अधिकांश पौधों में वंशवृद्धि बीजों के माध्यम से होती है जो शंकुधारी पौधों में शंकु और बीजधारी पौधों में फूलों से बनते हैं। फूलों का परागण होने का नतीजा होते हैं फल। जब एक फूल का पराग किसी दूसरे या उसी फूल के मादा भाग पर पहुंचता है या किसी अन्य माध्यम से पहुंचाया जाता है तो यह क्रिया परागण कहलाती है।
सुंदर सुगंधित रंगीन फूलों के मालिक पौधों में यह कार्य तरह-तरह के कीटों द्वारा संपन्न होता है जिसे विज्ञान की भाषा में एंटोमोफिली कहते हैं। यह एक लेन-देन की प्रक्रिया है जिसमें परागकणों और मकरंद के ‘लेन’ और बदले में कुछ परागकणों का फूलों का मादा भाग पर ‘देन’ होता है। परागकण दरअसल पौधों की नर प्रजनन इकाइयां हैं जिन्हें हम जंतुओं में शुक्राणुओं के नाम से जानते हैं। जंतुओं के शुक्राणु में तो गति की क्षमता होती है अर्थात वे सचल हैं। परंतु परागकण-रूपी शुक्राणु अचल होते है। अत: इन इकाइयों को तरह-तरह के जंतु अपनी सवारी कराते हैं। परागकणों को अपनी सवारी उपलब्ध कराने वाले जंतुओं को हम परागणकर्ता कहते हैं और परागकणों का यह स्थानांतरण परागण कहलाता है।
जब हम परागणकर्ताओं की एक सामान्य सूची देखते हैं तो उसमें पक्षियों और कीट-पतंगों के नाम प्रमुखता से उभरते हैं। चमगादड़ और घोंघे जैसे जीव भी इस सूची में अपना स्थान पाते हैं। परंतु छिपकली (जो ड्रैगन और डायनासौर की पूर्वज मानी जाती है) का नाम इस सूची में नहीं मिलता। हाल ही में इस तरह की कुछ खोज हुई है जो परागण में इनकी इस भूमिका को उजागर करती है। जैसे गुथरीया यानी हिडन फ्लॉवर और ट्रोकेशिया ब्लेकबर्मियाना में परागण।
लगभग 90 प्रतिशत फूलधारी पौधे अपने परागणकर्ता को आकर्षित करने के लिए चटख भड़कीले रंगों का उपयोग करते हैं। परंतु गुथरिया के फूलों की बात कुछ अलग ही है – ये आसानी से नज़र नहीं आते और अन्य फूलों की तरह लाल-पीले रंगों के भी नहीं हैं। इस पौधे के सामान्य नाम ‘हिडन फ्लॉवर’ से ही पता चलता है कि इसके फूल ज़मीन की सतह पर पत्तियों के नीचे छिपे रहते हैं, और पत्तियों की ही तरह हरे रंग के होते हैं। हालांकि तेज़ गंध के मालिक ये फूल मकरंद से भरे होते हैं। इससे पता चलता है कि कोई तो जंतु है जो मीठा-पौष्टिक मकरंद पाने के लिए इन फूलों को ढूंढ निकालता है। परंतु सवाल यह है कि वह है कौन?
गुथरीया केपेंसिस का सबसे पहले 1876 में वर्णन किए जाने के लगभग 150 साल बाद भी इसके परागण की प्रक्रिया के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। इसमें नर और मादा फूल अलग-अलग होते हैं, पास-पास, एक ही पौधे पर। घंटीनुमा नर फूलों के सिरों पर 5 हरे रंग के पुंकेसर लगे होते हैं। फूलों के केंद्र में पांच नारंगी रंग की मकरंद ग्रंथियां स्पष्ट रूप से देखी जा सकती हैं। मादा फूल में पंचमुखी लौंग के आकार का वर्तिकाग्र बाहर झांकता रहता है।
दक्षिण अफ्रीका के क्वा-ज़ुलु नेटल विश्वविद्यालय और नेदरलैंड की पारिस्थितिकी शोध प्रयोगशाला के शोधार्थियों ने इनके परागण की पहेली का जवाब ढूंढ निकाला है और जर्नल आफ इकॉलॉजी में प्रकाशित किया है। इस दल ने दक्षिण अफ्रीका के विश्व धरोहर स्थल मलोटी-ड्रेकन्सबर्ग राष्ट्रीय उद्यान में इन फूलों को खोजा है। इन फूलों के परागणकर्ता की तलाश के लिए वहां पर गति संवेदी कैमरे लगाए गए और चूहे, गिलहरी जैसे कृंतकों को ललचाने के लिए मूंगफली के दाने भी डाले गए। इस शोध दल का यह विश्वास था कि इन फूलों का परागण निशाचर कृंतकों द्वारा ही होता होगा। अत: कैमरे रात की रिकॉर्डिंग के लिए लगाए गए। पांच दिन के निराशाजनक नतीजों के बाद दल ने अपनी कार्ययोजना को बदलते हुए दिन में भी रिकॉर्डिंग चालू की और कैमरे की गति संवेदनशीलता और बढ़ा दी ताकि छोटे जीव भी इसकी पकड़ में आ सकें। इस युक्ति ने काम किया; एक रात की रिकॉर्डिंग में एक छिपकली नज़र आई जो फूलों के पास आ-जा रही थी। यह लगभग 26 सेंटीमीटर लंबी ड्रैकनबर्ग क्रैग लिज़ार्ड (सुडोकारडायल्स सबविरिडिस) थी। शोधकर्ताओं का कहना है कि उस क्षेत्र में यह बहुतायत से मिलती है परंतु सोचा नहीं था कि छिपकली भी एक प्रमुख परागणकर्ता हो सकती है।
वनस्पति विज्ञानियों के अनुसार छिपकलियों द्वारा फूलों का परागण सबसे बिरला एवं सर्वाधिक कम अध्ययन किया गया परागण तंत्र है। पूरी दुनिया में पहला ऐसा प्रकरण मॉरिशस के मेडेरा द्वीप में देखा गया था। तब से लगभग 40 गेको और छिपकलियों का पता लगाया जा चुका है जो फूलों के आसपास देखी जाती हैं। परंतु फूलों के आसपास मंडराने का मतलब यह नहीं है कि वे उनका परागण भी करती हों। अधिकतर छिपकलियां तो फूलों को खाती है।
पूरी दुनिया में छिपकलियां केवल पांच प्रजातियों के पौधों की परागणकर्ता के रूप में पहचानी गई हैं और मात्र दो प्रजातियां ही प्राथमिक परागणकर्ता के रूप में सरीसृपों की मदद लेती हैं। छिपकलियों द्वारा परागण अक्सर मुश्किल और दुर्गम पर्यावरण में ही होता है। शोधकर्ता यह पता लगाने का प्रयास कर रहे हैं कि वे कौन से लक्षण हैं जो छिपकलियों को फूलों की ओर आकर्षित करते हैं, वे कैसे विकसित हुए हैं और कितने महत्वपूर्ण हैं।
यह पता लगाने के लिए उन्होंने प्रयोगशाला में कुछ नर फूलों पर एक रंगीन पाउडर छिड़क दिया और पाया कि गुलाबी गालों वाली इस छिपकली के मुंह पर रंग लगा था और इस तरह इसने परागकणों को मादा फूलों पर फैला दिया है।
ड्रैकनबर्ग क्रैग छिपकली जब मकरंद भरे फूलों को चाटती है तो इस फूल के परागकण उसके मुंह पर चिपक जाते हैं। कैमरों के फुटेज देखने पर पता लगा कि यह छिपकली ही इसकी परागणकर्ता है। पर यह पक्का करने के लिए जब इन छिपकलियों को पौधों से दूर रखा गया तो इन पौधों द्वारा बनाए जाने वाले फलों का प्रतिशत 95 प्रतिशत तक गिर गया। इस तरह यह तो पक्का हो गया कि यह एक प्राथमिक परागणकर्ता है।
शोध दल के सदस्यों के अनुसार यह तो पता था कि इस द्वीप की कुछ छिपकलियां फूलों पर जाती हैं और यह भी मालूम था कि जहां गुथरिया के फूल मिलते हैं वहां छिपकली बहुतायत में पाई जाती हैं। दोनों की पसंद ऊंचे चट्टानी आवास हैं। पर दोनों के सम्बंध पर विचार नहीं किया गया था। हिडन फ्लॉवर पौधे के फूल अन्य वैसे ही फूलों से मिलते-जुलते हैं जिन्हें चूहे और छछूंदर परागित करते हैं। हालांकि पिछले कुछ वर्षों से यह ज्ञात है कि कुछ छिपकलियां फूलों से पोषण प्राप्त करती हैं पर उन्हें कभी महत्वपूर्ण परागणकर्ता नहीं माना गया था। इस शोध से यह तो पता चल गया कि यह छिपकली इस फूल की परागणकर्ता है परंतु यह पता लगाना बाकी था कि ये छिपकलियां इन फूलों को ढूंढती कैसे हैं, वह भी रात के अंधेरे में। अधिकतर छिपकलियां निशाचर होती हैं। लगता है कि जैव विकास के दौरान उन्होंने कीटों की दावत को मकरंद के चटखारे से बदल लिया है। छिपकली अपने भोजन को केवल गंध के माध्यम से पता लगाती है। हिडन फ्लॉवर्स की गंध के रासायनिक विश्लेषण से पता चला कि इसके यौगिक वनस्पति जगत में अनूठे हैं। ऐसा लगता है कि यही रसायन छिपकलियों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
अफ्रीकन महाद्वीप पर पहला और विश्व भर में यह दूसरा उदाहरण है जिसमें छिपकली प्राथमिक परागणकर्ता है। सरीसृपों से परागित होने वाला दुनिया का पहला खोजा गया पौधा ट्रोकेशिया ब्लैकबर्मियाना था। यह पौधा तीन मीटर ऊंचा होता है और इस पर लाल रंग के फूल खिलते हैं। यह एक नर गेको (छिपकली जैसा जीव) द्वारा परागित होता है, जिसका आवास केवड़े की झाड़ियां हैं। इस परागणकर्ता गेको में चिपकने वाले पंजे नहीं होते। अत: यह छिपकली की तरह दीवारों पर नहीं चल सकती। ये दिन में भी सक्रिय रहती हैं, इनमें बाहरी कान भी नहीं होते।
नारंगी रंग का जादू
अध्ययन करने पर पता चला कि गुथरिया के फूलों के आधार पर छोटी-छोटी नारंगी रंग की मकरंद ग्रंथियां होती है। आश्चर्य की बात यह है कि ये ग्रंथियां नर छिपकलियों में विकसित होने वाले नारंगी धब्बों से मेल खाती हैं जो मादा छिपकलियों को आकर्षित करने का काम करते हैं। और तो और, ट्रोकेशिया फूलों का रंग भी गेको के शरीर पर पाई जाने वाली नारंगी-लाल धारियों से मिलता-जुलता है। इससे यह लगता है कि छिपकलियों से परागित होने वाले फूल उन संकेतों से मेल बैठा रहे हैं जिन्हें ये परागणकर्ता पहले से ही इस्तेमाल करते आए हैं। दोनों की यह समानता दर्शाती है कि ये फूल उस रंग का इस्तेमाल करते हैं जिससे ये सरिसृप फूलों में छिपे मकरंद का पता लगा सकें। ट्रोकेशिया और गुथरिया की ये समानता यहीं समाप्त नहीं होती। दोनों के फूल घंटी नुमा है और इनका मकरंद भी पीला-नारंगी रंग का है। यानी नारंगी रंग एक महत्वपूर्ण लक्षण है इस परागण तंत्र का। छिपकलियों के परागण में योगदान का यह अनूठा संयोजन छिपकलियों की पारिस्थितिकी और ऐसे असामान्य फूलों की कार्यप्रणाली, रूप-रंग के बीच सम्बंधों के अनुसंधान के नए द्वार खोलता है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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