चींटियां कई जंगली पौधों के बीज फैलाती हैं। इस सेवा के बदले में पौधे चींटियों के लिए अपने बीज के आवरण पर एक पोषण-युक्त हिस्सा, इलेयोसम, जोड़ देते हैं। यह न सिर्फ चींटियों के बच्चों के लिए पोषण उपलब्ध कराता है बल्कि इसकी मदद से चींटियों को बीजों को पकड़ने में भी मदद मिलती है। लेकिन इकोलॉजिकल सोयायटी ऑफ अमेरिका की ऑनलाइन वार्षिक बैठक में यह बात सामने आई है कि बीज और चींटियों के बीच रिश्ता इस लेन-देन से अधिक है।
एक तो यह पता चला है कि चींटियां सिर्फ बीजों को ढोकर अपनी बांबी तक ले जाने का काम नहीं करती हैं बल्कि वे कुशल बागवान की तरह इनके उगने में भी मदद करती हैं। यह देखा गया है कि जिन जंगलों में चींटियां कम हो जाती हैं, वहां ये बीज उपयुक्त उपजाऊ मिट्टी तक पहुंच नहीं पाते। यानी यदि चींटियां न रहीं तो ये पौधे भी खतरे में पड़ जाएंगे।
अब तक यही माना जाता था कि ये चींटियां बीज को अपनी बांबी तक ले जाती हैं और वहां उनके बच्चे इनके इलेयोसम को खा डालते हैं और बीज को छोड़ दिया जाता है जहां उगने के लिए अनुकूल परिस्थिति मिल जाती है। लेकिन टेनेसी विश्वविद्यालय के चार्ल्स क्विट को लगा कि शायद बात इतनी ही नहीं है।
यह देखा गया है कि अन्य चींटियों की तरह बीज-वाहक चींटियां भी खुद को और अपनी साथी चींटियों को साफ रखने के लिए सूक्ष्मजीव-रोधी रसायनों का रुााव करती हैं। क्विट के मन में सवाल आया कि ये सूक्ष्मजीवनाशक (विसंक्रामक) रसायन बीजों के सूक्ष्मजीव समुदाय और उनके स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव डालते होंगे? इसका जवाब तलाशने के लिए उनकी टीम ने तीन इस तरह के पौधों – जंगली अदरक, ब्लडरूट और ट्विनलीफ – के बीजों के छिलके पर मौजूद सूक्ष्मजीवों के डीएनए को अलग करके अनुक्रमित किया। इनके बीजों को फैलाने का काम चींटियां करती हैं। उन्होंने देखा कि पहले तो प्रत्येक प्रजाति के बीज में एक जटिल और अनूठा सूक्ष्मजीव संसार था, लेकिन चींटी द्वारा बीज ले जाने के बाद बीजों का सूक्ष्मजीव संसार सीमित हो गया और सभी प्रजातियों के बीजों का सूक्ष्मजीव संसार लगभग एक-जैसा हो गया। शोधकर्ताओं के अनुसार सूक्ष्मजीव संसार में परिवर्तन बीजों के फैलाव के बाद के भक्षण, सुप्तावस्था, जीवनक्षमता, अंकुरण के समय और नए-नवेले पौधों के स्वास्थ्य को प्रभावित करता होगा।
यह भी पाया गया कि चींटियां कुछ बीजों को प्राथमिकता देती हैं। शोधकर्ताओं ने जब चींटियों को ट्रिलियम की विभिन्न प्रजातियों के बीज दिए तो चींटियों ने कुछ प्रजातियों के बीजों को चुना जबकि अन्य बीजों को छोड़ दिया।
चींटियां बीजों को किस आधार पर वरीयता देती हैं यह जानने के लिए शोधकर्ताओं ने इलेयोसम का मास स्पेक्ट्रोस्कोपी और अन्य तकनीकों की मदद से विश्लेषण किया। उन्होंने पाया कि चींटियां पौधे द्वारा बनाए गए ओलीक एसिड और अन्य यौगिकों के विशिष्ट संयोजन और सांद्रता के आधार पर बीज चुनती हैं। इस तरह चींटियों का स्वाद या चुनाव पौधों की प्रजातियों के विस्तार को प्रभावित कर सकता है।
शोधकर्ता बताते हैं कि मानव गतिविधियां भी बीज-चींटी साझेदारी को प्रभावित करती हैं। कई लोगों को लगता था कि चींटियां जंगल की सफाई जैसे हस्तक्षेप के बाद पुन: अपने स्थान पर लौट आती हैं। लेकिन होल्डन वृक्ष उद्यान की इकॉलॉजिस्ट केटी स्टबल ने अपने अध्ययन में पाया कि जिन जंगलों को मानव द्वारा कभी साफ नहीं किया गया था उन जंगलों की तुलना में जिन जंगलों को दशकों पहले साफ किया गया था उनमें आक्रामक केंचुए अधिक थे और और बीज-वाहक चींटियों की संख्या कम थी। इससे पता चलता है पूर्व में हुए हस्तक्षेप के प्रभाव काफी लंबे समय तक बने रहते हैं। इन प्रभावों से यह समझा जा सकता है कि क्यों द्वितीयक वन कम घने होते हैं और वहां वे पेड़-पौधे दुर्लभ होते हैं जिनके बीजों की वाहक चींटियां होती हैं।
इसी तरह, उत्तर-पूर्वी उत्तर अमेरिका के एक सर्वेक्षण में पाया गया था कि कभी साफ ना किए गए जंगलों की तुलना में द्वितीयक वनों में बीज-वाहक चींटियों की संख्या कम थी।
यदि चींटियां विलुप्त हो गईं तो मुमकिन है कि इन चीटियों पर निर्भर पौधे और उन पौधों पर निर्भर जीवों की प्रजातियां भी नष्ट हो जाएंगी। यदि पेड़-पौधों को बहाल करना है तो हमें इनके बीजों को फैलाने वाली प्रजातियों को भी बहाल करने के बारे में सोचना चाहिए।(स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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