दुनिया भर में तेज़ी से फैलते कोविड-19 के कारण हम सब घरों में कैद होकर रह गए हैं। कोरोना वायरस के संक्रमण के प्रारंभ में यूनाइटेड किंगडम ने लोगों के एकत्रित होने पर रोक तथा कठोर सोशल डिस्टेंसिंग लागू नहीं किया था। यद्यपि चिकित्सा समुदाय के अनेक लोग रोक न लगाने से आश्चर्यचकित थे, फिर भी अधिकारियों की योजना पूरी तरह बंद की बजाय क्रमिक प्रतिबंधों के माध्यम से वायरस को दबाने की थी। प्रयास था कि प्राकृतिक तरीके से झुंड प्रतिरक्षा विकसित की जाए। झुंड प्रतिरक्षा को सामुदायिक प्रतिरक्षा भी कहते हैं क्योंकि इस में पूरे समुदाय में प्रतिरक्षा क्षमता विकसित होती है।
क्या है झुंड प्रतिरक्षा?
झुंड प्रतिरक्षा तब होती है जब एक समुदाय के अनेक लोग एक संक्रमणकारी बीमारी के प्रतिरोधी हो जाते हैं जिसके कारण रोग फैलने से रुक जाता है। झुंड प्रतिरक्षा दो प्रकार से प्राप्त हो सकती है – प्रथम, जब समुदाय के अनेक व्यक्ति बीमारी से संक्रमित हो जाते हैं और कुछ समय में प्रतिरक्षा तंत्र बगैर किसी दवाई या वैक्सीन के बीमारी को हराकर व्यक्ति को ठीक कर देता है।
झुंड प्रतिरक्षा प्राप्त करने का दूसरा तरीका है टीकाकरण यानी वैक्सिनेशन। इस तरीके में रोगजनक परजीवी को प्रयोगशाला में रसायनों या अन्य तरीकों से इतना कमज़ोर कर दिया जाता है कि वह प्रजनन और रोग उत्पन्न करने में असमर्थ हो जाता है। फिर उसे पोषक के शरीर में डाला जाता है। परजीवी के रसायन (प्रोटीन) पोषक के शरीर में प्रतिरक्षा तंत्र को एंटीबॉडी बनाने के लिए उत्तेजित तो करते हैं पर बीमार नहीं कर पाते। इस प्रकार शरीर परजीवी से लड़ने के तरीके विकसित कर लेता है और बीमार भी नहीं होता है। कुछ प्रकार के वैक्सीन में बीमारी के बेहद हल्के लक्षण (जैसे बुखार वगैरह) दिख सकते हैं। जब जनसंख्या के बड़े भाग में वैक्सिनेशन हो जाता है तो बीमारी पूर्ण रूप से खत्म हो जाती है क्योंकि परजीवी को कोई संवेदी पोषक नहीं मिलता और हमें झुंड प्रतिरक्षा मिल चुकी होती है।
कुछ बीमारियों के खिलाफ झुंड प्रतिरक्षा बेहतर कार्य करती है तो कुछ के लिए यह तरीका फेल हो जाता है। चेचक को मानव इतिहास की सबसे भयानक बीमारियों में से एक माना जाता है। वैक्सिनेशन से चेचक के सफाए के बारे में एडवर्ड जेनर के शोध प्रकाशन के लगभग 200 वर्षों बाद 1980 में विश्व स्वास्थ संगठन ने विश्व को चेचक मुक्त घोषित किया क्योंकि विश्व की जनसंख्या का बहुत बड़ा भाग वैक्सिनेट हो गया था।
अनेक प्रकार के वायरल एवं बैक्टीरियल इन्फेक्शन एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलते हैं। यह शृंखला तब टूटती है जब अधिकांश लोग संक्रमित नहीं होते या संक्रमण नहीं फैलाते। यह उन लोगों की रक्षा करने में मदद करता है जो वैक्सिनेशन नहीं करवाते हैं या जिनका प्रतिरक्षा तंत्र कमज़ोर है या वे आसानी से संक्रमित हो जाते हैं। आसानी से संक्रमित होने वाले व्यक्तियों में – बूढ़े, बच्चे, नवजात शिशु, गर्भवती महिलाएं, कमज़ोर प्रतिरक्षा या कुछ गंभीर स्वास्थ्य स्थितियों वाले लोग हो सकते हैं।
झुंड प्रतिरक्षा के आंकड़े
कुछ बीमारियों के लिए झुंड प्रतिरक्षा तब प्रभावी हो सकती है जब किसी आबादी में 40 प्रतिशत लोग रोग के लिए प्रतिरोधी हो जाएं। लेकिन ज़्यादातर मामलों में आबादी के 80-95 प्रतिशत लोग प्रतिरोधी होने पर ही बीमारी को फैलने को रोका जा सकता है।
उदाहरण के लिए खसरा (मीज़ल्स) की प्रभावी झुंड प्रतिरक्षा विकसित करने के लिए 20 में से 19 व्यक्तियों को खसरे का टीका लगना चाहिए। इसका मतलब यह हुआ कि अगर एक बच्चे को खसरा होता है तो उसके आसपास की आबादी में सभी को वैक्सिनेट करना होगा ताकि बीमारी को फैलने से रोका जा सके। यदि खसरे से पीड़ित बच्चे के आसपास अधिक लोग बगैर वैक्सिनेशन के होंगे तो बीमारी अधिक आसानी से फैल सकती है क्योंकि कोई झुंड प्रतिरक्षा नहीं है। यानी एक निश्चित प्रतिशत ऐसे लोगों का होना चाहिए जो बीमारी को आगे फैलने से रोकेंगे। इस प्रतिशत को झुंड प्रतिरक्षा का न्यूनतम स्तर या थ्रेशोल्ड कहते हैं।
झुंड प्रतिरक्षा कुछ बीमारियों के लिए काम करती है। नार्वे के लोगों ने वैक्सिनेशन एवं प्राकृतिक प्रतिरक्षा के तरीके से स्वाइन फ्लू के लिए आंशिक झुंड प्रतिरक्षा विकसित कर ली है। 2010 तथा 2011 में नार्वे में यह देखा गया कि इन्फ्लूएंज़ा के कारण कम मौतें हुई थीं क्योंकि आबादी का बड़ा हिस्सा इसके प्रति प्रतिरोधी हो गया था।
हम कुछ बीमारियों के लिए वैक्सीन लगाकर झुंड प्रतिरक्षा विकसित करने में मदद कर सकते हैं। झुंड प्रतिरक्षा हमेशा समुदाय के प्रत्येक व्यक्ति की रक्षा नहीं कर सकती है लेकिन बीमारी फैलने से रोकने में मदद कर सकती है।
कोविड-19 व झुंड प्रतिरक्षा
सोशल डिस्टेंसिंग और बार-बार हाथ धोना ही वर्तमान में स्वयं के परिवार और आसपास के लोगों में कोविड-19 बीमारी के वायरस के संक्रमण को रोकने का तरीका है। ऐसे अनेक कारण हैं जिनसे कोविड-19 के विरुद्ध झुंड प्रतिरक्षा फिलहाल तुरंत विकसित नहीं की जा सकती –
1. कोविड-19 के लिए वैक्सीन बनने में एक साल लगने की संभावना है। तो झुंड प्रतिरक्षा के लिए वैक्सिन का उपयोग फिलहाल संभव नहीं है।
2. कोविड-19 के उपचार के लिए एंटीवायरल और अन्य दवाओं की खोज के लिए वैज्ञानिक प्रयासरत है।
3. वैज्ञानिकों को पक्के तौर पर यह ज्ञात नहीं है कि कोविड-19 बीमारी से ठीक हो गए व्यक्ति को फिर से यही बीमारी हो सकती है या नहीं।
4. गंभीर संक्रमण में व्यक्ति मर भी सकते हैं।
5. कोरोना वायरस से कुछ तो बीमार पड़ जाते हैं जबकि अन्य व्यक्तियों को कुछ नहीं होता इसका कारण क्या है यह हमें पक्के तौर पर नहीं पता।
6. एक साथ अनेक लोग संक्रमित होने से अस्पताल एवं स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा सकती हैं।
वैज्ञानिक कोरोना वायरस के विरुद्ध वैक्सीन बनाने के लिए शोध कर रहे हैं। यदि हमारे पास वैक्सीन आ जाता है तो हम भविष्य में इस वायरस के विरुद्ध झुंड प्रतिरक्षा विकसित करने में सक्षम हो सकते हैं। यह तभी संभव होगा जब विश्व की अधिकांश आबादी वैक्सिनेट हो जाए। केवल वे व्यक्ति जो चिकित्सकीय कारणों से वैक्सिनेट नहीं हो सकते उन्हें छोड़कर जवानों, बच्चों सभी को वैक्सिनेट होना होगा। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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