दो जंतुओं में भोजन एवं प्रजनन के लिए झगड़ा होना आम बात है परंतु झगड़े से पूरे समुदाय का दो पक्षों में बंटवारा और गुटों का निर्माण जंतुओं के समाज में कम ही देखा गया है। कठफोड़वा (मेलानिर्पस फार्मिसिवोरस) समूह में रहने और प्रजनन करने वाले पक्षी हैं। शरद ऋतु के आगमन पर ये मेवे (नट्स) एकत्रित कर, पेड़ों में बनाए गए छेदों (भंडार) में रख देते हैं। इससे भीषण ठंड के समय भोजन की उपलब्धता उनके जीवित रहने की संभावना और प्रजननशीलता दोनों को बढ़ाती है। प्रजननकारी सदस्य की असामयिक मृत्यु और उसके इलाके को हथियाने के लिए नर या मादाओं के बीच सत्ता संघर्ष प्रारंभ हो जाता है। पड़ोसी दल भी इस गुटबाज़ी में शरीक हो जाते हैं।
हाल ही में वैज्ञानिकों ने एक स्वचालित रेडियो-टेलीमेट्री प्रणाली का उपयोग कर कठफोड़वों में भोजन तथा प्रजनन के लिए संघर्ष, सत्ता परिवर्तन और सामाजिक ढांचे को बेहतर तरीके से समझा है। ओल्ड डोमेनियन युनिवर्सिटी के बायोलॉजिकल साइंस विभाग में कार्यरत डॉ. सहस बर्वे का शोध करंट बायोलॉजी नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। डॉ. बर्वे और उनकी टीम ने अपना शोध कार्य कैलिफोर्निया और दक्षिण-पश्चिम संयुक्त राज्य अमेरिका के तटीय जंगलों में किया।
कठफोड़वा का समाज जटिल होता है। प्रत्येक परिवार में अधिकतम 7 वयस्क नर होते हैं जो रिश्ते में भाई होते हैं। पूरा परिवार लगभग 15 एकड़ के शाहबलूत (ओक) पेड़ों के इलाके की रखवाली करके एक साथ रहता है। प्रत्येक नर एक से तीन मादाओं से प्रजनन करता है जो अक्सर दूर के रिश्ते की बहनें होती हैं। इनके परिवार में बाद में जन्मे सदस्य भी होते हैं जिन्हें हेल्पर या मददगार कहते हैं। मददगार सदस्य अपने मूल परिवार के साथ 5-6 वर्षों तक बने रहकर अपने सहोदरों के लिए दाई मां यानी पालन-पोषण का कार्य करते हैं। जब वे खुद का परिवार बनाने जितने बड़े हो जाते हैं तो नए इलाके खोजकर मूल परिवार से दूर चले जाते हैं। यदि हेल्पर दाई मां के कार्य छोड़कर उसी समूह में प्रजनन का प्रयास करते हैं तो सत्ता संघर्ष प्रारंभ हो जाता है। ऐसी परिस्थितियां तब निर्मित होती हैं जब मुखिया और उसकी मादाएं वृद्ध और कमज़ोर हो जाते हैं।
डॉ. बर्वे और उनकी शोध टीम ने 2018 से 2019 के बीच मादाओं के अभाव के कारण तीन कठफोड़वा परिवारों के सत्ता संघर्ष का नज़दीकी से अध्ययन किया। इलाके पर अपना अधिकार जमाने के लिए बलशाली मादा या नर कठफोड़वों के बीच आपस में युद्ध होता है। प्रतिदिन युद्ध प्रारंभ होने के पहले ही सभी कठफोड़वों को संदेश मिल जाता है और तमाशा-ए-युद्ध को देखने के लिए एक ही घंटे में दूर-दूर से अनेक तमाशबीन कठफोड़वा जमा हो जाते हैं। प्रत्येक कठफोड़वा पंख फैलाकर तथा चोंच से हमले कर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करता है और प्रतिद्वंदी को खून से लथपथ, अंधा तथा अपंग कर देता है। विजेता कठफोड़वा को दर्जन भर परिवारों की लगभग 50 मददगार मादाओं का साथ मिलता हैं।
नई वयस्क कठफोड़वा मादाएं प्रतिदिन आसपास के इलाकों से आकर युद्ध करती थीं और वापस अपने आवास में लौट जाती थीं। मादाएं कई बार चार दिनों तक लगातार दस-दस घंटों तक युद्ध करती थीं। वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि इस दौरान सभी तमाशबीन कठफोड़वा अपने समाज के सदस्यों के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं। दर्शकों के रूप में मौजूद रहने से उनके लिए सहोदरों के साथ नए गठजोड़, नए इलाके, योद्धाओं का स्वास्थ्य, इलाकों की संपन्नता आदि का आकलन करना संभव होता हैं। दर्शक के रूप में आए कठफोड़वा अपने अनाज के भंडार, इलाकों की रखवाली, रोज़मर्रा के कार्य और युद्ध-स्थल तक पहुंचने की थकान जैसे जोखिम भी मोल ले लेते हैं। ऐसा लगता है कि इतने जोखिम लेने के फायदे भी होंगे। वैज्ञानिकों को लगता है कि कठफोड़वा समाज के प्रत्येक सदस्य का व्यवहार पूरे समाज को प्रभावित करता है।(स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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