इस वर्ष का भौतिकी का नोबेल पुरस्कार ब्लैक होल के लिए दिया गया है। ब्लैक होल भौतिकी की एक रोमांचक गुत्थी रही है और आज भी यह कई सवालों को जन्म देती है। इस वर्ष के पुरस्कार ने एक बार फिर विज्ञान की मूलभूत प्रकृति को उजागर किया है। इसमें एक ओर तो सैद्धांतिक परिकल्पनाएं और सिद्धांत विकसित करना तथा दूसरी ओर उन परिकल्पनाओं/सिद्धांतों को यथार्थ के धरातल पर परखना शामिल है।
इस वर्ष के पुरस्कार का आधा हिस्सा 92 वर्षीय रॉजर पेनरोज़ को दिया गया है और शेष आधा हिस्सा राइनहार्ड गेंज़ेल तथा एंड्रिया गेज़ के बीच बंटा है।
सबसे पहले तो यह समझ लें कि ब्लैक होल (कृष्ण विवर) होते क्या हैं। ये अत्यंत भारी और सघन पिंड होते हैं। इनका गुरुत्वाकर्षण इतना अधिक होता है कि कोई भी चीज़ इन्हें छोड़कर जा नहीं पाती। और तो और, प्रकाश जैसी द्रुतगामी चीज़ भी ब्लैक होल के गुरुत्वाकर्षण में फंसकर रह जाती है।
अल्बर्ट आइंस्टाइन ने 1915 में सामान्य सापेक्षता का सिद्धांत प्रस्तुत किया था। इस सिद्धांत ने गुरुत्वाकर्षण की ज़्यादा संतोषजनक व्याख्या की और बताया कि कैसे वज़नदार पिंड अपने आसपास के स्थान और समय को तोड़ते-मरोड़ते हैं। इस सिद्धांत ने सूर्य के आसपास ग्रहों के परिक्रमा पथों की व्याख्या की, आकाशगंगा के केंद्र के इर्द-गिर्द सूर्य की परिक्रमा की व्याख्या की। कोई भी भारी पिंड स्थान को विकृत करता है और समय की चाल को धीमा कर देता है। और अत्यंत भारी हो तो वह स्थान के एक टुकड़े को इस तरह अपने में समा लेता है कि वह बाहर से अदृश्य हो जाता है। ऐसे भारी सघन पिंड को ब्लैक होल कहते हैं।
आइंस्टाइन के सामान्य सापेक्षता सिद्धांत का एक तकाज़ा यह था कि ब्लैक होल का अस्तित्व होना चाहिए। पेनरोज़ ने निहायत जटिल एवं नवाचारी गणनाओं के द्वारा यह दर्शाया था कि ब्लैक होल वास्तव में हो सकते हैं। वैसे सिद्धांत के प्रकाशन के चंद हफ्तों बाद ही जर्मन भौतिक शास्त्री कार्ल श्वार्ज़चाइल्ड ने ब्लैक होल सम्बंधी भविष्यवाणी प्रस्तुत की थी। आगे अध्ययनों से पता चला था कि जब कोई ब्लैक होल बनता है तो उसके आसपास एक सीमा होती है जिसे इवेंट होराइज़न कहते हैं। इवेंट होराइज़न वह सतह है जिसके अंदर जाने के बाद कुछ भी वापिस बाहर नहीं निकलता। जितना अधिक द्रव्यमान होगा इवेंट होराइज़न उतना ही विशाल होगा। यदि हम यह सोचें कि सूर्य के बराबर द्रव्यमान वाला ब्लैक होल बनेगा तो उसका इवेंट होराइज़न लगभग तीन किलोमीटर व्यास का होगा और यदि पृथ्वी ब्लैक होल में परिवर्तित हुई तो उसके इवेंट होराइज़न का व्यास मात्र 9 मि.मी. होगा।
ब्लैक होल जो भी हो, लेकिन भौतिक शास्त्रियों के लिए ये विशालकाय तारों के जीवन चक्र के अंतिम पड़ाव होते हैं। विशालकाय तारों के नाटकीय रूप से ढहने की सबसे पहली गणना रॉबर्ट ओपनहाइमर ने की थी। उन्होंने बताया था कि जब सूर्य से कई गुना भारी तारे में नाभिकीय र्इंधन चुक जाता है तो वह अचानक फैलता है और सुपरनोवा बन जाता है। फिर फैलने के लिए और ऊर्जा न बचने पर वह अपने गुरुत्वाकर्षण के कारण सिकुड़ता है और अत्यंत सघन पिंड बन जाता है – यही ब्लैक होल है।
लेकिन 1960 तक यह सिर्फ सैद्धांतिक गणना थी। इसमें भारतीय वैज्ञानिक चंद्रशेखर ने गणना करके बताया था कि किसी तारे की ऐसी स्थिति तब हो सकती है जब उसका द्रव्यमान सूर्य से डेढ़ गुना से अधिक हो, जिसे चंद्रशेखर सीमा कहते हैं।
ब्लैक होल के अस्तित्व का मुद्दा एक बार फिर 1963 में सुर्खियों में आया जब क्वासर की खोज हुई। खगोल शास्त्री इस अवलोकन को लेकर चक्कर में थे कि ब्रह्मांड में रेडियो किरणों के रहस्यमय स्रोत हैं। जैसे, कन्या तारामंडल में ऐसा ही एक स्रोत खोजा गया था – 3क्273 – जो हमसे इतना दूर है कि वहां से चले प्रकाश को हम तक पहुंचने में अरबों साल लगते हैं। कयास लगाया गया कि यदि यह स्रोत इतना दूर है तो अवश्य ही यह अत्यंत दैदीप्यमान – कई सैकड़ों निहारिकाओं के बराबर चमकदार – होगा क्योंकि तभी तो उसका प्रकाश हम तक पहुंच पाएगा। इसे क्वासर नाम दिया गया था। यह भी स्पष्ट था कि जो प्रकाश आज हम तक पहुंच रहा है वह तब उत्पन्न हुआ होगा जब ब्रह्मांड अपने शैशव में था। क्वासर के प्रकाश का स्रोत यह होना चाहिए कि बाहरी पदार्थ किसी ब्लैक होल में समा रहा है।
अंतत: रॉजर पेनरोज़ ने गणना करके बताया कि किन परिस्थितियों में ब्लैक होल का निर्माण हो सकता है। उन्होंने इस गुत्थी को सुलझाने के लिए जिस अवधारणा का सहारा लिया वह थी बंदी सतह (ट्रैप्ड सर्फेस) की अवधारणा। बंदी सतह उसे कहते हैं जो सारी किरणों को केंद्र की ओर निर्दिष्ट करती है। पेनरोज़ यह दर्शाने में सफल रहे थे कि ब्लैक होल अपने अंदर एक सिंगुलेरिटी को छिपाए रखता है और इसका घनत्व अनंत होता है। गुत्थी को सुलझाने के लिए पेनरोज़ ने जिन विधियों का विकास किया था, वे आज भी ब्रह्मांड के अध्ययन में उपयोगी हैं।
ब्लैक होल के अंदर क्या होता है, इसे जानने का कोई तरीका नहीं है क्योंकि एक बार जो चीज़ अंदर गई वह कभी बाहर नहीं आती। ब्लैक होल अपने इवेंट होराइज़न के अंदर सारे राज़ दबाए रखते हैं। अलबत्ता, चाहे हम इन्हें देख न सकें लेकिन इनके शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव का अवलोकन ज़रूर कर सकते हैं। खास तौर से ब्लैक होल के आसपास स्थित तारों की गति में इसकी छाप नज़र आ जाती है।
राइनहार्ड गेंज़ेल और एंड्रिया गेज़ ने यही नज़ारा देखने के लिए हमारी अपनी मंदाकिनी ‘आकाशगंगा’ के केंद्र पर नज़रें गड़ार्इं। आकाशगंगा एक चपटी तश्तरी जैसी है और लगभग 1 लाख प्रकाश वर्ष चौड़ी है। इसमें गैसों और धूल के अलावा चंद सैकड़ों अरब तारे हैं। लेकिन दिक्कत यह है कि आकाशगंगा के केंद्र से जो प्रकाश निकलता है, उसके और हमारे बीच मौजूद गैसें और धूल उसमें से अधिकांश दृश्य प्रकाश को रोक देती हैं। इंफ्रारेड व रेडियो तरंग दूरबीनें बनने के बाद ही आकाशगंगा के केंद्र को देख पाना संभव हुआ।
उस क्षेत्र के तारों के परिक्रमा पथों का इस्तेमाल करते हुए गेंज़ेल और गेज़ ने पहली बार (1990 के दशक में) इस बात का अकाट्य प्रमाण प्रस्तुत किया कि आकाशगंगा के केंद्र में कोई अति-वज़नी अदृश्य पिंड मौजूद है। इसके लिए दोनों शोधकर्ताओं ने विशिष्ट उपकरणों और तकनीकों का विकास किया। इनकी मदद से वे केंद्र में स्थित तारों की गति का बारीकी से अध्ययन कर पाए।
दोनों वैज्ञानिक ने तारों के जमघट के बीच तीस के आसपास सबसे चमकीले तारों पर ध्यान केंद्रित किया। देखा गया है कि केंद्र से एक प्रकाश माह की दूरी तक के तारे सबसे तेज़ चलते हैं और लगता है कि मधुमक्खियां इधर-उधर भाग रही हैं। इसके बाहर स्थित तारे नियमित रूप से अपने-अपने अंडाकार पथों पर गति करते हैं। ऐसा एक तारा S2 आकाशगंगा के केंद्र की एक परिक्रमा मात्र 16 साल में पूरी कर लेता है। तुलना के लिए यह देखिए कि हमारे सूर्य को आकाशगंगा के केंद्र की परिक्रमा में 20 करोड़ साल लगते हैं।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि गेंज़ेल और गेज़ दोनों की टीमों के मापन में ज़बरदस्त साम्य है। उन दोनों की गणनाओं से निष्कर्ष यह निकलता है कि आकाशगंगा के केंद्र में स्थित ब्लैक होल का द्रव्यमान हमारे सूर्य से 40 लाख गुना अधिक है और यह पूरा द्रव्यमान हमारे सौरमंडल की साइज़ में कैद है।
तो कहानी यह है कि आइंस्टाइन के सामान्य सापेक्षता सिद्धांत से यह सैद्धांतिक भविष्यवाणी सामने आई कि ब्लैक होल हो सकते हैं। रॉजर पेनरोज़ ने जटिल व नवाचारी गणनाओं की मदद से वास्तविक परिस्थितियों में ब्लैक होल के निर्माण की संभावना दर्शाई और गेंज़ेल व गेज़ ने वास्तविक अवलोकनों से इस संभावना का साकार रूप उजागर किया। और अब तो खगोलविदों ने एक ब्लैक होल की तस्वीर भी शाया कर दी है।(स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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