दुनिया राजनैतिक, सामाजिक और पर्यावरणीय दृष्टि से उथल-पुथल के दौर में है। ऐसी परिस्थिति में महान वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग यह कहकर धरती से रुखसत हो चुके हैं कि महज़ 200 वर्षों के भीतर मानव जाति का अस्तित्व हमेशा के लिए खत्म हो सकता है और इस संकट का एक ही समाधान है कि हम अंतरिक्ष में कॉलोनियां बसाएं।
हाल के वर्षों में हुए अनुसंधानों से पता चलता है कि भविष्य में पृथ्वीवासियों द्वारा रिहायशी कॉलोनी बनाने के लिए सबसे उपयुक्त स्थान हमारा पड़ोसी ग्रह मंगल है। मंगल ग्रह और पृथ्वी में अनेक समानताएं हैं। हालांकि मंगल एक शुष्क और ठंडा ग्रह है, लेकिन वहां पानी, कार्बन डाईऑक्साइड, नाइट्रोजन आदि मौजूद हैं जो इसे जीवन के अनुकूल बनाते हैं। मंगल अनोखे रूप से सर्वाधिक उपयोगी और उपयुक्त ग्रह है। मंगल अपनी धुरी पर एक चक्कर लगाने में लगभग पृथ्वी के बराबर समय लेता है। मंगल पर पृथ्वी के समान ऋतुचक्र होता है। पृथ्वी की तरह मंगल पर भी वायुमंडल मौजूद है, हालांकि बहुत विरल है।
हाल ही में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने एक रिव्यू रिपोर्ट के ज़रिए यह घोषणा की है कि वह युरोपियन स्पेस एजेंसी ईसा के साथ मिलकर ‘मार्स सैम्पल रिटर्न मिशन’ के तहत मंगल ग्रह की सतह के नमूने पृथ्वी पर लाएगा। इसकी बड़ी वजह यह है कि अगर हमें मंगल ग्रह के बारे में अच्छे से जानना है, तो हमें उसकी सतह के नमूनों का बारीकी से अध्ययन करना होगा। इसी से हम यह जान सकेंगे कि मंगल ग्रह की सतह में किस प्रकार के कार्बनिक अणु मौजूद हैं, और क्या वहां किसी तरह की फसल उगाई जा सकती है।
नमूने इकट्ठा करके धरती पर लाने के लिए रोवर, लैंडर और ऑर्बाइटर का निर्माण काफी पहले ही शुरू हो चुका है। इसके लिए मंगल पर कुछ खास प्रयोग और अन्वेषण करने के लिए ‘परसेवियरेंस रोवर’ रवाना हो चुका है और जो फरवरी में मंगल पर पहुंचेगा।
परसेवियरेंस का मंगल पर सबसे महत्वपूर्ण प्रयोग है ऑक्सीजन का उत्पादन। इसके लिए रोवर के साथ मार्स ऑक्सीजन इनसीटू रिसोर्स युटिलाइजेशन एक्सपेरिमेंट (मॉक्सी) भेजा है। मॉक्सी मंगल की कार्बन डाईऑक्साइड को ऑक्सीजन में बदलने का काम करेगा, जो भविष्य के मंगल यात्रियों के लिए स्वच्छ जीवनदायक हवा मुहैया कराएगी।
परसेवियरेंस अलग-अलग स्थानों से मंगल ग्रह की सतह में मौजूद मिट्टी और चट्टानों के नमूने इकट्ठा करेगा। दूसरे चरण में ईसा का ‘एक्सोमार्स रोवर’ परसेवियरेंस रोवर द्वारा इकट्ठा किए गए सैंपल कैपस्यूल्स को अलग-अलग स्थानों से उठाकर एक जगह पर इकट्ठा करेगा। तीसरे चरण में एक्सोमार्स रोवर इन कैपस्यूल्स को ‘मार्स सैंपल रिट्रीवल लैंडर’ तक ले जाएगा। मार्स सैंपल रिट्रीवल लैंडर अपने विशेष सॉलिड रॉकेट की सहायता से इन कैपस्यूल्स को मंगल ग्रह की कक्षा में तकरीबन 350 कि.मी. की ऊंचाई तक भेजेगा। चौथे चरण में ईसा का ‘अर्थ रिटर्न ऑर्बाइटर’ इन सैंपल कैपस्यूल्स को एक विशेष कंटेनर में इकट्ठा करेगा और अपने सोलर इलेक्ट्रिक आयन इंजन के ज़रिए धरती तक लाएगा। नासा के प्रशासक जिम ब्रिडेनस्टीन के मुताबिक अगर सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो 2030 तक यह विशेष कंटेनर, सैंपल कैपस्यूल्स के साथ धरती पर उतर सकता है और करीब 500 ग्राम सैंपल हमें अध्ययन के लिए मिल जाएगा!(स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.nasa.gov/sites/default/files/thumbnails/image/journey_to_mars.jpeg