सार्स-कोव-2 के कहर के चलते मार्च से जून के लंबे व सतत लॉकडाउन में वीडियो व टेलीफोन कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए काम करने के दौरान आसपास ततैया को उड़ते देखना मेरे लिए आम बात थी। इसी दौरान एक बावली (क्रेज़ी) ततैया दीवार पर मिट्टी के लौंदे ला-लाकर घरौंदा बनाने के मिशन में जुटी दिखी। इस ततैया पर मेरा ध्यान टिक गया। जब घरौंदा बन गया तो फिर वह बाहर जाती और मुंह और टांगों में देसी मटर की फली जैसी इल्लियों को दबाकर लाती और घरौंदे के अंदर दफन कर देती। इन इल्लियों को अपने डंक से बेहोश कर उसके शरीर में मादा ततैया अंडे देती है। अंडों से निकले बच्चे बेहोश इल्ली को नोंच-नोंचकर खाते हैं।
इस पर एक मामूली से सवाल ने मुझे बैचेन कर दिया। सवाल यह कि ततैया जिस इल्ली को पकड़कर दफन करती है वह ततैया के अंडों व उनसे निकलने वाली इल्लियों की खिलाफत क्यों नहीं करती? इल्ली का प्रतिरक्षा तंत्र ततैया के अंडों व परिवर्धित हो रही इल्ली व प्यूपा के विरुद्ध प्रतिक्रिया क्यों नहीं करता? जाहिर है कि दुनिया के समस्त जीवों में प्रतिरक्षा प्रणाली होती है जो शरीर में किसी भी बाहरी आक्रमण या संक्रमण के प्रति सजग होती है और उसके खिलाफ प्रतिक्रिया व्यक्त करती है। तो उस दफन इल्ली और ततैया की संतान के मामले में राज़ क्या है?
1967 के दौरान वैज्ञानिकों को पता चला कि मादा ततैया जब बेहोश की गई तितली के शरीर में ओविपोज़िटर के रास्ते से अंडे देती है तो वे अंडों के साथ कुछ छोटे कणों को भी इंजेक्ट करती है। यह समझने में लगभग एक दशक का वक्त लगा कि दरअसल मादा ततैया अंडों के साथ जो इंजेक्ट करती है वे वायरस हैं जिन्हें पोलीड्नावायरस (पीडीवी) कहा जाता है। यह देखा गया है कि ततैया की प्रत्येक प्रजाति में एक खास तरह का पोलीड्नावायरस होता है। इन वायरसों का काम एक ही है – ये भक्षण की शिकार इल्ली की प्रतिरक्षा प्रणाली को कमज़ोर बना देते हैं ताकि उस पर पनप रहे ततैया के अंडे व अंडों से निकली इल्लियां व प्यूपा सुरक्षित रहते हुए वयस्क में कायांतरित हो सकें।
अगर ये वायरस न हों तो इल्ली का प्रतिरक्षा तंत्र ततैया के बच्चों के खिलाफ प्रतिक्रिया व्यक्त करेगा और उन्हें पनपने से रोकेगा। तो, एक ओर जो पोलीड्नावायरस बेहोश मेज़बान इल्ली की प्रतिरक्षा प्रणाली को ध्वस्त करता है वही ततैया और वायरस के बीच सहजीविता की एक मिसाल है।
पोलीड्नावायरस डबल डीएनए वायरस का एक परिवार है जो खास तौर पर ततैया से ताल्लुक रखता है। ये पोलीड्नाविरिडी कुल के सदस्य हैं। इस परिवार में वायरस की 53 प्रजातियां हैं जो शिकारी परजीवी ततैयाओं में ही पाई जाती हैं।
ये वायरस एक अनोखे जैविक तंत्र का हिस्सा हैं जिसमें एक अंत:परजीवी (यानी ततैया की इल्ली), एक मेज़बान (इल्ली) व वायरस शामिल हैं। वायरस का संपूर्ण जीनोम अंतर्जात होता है जो मादा ततैया के अंडाशय में अपनी प्रतिलिपियां बनाता हैं। जब मादा अंडे देती है तो अंडों के साथ यह वायरस मेज़बान इल्ली में इंजेक्ट करती है जो इल्ली को संक्रमित कर कमज़ोर कर देते हैं। खास बात यह है कि पोलीड्नावायरस मेज़बान इल्ली में अपनी प्रतिलिपियां नहीं बना पाता है बल्कि मादा ततैया द्वारा इंजेक्ट किए गए वायरस ही उसे संक्रमित करते हैं। पोलीड्नावायरस की प्रतिलिपियां मात्र ततैया के प्रजनन तंत्र के अंडाशय की विशेषीकृत कोशिकाओं (कैलिक्स) के केंद्रक में ही बनना संभव है। ऐसा इसलिए कि ततैया के जीनोम में पोलीड्नावायरस के ऊपर प्रोटीन का खोल चढ़ाने वाले जीन मौजूद होते हैं। ये जीन इल्ली के जीनोम में अनुपस्थित रहते हैं। इसलिए पोलीड्नावायरस इल्लियों के शरीर में प्रजनन करके अपनी प्रतिलिपियां बनाने में असमर्थ होता है। इस प्रकार मेज़बान इल्ली पर ततैया का जीवन चक्र पूरा हो पाता है।
पोलीड्नावायरस ततैया प्रजातियों में आम तौर पर नर व मादा दोनों में पाए जाते हैं। लेकिन ये केवल अंडे देने के दौरान ही मादा द्वारा इंजेक्ट किए जाते हैं। यह देखा गया है कि ततैया के जीवन चक्र की प्यूपा अवस्था में अंडाशय में पोलीड्नावायरस की प्रतिलिपियां बनने की प्रक्रिया शुरू होती है जो वयस्क अवस्था तक जारी रहती है।
पोलीड्नावायरस की दूसरी खासियत यह है कि यह वायरस मेज़बान इल्ली की कोशिकाओं में डीएनए को पहुंचाने का काम करता है ताकि परजीवीता को सफल बना सके। उद्विकास की प्रक्रिया में पोलीड्नावायरस व ततैया के बीच तालमेल हुआ और परजीविता को अंजाम दिया गया।
ततैया के वायरस कैसे इल्ली की प्रतिरक्षा प्रणाली को कमज़ोर बनाते हैं इसका अध्ययन नैन्सी बैकेज के नेतृत्व में किया गया। ततैया कई सारे अंडे इल्ली के शरीर में डालती है। ततैया के अंडों से निकली इल्लियां मेज़बान इल्ली के खून (हीमोलिंफ) से अपना पेट भरती हैं। ततैया जब अंडे देती है तो हिमोलिंफ में मौजूद हिमोसाइट्स का काम प्रभावित होता है। हिमोसाइट्स ततैया द्वारा दिए गए अंडों व उनसे निकली इल्लियों के प्रति संवेदनशून्य हो जाता है। यह भी देखा गया कि इल्ली के शरीर में अगर पोलीड्नावायरस डाले जाएं तो वे वैसा ही व्यवहार करते हैं जैसा ततैया द्वारा अंडों के साथ डालने पर करते हैं। और अगर पोलीड्नावायरस रहित अंडे इल्ली के शरीर में डाले जाएं तो मेज़बान इल्ली का प्रतिरक्षा तंत्र बखूबी काम करता रहता है। ये सारे तथ्य दर्शाते हैं कि पोलीड्नावायरस स्पष्ट तौर पर मेज़बान इल्ली के विकास और प्रतिरक्षा तंत्र दोनों में हेरफेर करके उसे खतरे में डाल देता है जो ततैया के लिए फायदेमंद साबित होता है।(स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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