पूर्वी अफ्रीका के शुष्क घास के मैदानों के नीचे भूल-भूलैया जैसी सुरंगों में एक प्रकार की बदसूरत छछूंदर, नैकेड मोल रैट(Heterocephalusglaber) पाई जाती है। त्वचा पर बाल नहीं होते, इसलिए इन्हें नग्न मोल रैट कहते हैं। अधिकांश कृंतकों के विपरीत ये सामाजिक होती हैं। इनके समूहों में सदस्यों की संख्या 300 तक हो जाती है। पूरे समुदाय में केवल एक प्रजननशील जोड़ा रहता है और शेष सभी मज़दूर होते हैं।
हाल ही के शोध में पाया गया है कि चींटी और दीमकों के समान ही यह मोल रैट भी भोजन की उपलब्धता और इलाके में विस्तार करने के लिए आसपास मौजूद अन्य मोल रैट कॉलोनियों पर आक्रमण करते हैं और उनके बच्चों को चुराकर अपने समूह के मज़दूरों की संख्या में वृद्धि करते हैं। इनके इस व्यवहार से छोटी एवं कम एकजुटता वाली मोल रैट कॉलोनियां सिकुड़ती हैं और आक्रामक कॉलोनियों का विस्तार होता जाता है।
कीन्या के मेरु राष्ट्रीय उद्यान में शोध टीम को उपरोक्त व्यवहार नैकेड मोल रैट की गतिविधियों के अध्ययन के दौरान संयोगवश देखने को मिला।
एक दशक से चल रहे शोध में शोधकर्ताओं ने इनकी गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए दर्जनों कॉलोनियों से मोल रैट पकड़-पकड़कर उनकी त्वचा के नीचे एक बहुत छोटी रेडियो फ्रिक्वेन्सी ट्रांसपॉन्डर चिप लगा दी थी। नई कॉलोनी के सदस्यों में चिप लगाने के दौरान शोधकर्ताओं को वहां पड़ोसी कालोनी के वे सदस्य दिखाई दिए जिन पर वे पहले ही चिप लगा चुके थे। आगे खोजबीन करने पर ज्ञात हुआ कि नई कॉलोनी की रानी के चेहरे पर युद्ध के दौरान बने घाव थे। शोध से जुड़े सेन्ट लुईस की वाशिंगटन युनिवर्सिटी के स्टेन ब्राउडे के लिए यह बात आश्चर्यजनक और नई थी क्योंकि इनकी कॉलोनियों के बीच प्रतिस्पर्धा की कोई बात ज्ञात ही नहीं थी बल्कि उन्हें तो आपसी सहयोग की भावना से रहने वाले जीव ही माना जाता था। ब्राउडे और उनके साथियों ने शोध के दौरान पाया कि 26 कॉलोनियों ने अपनी सुरंग की सरहदों को विस्तार देकर पड़ोसी कॉलोनियों पर अधिकार जमा लिया है। आक्रमण के आधे मामलों में तो छोटी कॉलोनी के सभी मोल रैट बेदखल कर दिए गए थे तथा आधे मामलों में छोटी कॉलोनी के सदस्यों को सुरंगों के किनारों तक खदेड़ दिया गया था। इसी अध्ययन के दौरान वैज्ञानिकों को ऐसा लगा कि हमले के दौरान छोटी कॉलोनी के बच्चों को भी चुरा लिया गया है। परंतु तब उन्नत जेनेटिक तकनीक के अभाव में वंशावली ज्ञात कर पुख्ता तथ्य परखना कठिन था। लेकिन बाद के वर्षों में ज्ञात हुआ कि अन्य कॉलोनियों के बच्चे मज़दूर बनकर बड़ी कॉलोनी के अंग बन गए थे। वैज्ञानिकों ने इन पर निगाह रखी और इनके जेनेटिक विश्लेषण से ज्ञात हुआ कि ये दूसरी कॉलोनी के चुराए हुए बच्चे थे। इन छछूंदरों के सामाजिक जीवन के अध्ययन से वैज्ञानिक यह जान पाए हैं कि इनके लिए सुरंगें बहुत मूल्यवान होती है। सुरंगों को खोदने के दौरान ही ज़मीन में पाए जाने वाले कंद इनका आहार होते हैं। कॉलोनी में जितने ज़्यादा मज़दूर होंगे सुरंगें उतनी ही बड़ी होंगी और अधिक भोजन उपलब्ध करा पाएंगी। इसलिए ये आस-पड़ोस की कॉलोनियों पर आक्रमण करके वयस्क सदस्यों को बेदखल कर देते हैं और केवल निश्चित उम्र के बच्चों को ही चुरा कर अपने समूह में सम्मिलित कर लेते हैं जो बड़े होकर इनके लिए मज़दूरी कर सकें।(स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.sciencealert.com/images/2020-10/processed/NakedMoleRatsStealAndEnslaveBabies_1024.jpg