कोविड-19 पर अनिश्चितताओं के बीच एक सवाल उभर कर आ रहा है कि क्या इस बीमारी से ठीक होने वाले लोग कोरोनावायरस के प्रति टिकाऊ दूरगामी प्रतिरक्षा विकसित कर पाएंगे? इस सम्बंध में रैगन इंस्टिट्यूट ऑफ एमजीएच, एमआईटी के इम्यूनोलॉजिस्ट शिव पिल्लई और हार्वर्ड के एक शोध समूह ने कोविड-19 से मरने वाले लोगों के शव-परीक्षण में देखा कि उनके शरीरों में कथित जर्मिनल केंद्र अनुपस्थित थे।
जर्मिनल केंद्र एक तरह से प्रतिरक्षा कोशिकाओं की पाठशालाएं हैं। ये केंद्र तिल्ली और लसिका ग्रंथियों में पाए जाते हैं। यहां प्रतिरक्षा कोशिकाएं किसी रोगजनक के विरुद्ध लंबे समय तक चलने वाली एंटीबॉडी प्रतिक्रिया देना सीखती हैं। हालांकि यह निष्कर्ष हल्के लक्षण या लक्षण-रहित लोगों पर लागू नहीं होते लेकिन इनसे सबसे गंभीर मामलों में कोविड-19 प्रगति की व्याख्या करने और टीका विकसित करने में मदद मिल सकती है। इससे यह भी पता चलता है कि कुछ लोगों में एंटीबॉडी-प्रतिक्रिया अल्प अवधि के लिए भी हो सकती है और व्यक्ति को यह संक्रमण दोबारा भी हो सकता है।
इसके लिए पिल्लई और उनके सहकर्मियों ने कोविड-19 से मरने वाले 11 लोगों की तिल्ली और वक्ष की लसिका ग्रंथियों का विश्लेषण किया जहां फेफड़ों की प्रतिरक्षा कोशिकाएं पहुंचती हैं। इन की तुलना समान आयु वर्ग के 6 अन्य लोगों से की गई जिनकी मृत्यु किसी अन्य कारण से हुई थी। सामान्य हालात में तिल्ली और लसिका ग्रंथियां एंटीबॉडी बनाने वाली बी-कोशिकाओं को नव-निर्मित जर्मिनल केंद्रों में एकत्रित करती हैं। इन विशिष्ट सूक्ष्म संरचनाओं में कोशिकाएं परिपक्व होती हैं और वायरस के प्रति एंटीबॉडी प्रतिक्रिया को परिष्कृत करती हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार कोविड-19 से मरने वाले लोगों के शव-परीक्षण में ये जर्मिनल केंद्र नहीं पाए गए। एक पूर्व परीक्षण में भी यही पाया गया था ।
देखा गया है कुछ कोविड-19 संक्रमणों में साइटोकाइन्स नामक जैव-रसायनों का तूफान आ जाता है। यह शोथ व गंभीर रोग का कारण बन जाता है। वैसे साइटोकाइन्स संक्रमणों की प्रतिक्रिया में बी-कोशिकाओं और प्रतिरक्षा प्रणाली के अन्य किरदारों को संदेश भेजते हैं। पिल्लई की टीम ने कोविड-19 मृतकों की लसिका ग्रंथियों में एक प्रकार के साइटोकाइन (TNF-α) की मात्रा में वृद्धि पाई। शोधकर्ताओं ने टाइप-टी कोशिका की भी कमी पाई जो जर्मिनल केंद्र बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। संभवत: TNF-α ही टी-कोशिकाएं बनने से रोकता है।
अन्य इम्यूनोलॉजिस्ट की तरह पिल्लई का भी ऐसा मानना है कि सार्स-कोव-2 के विरुद्ध ठीक तरह से तैयार किया गया टीका टिकाऊ एंटीबॉडी प्रक्रिया दे सकता है। लेकिन उनका मानना है कि टीका विकसित करने वाले समूहों के लिए इस अध्ययन के निष्कर्ष काफी महत्वपूर्ण हो सकते हैं। पिल्लई के अनुसार यदि लसिका ग्रंथियों में अत्यधिक TNF- α का निर्माण हुआ तो शायद टीकाकरण लंबे समय तक सुरक्षा नहीं दे पाएगा।(स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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