परागणकर्ताओं के रूप में मधुमक्खियों की बराबरी करना मुश्किल है। लेकिन वैज्ञानिक इनके कुशल कृत्रिम विकल्प खोजने में लगे हुए हैं। और अब शोधकर्ता साबुन के बुलबुले से परागण कराने में सफल हुए हैं।
दरअसल तापमान कम हो तो मधुमक्खियां परागण नहीं करतीं, तब किसानों को कृत्रिम तरीकों से फूलों का परागण करना पड़ता है। ऐसे ही विकल्प के प्रयास में 2017 में जापान एडवांस्ड इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नॉलॉजी के पदार्थ-रसायनज्ञ इजिरो मियाको और उनके साथियों ने रिमोट संचालित एक छोटे ड्रोन में घोड़े के बाल चिपकाकर उन पर एक विशेष जेल लगा दी। विचार था कि मधुमक्खी की तरह बाल पर चिपककर परागकण एक फूल से दूसरे फूल पर पहुंच जाएंगे। ड्रोन ने फूलों को परागित तो किया मगर इसके पंखों ने फूलों को नुकसान भी पहुंचाया। फिर, जब मियाको अपने बेटे के साथ साबुन के बुलबुले बना रहे थे तो उन्हें ऐसे बुलबुलों की मदद से परागण करने का विचार आया।
उन्होंने बुलबुलों के लिए एक ऐसा डिटर्जेंट चुना जो परागकणों के अंकुरण को कम से कम प्रभावित करता हो। प्रयोगशाला में उन्होंने परागकण से भरे बुलबुलों की बौछार नाशपाती के फूलों पर की। जब बुलबुले फूटे तो परागकण वर्तिकाग्र पर पहुंचे और पराग नलिकाएं बनीं। लेकिन अगर 10 से ज़्यादा बुलबुले फूल से टकराते हैं तो नलिकाएं सामान्य से छोटी बनती हैं, जो शायद साबुन के घोल का प्रतिकूल प्रभाव हो सकता है।
इसके बाद उन्होंने नाशपाती के एक बाग में तीन पेड़ों के फूलों पर पराग से भरे बुलबुलों की बौछार की। 16 दिनों के बाद इन फूलों से आए फल उतने ही अच्छे थे जितने कृत्रिम तरह से परागित करने पर आते हैं। जापान में कुछ किसान नाशपाती और सेब के फूलों को पारंपरिक रूप से ब्रश से परागित करते हैं। iscience पत्रिका में शोधकर्ताओं ने बताया है कि ब्रश से एक फूल को परागित करने में लगभग 1800 मिलीग्राम पराग लगता है, वहीं बुलबुले से महज 0.06 मिलीग्राम में काम हो जाता है। यानी बुलबुलों से परागण करने में किसानों को बहुत कम पराग जमा करना होगा।
इसके बाद मियाको ने एक बबल गन को ड्रोन से जोड़ा और ड्रोन को नकली लिली के फूलों की कतार के चारों ओर एक मार्ग में उड़ने के लिए प्रोग्राम किया। उन्होंने पाया कि ड्रोन बुलबुले 90 प्रतिशत फूलों को परागित कर सकते हैं। लेकिन ड्रोन के साथ समस्या यह आई कि कई बुलबुले अपने लक्ष्य से चूक गए, जिससे परागकण बेकार गए। मियाको बेहतर लक्ष्य साधने वाले ड्रोन पर काम रहे हैं। इसके अलावा वे जैव-विघटनशील पर्यावरण हितैषी साबुन के लिए प्रयासरत हैं।
वेस्ट वर्जीनिया विश्वविद्यालय के रोबोटिक विशेषज्ञ यू गु को लगता है कि ड्रोन के रोटर से चलने वाली हवा के कारण बुलबुले का निशाना साधना मुश्किल होगा। ज़मीन पर चलने वाले रोबोट बेहतर इसके विकल्प हो सकते हैं।
कुछ वैज्ञानिकों ने इन प्रयासों पर चिंता व्यक्त की है। उनके अनुसार इस तरह के प्रयास कम हो रहीं मधुमक्खियों के संरक्षण से ध्यान भटकाएंगे, परागण में रासायनिक हस्तक्षेप और मिट्टी प्रदूषण के खतरे बढ़ाएंगे। हम परागण के इससे कहीं अधिक प्रभावी और टिकाऊ तरीके ढूंढ सकते हैं।(स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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