गुज़रे दिनों मानव गतिविधियों पर लगी पाबंदी से जीव-जंतुओं की हलचल बढ़ने की खबरें मिली हैं। शहरों में छाई अचानक शांति में लोगों ने गौर किया कि गोरैया पक्षी कितनी तेज़ आवाज़ निकालते हैं। जबकि साइंस पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया कि वास्तव में उनके गीतों की आवाज़ मंद पड़ी थी। गोरैयों ने बैंडविड्थ बढ़ाकर अपने गीतों में नीचे सुरों को शामिल किया था, जो शोधकर्ताओं के मुताबिक मादाओं को ज़्यादा लुभाते हैं।
दरअसल टेनेसी विश्वविद्यालय की जंतु संप्रेषण विज्ञानी एलिज़ाबेथ डेरीबेरी काफी समय से सफेद मुकुट वाली नर गोरैया (ज़ोनोट्रीकिया ल्यूकोफ्रिस) के गीतों का अध्ययन करती रही हैं। उन्होंने सैन फ्रांसिस्को के आसपास के शोर भरे शहरी वातावरण में रहने वाली गोरैया और शांत ग्रामीण वातावरण में रहने वाली गोरैया के गीतों की तुलना की थी। (मादा गोरैया शायद ही कभी गाती हों)। उन्होंने पाया था कि ग्रामीण इलाकों की गोरैया की तुलना में शहरी गोरैया ऊंची आवाज़ में और उच्च आवृत्ति पर गाती हैं। शायद इसलिए कि यातायात और मानव जनित शोर के बीच साथियों तक उनकी आवाज़ पहुंच सके।
तालाबंदी के दौरान शहरों के शोर में आई कमी के कारण गोरैया के गीतों पर पड़े प्रभावों को जानने के लिए डेरीबेरी और उनके साथियों ने उन्हीं स्थानों पर गोरैया के गीतों का अध्ययन किया। तुलना के लिए पहले की रिकॉर्डिंग थी ही।
चूंकि डेरीबेरी सैन फ्रांसिस्को में नहीं थीं इसलिए उनकी साथी जेनिफर फिलिप ने उन्हीं स्थानों पर गोरैयों की आवाज़ और शोर रिकार्ड करके डेरीबेरी को भेजा। ध्वनि के विश्लेषण में देखा गया कि ग्रामीण इलाकों के शोर के स्तर में खास कमी नहीं आई थी लेकिन शहरी इलाके के शोर में कमी आई थी, और वह लगभग ग्रामीण इलाकों जैसे हो गए थे। यानी इस दौरान शहरी और ग्रामीण दोनों इलाकों का शोर का स्तर लगभग समान हो गया था।
यह भी देखा गया कि जब शहरों का शोर कम हुआ तो शहरी गोरैया की आवाज़ भी मद्धम पड़ गई। उनकी आवाज़ में लगभग 4 डेसिबल की कमी देखी गई। उनके गीतों की आवाज़ मंद हो जाने के बावजूद उनके गीत स्पष्ट और अधिक दूरी तक सुनाई दे रहे थे, क्योंकि उनकी आवाज़ में आई कमी शहर के शोर में आई कमी से कम थी। स्पष्ट है कि तालाबंदी के दौरान पक्षी ज़ोर से नहीं गाने लगे थे।
आवाज़ कम होने के अलावा, गोरैया के गीतों की बैंडविड्थ भी बढ़ गई थी। खासकर उन्होंने निचले सुर वाले गीत गाए, जो पहले शोर भरे माहौल में गुम हो जाते थे। पूर्व के अध्ययनों में यह देखा गया है कि मादा गोरैया को वे नर अधिक आकर्षित करते हैं जो जिनके गीतों की बैंडविड्थ अधिक होती है।
हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि इस वसंत में परिवर्तित गीतों के कारण शहरी गोरैया की प्रजनन सफलता प्रभावित हुई है या नहीं। लेकिन यह अध्ययन बताता कि प्राकृतिक तंत्र मानव हस्तक्षेप में कमी आने पर तुरंत प्रतिक्रिया देना शुरू कर देता है।
भले ही शोरगुल फिर बढ़ने लगा है लेकिन उम्मीद है कि इन नतीजों को देखकर लोग शोर कम करने की सोचें। संभवत: वे अधिक घर से काम करने के बारे में सोचें, या ध्वनि रहित इलेक्ट्रिक वाहन लेने पर विचार करें।(स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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