धूम्रपान से होने वाले नुकसान तो आज जगज़ाहिर हैं। भले ही अब टीवी-अखबारों या अन्यत्र आपको कहीं धूम्रपान को बढ़ावा देने वाले विज्ञापन देखने ना मिलें, लेकिन एक समय था जब सिगरेट कंपनियों और तंबाकू उद्योग ने सिगरेट का खूब प्रचार किया। विज्ञापनों में सिगरेट पीने वाले को खुशमिज़ाज, बहादुर और स्वस्थ व्यक्ति की तरह पेश किया गया और धूम्रपान को बढ़ावा दिया गया। और अब, इसी राह पर वैपिंग उद्योग चल रहा है। वैपिंग उद्योग की रणनीति को समझने के लिए हमें तंबाकू उद्योग का इतिहास समझने की ज़रूरत है।
वैपिंग या ई-सिगरेट एक बैटरी-चालित उपकरण है, जिसमें निकोटिन या अन्य रसायनयुक्त तरल (ई-लिक्विड या ई-जूस) भरा जाता है। बैटरी इस तरल को गर्म करती है जिससे एरोसोल बनता है। यह एरोसोल सिगरेट के धुएं की तरह पीया जाता है। बाज़ार में ई-सिगरेट के कई स्वाद और विभिन्न तरल रसायनों के विकल्प उपलब्ध हैं।
1950 के दशक में बड़े तंबाकू उद्योग का काफी बोलबाला था। उस समय तंबाकू उद्योग ने सिगरेट को ना सिर्फ मौज-मस्ती के लिए पी जाने वाली वस्तु बनाकर पेश किया बल्कि इसे विज्ञान की वैधता देने की भी कोशिश की। धीरे-धीरे शोध में यह सामने आने लगा कि धूम्रपान सेहत के लिए हानिकारक है। यह फेफड़ों के कैंसर, ह्रदय सम्बंधी तकलीफों व कई अन्य समस्याओं के लिए ज़िम्मेदार है।
लेकिन तंबाकू उद्योग ने स्वास्थ्य सम्बंधी इन खतरों को नकारना शुरू कर दिया। तंबाकू उद्योग ने इन अनुसंधानों को ही कटघरे में खड़ा कर दिया और कहा कि सिगरेट को हानिकारक बताने वाले कोई साक्ष्य मौजूद नहीं हैं। इससे भी एक कदम आगे जाकर तंबाकू उद्योग ने अनुसंधानों के लिए पैसा देना शुरू कर दिया, और ऐसे अनुसंधानो को बढ़ावा दिया जो धूम्रपान के हानिकारक असर को लेकर अनिश्चितता बनाए रखते थे। शोध में यह भी दर्शाया गया कि धूम्रपान स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालता। उद्योग के इस रवैये से धूम्रपान के नियमन में देरी हुई। नतीजा एक महामारी के रूप में हमारे सामने है।
और अब ई-सिगरेट विज्ञान के लिए चुनौती बना हुआ है। कई सालों से ई-सिगरेट को सिगरेट छोड़ने में मददगार और सुरक्षित कहकर, सिगरेट के विकल्प की तरह पेश किया जा रहा है। धीरे-धीरे वैपिंग उद्योग ई-सिगरेट को मज़े, फैशन और स्टाइल का प्रतीक बनाता जा रहा है और इसके उपयोग को बढ़ावा दे रहा है। अमेरिका व कई अन्य देशों में सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों से वैपिंग किशोरों और यहां तक कि मिडिल स्कूल के बच्चों के बीच लोकप्रिय होती जा रही है। वैपिंग उद्योग दो तरह से फैल रहा है: एक तो किशोर उम्र के बच्चे इसके आदी होते जा रहे हैं, और दूसरा, जिन लोगों ने सिगरेट छोड़ दी थी वे अब ई-सिगरेट लेने लगे हैं।
शोध बताते हैं कि ई-सिगरेट के स्वास्थ्य पर लगभग वैसे ही दुष्प्रभाव होते हैं जैसे सिगरेट के होते हैं। अधिकतर ई-सिगरेट में निकोटिन होता है जो ह्रदय सम्बंधी समस्याओं को तो जन्म देता ही है, साथ ही किशोरों के मस्तिष्क विकास को भी प्रभावित करता है। इसके अलावा ई-सिगरेट के अन्य दुष्प्रभाव भी हैं। जैसे कुछ ब्रांड इसमें फार्मेल्डिहाइड का उपयोग करते हैं जो एक कैंसरकारी रसायन है, यानी फेफड़ों के कैंसर की संभावना भी बनी हुई है। वहीं एक शोध में पता चला है कि सिगरेट की लत छोड़ने से भी अधिक मुश्किल ई-सिगरेट की लत छोड़ना है। और, हाल ही में हुए एक शोध में संभावना जताई गई है कि ई-सिगरेट पीने वालों में फेफड़ों की क्षति के चलते कोविड-19 अधिक गंभीर रूप ले सकता है।
लेकिन वैपिंग उद्योग तंबाकू उद्योग के ही नक्श-ए-कदम पर चल रहा है। यह इन दुष्प्रभावों को झुठलाने की कोशिश कर रहा है। इसी प्रयास में इसने अपना एक शोध संस्थान भी स्थापित कर लिया है। वैपिंग उद्योग शोधकर्ताओं को अपने यहां शोध करने का आमंत्रण देकर अपने उत्पाद को वैध साबित करना चाहते हैं। और ई-सिगरेट पीने वालों में आलम यह है कि वे वैपिंग के दुष्प्रभाव बताने वाले शोधों के खिलाफ और वैपिंग के पक्ष में प्रदर्शन करते हैं।
युनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलिना में हेल्थ बिहेवियर के एसोसिएट प्रोफेसर समीर सोनेजी कहते हैं कि चिंता का विषय यह है कि फायदे-नुकसान की इस बेमतलब बहस में ई-सिगरेट के नियमन में देरी हो रही है और इस देरी के आगे गंभीर परिणाम हो सकते हैं। बहरहाल, भारत समेत कुछ देशों ने इसके उपयोग और व्यापार पर कुछ प्रतिबंध तो लगाया है।(स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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