हाल ही में जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार हर वर्ष भारत में सर्पदंश से लगभग 30 लाख वर्षों के स्वास्थ्य और उत्पादकता के बराबर नुकसान होता है। इस अध्ययन में विशेष रूप से उन लोगों पर चर्चा की गई है जो सर्पदंश के बाद जीवित रहते हैं लेकिन अंग-विच्छेदन, गुर्दों की बीमारी जैसी स्थितियों से जूझ रहे हैं। गौरतलब है कि भारत में पहली बार इस तरह का विश्लेषण किया गया है। इसे युनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ मैट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (IHMI) के निक रॉबर्ट्स ने अमेरिकन सोसाइटी ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन एंड हाइजीन द्वारा नवंबर में आयोजित वर्चुअल बैठक में प्रस्तुत किया।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने 2017 में सर्पदंश के कारण विषाक्तता को एक उपेक्षित उष्णकटिबंधीय बीमारी घोषित किया है। इसके लिए संगठन ने पिछले वर्ष एक वैश्विक पहल की शुरुआत की है जिसमें वर्ष 2030 तक सर्पदंश से होने वाली मौतों और विकलांगता को आधा करने का लक्ष्य है। टोरंटो स्थित सेंटर फॉर ग्लोबल हेल्थ रिसर्च के निदेशक प्रभात झा और उनके सहयोगियों ने सर्पदंश से होने वाली मौतों का सटीक अनुमान लगाने का प्रयास किया है। अपनी रिपोर्ट में झा ने बताया है कि भारत में प्रति वर्ष लगभग 46,000 मौतें सर्पदंश से होती हैं। इस रिपोर्ट के बाद WHO ने भी अपने अनुमान को संशोधित करके कहा है कि प्रति वर्ष विश्व भर में सर्पदंश से 81,000 से 1,38,000 मौतें होती हैं। ऐसे में भारत को निवारण पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
सर्पदंश के अधिकांश मामले अस्पतालों या स्वास्थ्य केंद्रों तक पहुंच के अभाव में औपचारिक रूप से दर्ज नहीं हो पाते और ऐसे में इसके प्रभाव को कम आंका जाता है। देखा जाए तो इस तरह के मामले अधिकतर गरीब किसानों और उनके परिवारों में होते हैं। इसलिए इन पर अधिक ध्यान भी नहीं दिया जाता है।
भारत में सर्पदंश की अधिकता का एक कारण यहां मौजूद सांपों की 300 से अधिक प्रजातियां हैं जिनमें से 60 प्रजातियां अत्यधिक विषैली हैं। इसके अलावा दूरदराज़ क्षेत्रों में निकटतम स्वास्थ्य केंद्र से दूरी के कारण भी समय पर पहुंचना काफी मुश्किल हो जाता है। क्लीनिकों में एंटी-वेनम दवाओं का अभाव या उनके रखरखाव में लापरवाही भी एक बड़ा कारण है।
फिर भी क्ष्क्तग्क के विश्लेषण से सर्पदंश के उपरांत जीवित रहे लोगों में होने वाले दीर्धकालिक प्रभावों की पहली मात्रात्मक जानकारी प्राप्त हुई है। ऐसे विश्लेषणों से स्वास्थ्य व्यवस्था की लागत और अन्य सामाजिक दबावों की जानकारी मिल सकती है।
इन अध्ययनों से यह बात तो साफ है कि नीति स्तर पर बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं तक आसान पहुंच की तत्काल आवश्यकता है। सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देते हुए सभी राज्यों में सर्पदंश के उपचार की उपलब्धता बढ़ाने की आवश्यकता है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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