कैंसर की बढ़िया से बढ़िया दवाइयां भी कैंसर के गंभीर मरीज़ों को जीने की ज़्यादा मोहलत नहीं दे पातीं। लेकिन कुछ अपवाद मरीज़ों के ट्यूमर इन्हीं दवाइयों से कम या खत्म हुए, और वे कई वर्षों तक तंदुरुस्त रहे हैं। शोधकर्ता लंबे समय से इन अपवाद मरीज़ों को नज़रअंदाज़ करते आए थे। लेकिन अब इन मरीज़ों पर व्यवस्थित अध्ययन करके जो जानकारी मिल रही है वह कैंसर उपचार को बेहतर बना सकती है।
ऐसे एक प्रयास में, अमेरिका के राष्ट्रीय कैंसर संस्थान के लुईस स्टॉड की अगुवाई में कैंसर के 111 अपवाद मरीज़ों के ट्यूमर, और ट्यूमर के भीतर और उसके आसपास की प्रतिरक्षा कोशिकाओं के डीएनए का अध्ययन किया गया। शोधकर्ताओं को 26 मरीज़ों के ट्यूमर या प्रतिरक्षा कोशिकाओं में जीनोमिक परिवर्तन दिखे। इन परिवर्तनों से पता लगाया जा सकता है कि क्यों जो औषधियां इन मरीज़ों पर कारगर रहीं वे अधिकतर लोगों पर असरदार नहीं रहतीं।
अध्ययन के लिए ऐसे 111 मरीज़ों के ट्यूमर और प्रतिरक्षा कोशिकाओं के डीएनए का डैटा चुना गया जिनके ट्यूमर ऐसी दवा के असर से कम या खत्म हो गए थे जिस दवा ने परीक्षण में 10 प्रतिशत से भी कम मरीज़ों पर असर किया था, या उन मरीज़ों को चुना गया जिनमें दवा का असर सामान्य की तुलना में तीन गुना अधिक समय तक रहा।
शोधकर्ता 26 मरीज़ों की उपचार के प्रति प्रतिक्रिया की व्याख्या कर पाए। उदाहरण के लिए मस्तिष्क कैंसर से पीड़ित मरीज़, जो टेमोज़ोलोमाइड नामक औषधि से उपचार के बाद 10 साल से अधिक जीवित रहा था, उसके ट्यूमर में ऐसे जीनोमिक परिवर्तन दिखे जो ट्यूमर कोशिकाओं के डीएनए की मरम्मत की दो कार्यप्रणालियों को बाधित करते हैं। टेमोज़ोलोमाइड डीएनए को क्षतिग्रस्त करके कैंसर कोशिकाओं को मारती है।
कोलोन कैंसर से पीड़ित मरीज़ में टेमोज़ोलोमाइड उपचार के 4 वर्ष बाद दो जीनोमिक परिवर्तन हुए जो डीएनए मरम्मत के दो मार्ग अवरुद्ध करते हैं। उसी मरीज़ को दी गई एक अन्य दवा ने डीएनए मरम्मत के तीसरे मार्ग को अवरुद्ध कर दिया था। कैंसर सेल पत्रिका में प्रकाशित इन परिणामों से लगता है कि डीएनए की मरम्मत करने वाले विभिन्न मार्गों को अवरुद्ध करने वाली औषधियों के मिले-जुले उपयोग से उपचार को बेहतर किया जा सकता है।
इसके अलावा, गुदा कैंसर और पित्त वाहिनी के कैंसर से पीड़ित दो मरीज़ों के ट्यूमर के बीआरसीए जीन्स, जो स्तन कैंसर के लिए ज़िम्मेदार हैं, में उत्परिवर्तन दिखा। इस उत्परिवर्तन ने भी कीमोथेरेपी में ट्यूमर को असुरक्षित कर दिया था। अन्य मामलों में, मरीज़ों को जब ट्यूमर कोशिकाओं की वृद्धि के लिए ज़िम्मेदार प्रोटीन को बाधित करने वाली औषधि दी गई तो दवा इन मरीज़ों पर कारगर रही। कुछ मामलों में कुछ प्रतिरक्षा कोशिकाएं मरीज़ों के ट्यूमर में प्रवेश कर गर्इं थी। इससे लगता है कि इन मरीज़ों की प्रतिरक्षा कोशिकाएं तैयार बैठी थीं कि दवा ट्यूमर में प्रवेश करे और पीछे-पीछे वे भी घुस जाएं।
नतीजों का तकाज़ा है कि सामान्यत: कैंसर ट्यूमर का जीनोमिक परीक्षण किया जाना चाहिए ताकि उपचार के लिए उपयुक्त औषधि का चयन किया जा सके। वैसे अभी भी कई परिणामों की व्याख्या करना मुश्किल है, क्योंकि कई मामलों में ट्यूमर में उत्परिवर्तन और प्रतिरक्षा कोशिका में परिवर्तन के विभिन्न सम्मिश्रण दिखे हैं। टीम ने अपने सारे आंकड़े ऑनलाइन कर दिए हैं ताकि अन्य अनुसंधान समूह इस काम को आगे बढ़ा पाएं।(स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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