा हिरण जैसे जानवरों की तस्वीर हिरण के साथ रखेगा, शेर या पेंगुइन के साथ नहीं।
शोधकर्ताओं ने देखा कि लगातार इस तरह का वर्गीकरण करते रहने से नेटवर्क अस्थिर हो गया था। नेटवर्क की हालत लगभग मतिभ्रम की समस्या जैसी हो गई थी जिसमें वह बहुत सारी छवियां बनाए जा रहा था। शुरुआत में शोधकर्ताओं ने नेटवर्क को स्थिर करने के विभिन्न प्रयास किए। उन्होंने नेटवर्क को कई तरह के संख्यात्मक शोर का अनुभव कराया जो कुछ वैसा था जैसा रेडियो की चैनल बदलते वक्त बीच में खर-खर की आवाज़ होती है। थक-हार कर शोधकर्ताओं ने जब नेटवर्क को उन तरंगों का अनुभव कराया जो बिल्कुल वैसी ही थीं जैसे नींद के वक्त हमारा मस्तिष्क अनुभव करता है तो नेटवर्क स्थिर हो गया। उन्हें सबसे अच्छा परिणाम तब मिला जब इस शोर में विभिन्न आवृत्तियों और आयाम की तरंगे थीं। न्यूरल नेटवर्क के लिए यह अनुभव वैसा ही था जैसे उसे एक अच्छी और लंबी नींद दी गई हो। इन परिणामों से लगता है कि कृत्रिम और प्राकृतिक बुद्धि, दोनों में गहरी नींद यह सुनिश्चित करने का कार्य करती है कि न्यूरॉन्स अस्थिर ना हों और मतिभ्रम की स्थिति ना बनें।
वैसे, सभी तरह के आर्टिफिशियल नेटवर्क को नींद की ज़रूरत नहीं पड़ती। यह ज़रूरत सिर्फ उन नेटवर्क को पड़ती है जिन्हें वास्तविक मस्तिष्क की तरह प्रशिक्षित किया जा रहा हो, या नेटवर्क खुद से कोई वास्तविक प्रणाली को सीख रहा हो। मशीन लर्निंग, डीप लर्निंग और एआई को इसकी ज़रूरत नहीं पड़ती क्योंकि ये मूलत: गणितीय संक्रियाओं पर निर्भर होते हैं।
न्यूरल नेटवर्क में नींद की अवस्था पारंपरिक कंप्यूटर के ‘स्लीप मोड’ से अलग है। कंप्यूटर के स्लीप मोड में जाने पर उसमें कुछ समय के लिए गतिविधियां रुक जाती हैं। आईटी एक्सपर्ट हमेशा से सलाह देते रहे हैं कि यदि आपका कंप्यूटर नखरे करने लगे तो उसे बंद करके फिर से चालू कीजिए।
लेकिन अस्थिर न्यूरल नेटवर्क में इस तरह का ‘स्लीप मोड’ कोई मदद नहीं कर सकता। और नेटवर्क को बंद करके वापिस चालू करना बात और बिगाड़ सकता है, बिजली की सप्लाई बंद करने से नेटवर्क रीसेट हो जाएगा और सारे पूर्व प्रशिक्षण को भुला देगा। न्यूरल नेटवर्क और प्राणियों की नींद का मतलब पूरी तरह निष्क्रिय होना नहीं है बल्कि इनमें नींद एक अलग तरह की अवस्था है जो न्यूरॉन्स को सुचारु रूप से काम करते रहने में मदद करती है।
अब शोधकर्ता नेटवर्क को कृत्रिम नींद देने के फायदों की पड़ताल रहे हैं। इसका एक लाभ उन्होंने पाया कि अक्सर ऐसा होता है कि सिमुलेशन शुरू करने पर कुछेक न्यूरॉन्स अपना कार्य नहीं करते, कृत्रिम नींद देने पर नेटवर्क के वे न्यूरॉन्स भी कार्यशील हो गए थे। जैसे-जैसे शोधकर्ता बिल्कुल जीवित तंत्रों जैसा न्यूरल नेटवर्क बनाते जा रहे हैं, इसमें आश्चर्य नहीं कि उन्हें भी नींद की ज़रूरत पड़ती है। उम्मीद है कि परिष्कृत न्यूरल नेटवर्क हमें हमारी नींद और अन्य प्रणालियों को और भी बेहतर समझने में मदद करेंगे।(स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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