कोविड-19 टीकों के शुरुआती क्लीनिकल परीक्षणों के सकारात्मक परिणामों के बाद से ही इनके ‘आपातकालीन उपयोग’ की स्वीकृति की मांग होने लगी है। इस तरह की मांग ने वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ा दी है। वैज्ञानिकों की प्रमुख चिंता यह है कि इस तरह के उपयोग से चलते हुए क्लीनिकल परीक्षण खटाई में पड़ जाएंगे। दवा कंपनी नोवर्टिस के वैक्सीन डिज़ाइन के पूर्व प्रमुख क्लाउस स्टोहर इसे टीका विकास के लिए असमंजस के रूप में तो देखते हैं लेकिन आपातकालीन उपयोग के पक्ष में भी हैं क्योंकि शुरुआती चरणों में प्रभावशीलता स्थापित हो गई है।
इस संदर्भ में गौरतलब है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नवंबर माह में ही पोलियो टीकाकरण के लिए एक नए टीके को कुछ देशो में आपातकालीन उपयोग की मंज़ूरी दे दी है। जबकि इस टीके के तो तीसरे चरण के परीक्षण अभी शुरू भी नहीं हुए हैं।
इसी दौरान टीका निर्माता फाइज़र और बायोएनटेक ने तीसरे चरण के परीक्षणों के बाद इस तरह की विनियामक अनुमति की मांग की है। देखा जाए तो कोविड-19 के लिए यूएस एफडीए के नियमों के अनुसार आपातकालीन उपयोग में आधे प्रतिभागियों पर डोज़ देने के दो माह बाद तक निगरानी रखी जानी चाहिए। फिलहाल फाइज़र और बायोएनटेक इस लक्ष्य को पार कर चुके हैं।
लेकिन इससे जुड़ी कुछ नैतिक समस्याएं भी हैं। परीक्षण के दौरान आम तौर पर प्रतिभागियों को ‘अंधकार’ में रखा जाता है कि उनको टीका दिया गया है या प्लेसिबो। लेकिन एक बार जब टीका काम करने लगता है तो प्लेसिबो समूह के प्रतिभागियों को टीका न देकर असुरक्षित रखना अनैतिक लगता है। स्टोहर के अनुसार यदि इन परीक्षणों में बड़ी संख्या में प्रतिभागी पाला बदलकर ‘प्लेसिबो समूह’ से ‘टीका समूह’ में चले जाएंगे तो क्लीनिकल परीक्षण से सही आंकड़े प्राप्त करना मुश्किल हो जाएगा और टीके के दीर्घकालिक प्रभावों की बात धरी की धरी रह जाएगी। अर्थात जल्दबाज़ी से टीके की प्रभाविता का पर्याप्त डैटा नहीं मिल पाएगा। इससे यह पता लगाना भी मुश्किल होगा कि टीका कितने समय तक प्रभावी रहेगा और क्या इससे संक्रमण को रोका जा सकता है या फिर यह सिर्फ लक्षणों में राहत देगा। फिर भी फाइज़र के प्रवक्ता के अनुसार कंपनी एफडीए के साथ प्रतिभागियों के क्रॉसओवर और प्रभाविता को मापने के लिए डैटा एकत्र करने की प्रकिया पर चर्चा करेगी।
कुछ वैज्ञानिकों का सुझाव है कि ऐसे प्रतिभागी जिनको शुरुआत में प्लेसिबो प्राप्त हुआ है और बाद में टीका लगवाते हैं, उनका निरीक्षण एक अलग समूह के रूप में किया जा सकता है। इस तरह से ऐसे समूहों के बीच टीके की दीर्घकालिक प्रभाविता और सुरक्षा की तुलना भी की जा सकेगी।
फिर भी, एक बार कोविड-19 टीके को आपातकालीन स्वीकृति मिलने से टीके का परीक्षण और अधिक जटिल हो जाएगा। ऐसे में नए परीक्षण शुरू करने वाली कंपनियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके टीके आपातकालीन स्वीकृति प्राप्त टीकों से बेहतर हैं। इसके लिए उनकी परीक्षण की प्रक्रिया और अधिक महंगी हो जाएगी। कुल मिलाकर बात यह है कि किसी भी टीके को मंज़ूरी मिलना, भले ही आपातकालीन उपयोग के लिए हो, टीकों के बाज़ार में आने के परिदृश्य को बदल देगा।(स्रोत फीचर्स)
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