जब भी मनुष्यों द्वारा पालतूकरण की बात होती है तो अक्सर पहला ख्याल गाय, कुत्तों या कुछ ऐसे ही अन्य जानवरों का आता है, खमीर यानी यीस्ट का नहीं। हाल ही में करंट बायोलॉजी में प्रकाशित अध्ययन बताता है कि मनुष्यों ने यीस्ट (एक तरह की फफूंद) के विकास में काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। ब्रेड बनाने में उपयोग की जाने वाली यीस्ट, सेक्रोमाइसेस सेरेविसे, पर मनुष्यों का चयनात्मक दबाव रहा। इसके फलस्वरूप इसका विकास दो भिन्न समूहों में हुआ – एक तरह के यीस्ट का उपयोग उद्योगों में बड़े पैमाने पर ब्रेड बनाने में किया जाता है और दूसरे तरह की यीस्ट का उपयोग पारंपरिक खमीरी ब्रेड बनाने में किया जाता है। उद्योगों में उपयोग किया जाने वाला यीस्ट जहां किण्वन की प्रक्रिया बहुत तेज़ी से करता है वहीं पांरपरिक खमीरी ब्रेड में प्रयुक्त यीस्ट में माल्टोज़ के चयापचय के लिए ज़िम्मेदार जीन की प्रतियां अधिक होती हैं – माल्टोज़ के चयापचय की प्रक्रिया किण्वन के बाद होती है जो आटे को ‘उठाने’ में मदद करती है।
फ्रेंच नेशनल रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर एग्रीकल्चर की वैकासिक आनुवंशिकीविद डेल्फीन सिकार्ड बताती हैं कि सदियों से सभी जगह ब्रेड बनाई और उपयोग की जाती रही है। लेकिन अब यीस्ट स्टार्टर (खमीर उठाने वाला घोल या सूखा खमीर) का बड़े पैमाने पर उद्योगों में उत्पादन किया जाना लगा है। सिकार्ड की टीम समझना चाहती थी कि इस बदलाव ने यीस्ट के विकास को किस तरह प्रभावित किया।
शोधकर्ताओं ने फ्रांस, बेल्जियम और इटली से खमीरी ब्रेड बनाने के लिए घरेलू स्तर पर उपयोग किए जाने वाले यीस्ट के 198 संस्करण, और स्टार्टर किट या अंतर्राष्ट्रीय यीस्ट संग्रह से औद्योगिक यीस्ट के 31 संस्करण प्राप्त किए। प्रत्येक नमूने में फ्लो साइटोमेट्री का उपयोग कर यीस्ट कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या पता की, और माइक्रोसेटेलाइट मार्कर विश्लेषण का उपयोग करके गुणसूत्र समूह की संख्या के आधार पर उनकी आनुवंशिक विविधता जांची। इसके बाद शोधकर्ताओं ने हाल ही में अनुक्रमित किए गए बेकरी यीस्ट के 17 संस्करण और अन्य एस. सेरेविसे यीस्ट के 1011 संस्करण का विश्लेषण किया। फिर इसका एक वंश वृक्ष (फाइलोजेनेटिक ट्री) तैयार किया और इस पर यीस्ट में गुणसूत्रों की प्रतियों की संख्या में विविधता दर्शाई।
उन्होंने पाया कि खमीरी ब्रेड के यीस्ट में उन जीन्स की प्रतियां काफी अधिक संख्या में थीं, जो उन प्रोटीन्स का कोड हैं जो माल्टोज़ और आइसोमाल्टोज़ शर्करा को तोड़ने वाले एंज़ाइम्स (माल्टेज़ और आइसोमाल्टेज़) का परिवहन करते हैं और उनका नियमन करते हैं। इनमें ये एंज़ाइम भी ज़्यादा मात्रा में मिले। वैसे तो जीन की प्रतियों की संख्या में घट-बढ़ कोशिकाओं के लिए हानिकारक हो सकती है, लेकिन शोधकर्ता बताते हैं कि संख्या में यह घट-बढ़ सख्त चयन के दबाव में त्वरित अनुकूलन में मदद कर सकती है। जैसे, उच्च-माल्टोज़ और आइसोमाल्टोज़ युक्त आटे (या मैदे) के विषाक्त पर्यावरण में तेज़ी से वृद्धि करने में।
शोधकर्ताओं ने पाया कि खमीरी ब्रेड के आटे जैसे कृत्रिम परिवेश (जिसमें कार्बन रुाोत के रूप में सिर्फ माल्टोज़ था) में उपरोक्त जीन्स की कम प्रतियों वाले यीस्ट की तुलना में अधिक प्रतियों वाले यीस्ट किण्वन के अंत में अधिक संख्या में मौजूद थे। चाहे मनुष्यों के चयन के कारण हो या यीस्ट के अनुकूलन के कारण, परिणाम यह रहा है कि अधिक प्रतियों वाले यीस्ट से खमीरी ब्रेड अच्छी बनने लगी।
इसी दौरान औद्योगिक बेकर्स ने उन यीस्ट को चुना जो अधिक तेज़ी से किण्वन करते थे। अध्ययन में खमीरी ब्रेड के यीस्ट की तुलना में औद्योगिक यीस्ट को एक ग्राम कार्बन डाईऑक्साइड बनाने में औसतन आधा घंटा कम लगा। औद्योगिक यीस्ट अधिक जटिल और देरी से टूटने वाली शर्करा माल्टोज़ और आइसोमाल्टोज़ की जगह ग्लूकोज़ के किण्वन को प्राथमिकता देते हैं।
चूंकि खमीरी यीस्ट स्टार्टर में अन्य सूक्ष्मजीव, जैसे लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया और अन्य यीस्ट, भी होते हैं जो एस. सेरिविसे के सहायक होते हैं इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि एस. सेरेविसे के पालतूकरण में अन्य सूक्ष्मजीवों की क्या भूमिका है?
लेकिन सवाल है कि क्या यह वास्तव में यीस्ट का पालतूकरण है, या हमने प्रकृति में विद्यमान विविधता का फायदा लिया है, या यीस्ट हमारे दिए अनुकूल वातावरण में अच्छे से फल-फूल गया? औद्योगिक यीस्ट के त्वरित किण्वन के प्रमाण बताते हैं कि सभी जगह पाया जाने वाला एस. सेरेविसे किसी पेड़ की छाल, मिट्टी या अन्य माहौल में इस तरह नहीं पनपता जिस तरह यह इन परिस्थितियों में पनप सका।
सिकार्ड चिंता जताती हैं कि उद्योगों में ब्रेड बनाए जाने से यीस्ट की विविधता कम हो सकती है। लेकिन पिछले एक दशक, खासकर कोविड-19 महामारी के दौर में घर में ब्रेड बनाने का चलन बढ़ा है, तो उम्मीद की जा सकती है कि भविष्य में हम इस विविधता को बनाए रख सकेंगे।(स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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