तेज़ी से फैल रहे कोविड-19 संक्रमण को रोकने के लिए वैज्ञानिक उपाय खोजने में लगे हैं। हाल ही में भारत की शीर्ष संस्था आईसीएमआर ने कोविड-19 मरीज़ों के इलाज के लिए प्लाज़्मा उपचार के ट्रायल की अनुमति दी है। चीन में कोविड-19 संक्रमण से ठीक हुए रोगियों के रक्त में कोविड-19 के विरुद्ध एंटीबॉडीज़ से रोगियों का इलाज करने की संभावना देखी जा रही है। भारत में आईसीएमआर द्वारा विभिन्न संस्थाओं को क्लीनिकल ट्रायल्स प्रारंभ करने का आमंत्रण देने का कारण यह जानना है कि कोविड-19 संक्रमण के विरुद्ध बनी एंटीबॉडी रोगग्रस्त व्यक्तियों के इलाज में कितनी असरदार साबित होती हैं।
बैक्टीरिया, फफूंद, वायरस जैसे रोगाणुओं के लिए हमारा शरीर एक आदर्श आवास है। सर्दी या फ्लू के वायरस पर तो हमारा शरीर ज़्यादा ही मेहरबान प्रतीत होता है। जब रोगाणु हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं तो बी तथा टी प्रतिरक्षा कोशिकाएं उन्हें नष्ट करने में लग जाती हैं।
बी-प्रतिरक्षा कोशिकाएं रोगाणुओं पर उपस्थित एंटीजन से जुड़कर प्लाज़्मा कोशिकाओं का निर्माण करती है। प्लाज़्मा कोशिकाएं विभाजित होकर असंख्य प्लाज़्मा कोशिकाएं बनाती हैं जो तेज़ी से एंटीबॉडीज़ का निर्माण करने लगती है। चूंकि ये एंटीबॉडी खास रोगाणुओं के विरुद्ध बनती हैं इसलिए दूसरी बीमारी के रोगाणुओं के विरुद्ध कार्यवाही नहीं कर सकती है। जब शरीर में प्रतिरक्षा कोशिकाओं को एक अपरिचित एंटीजन का पता लगता है तो प्लाज़्मा कोशिकाओं को पर्याप्त रूप में एंटीबॉडी उत्पन्न करने में दो सप्ताह तक का समय लग सकता है। अत्यधिक मात्रा में निर्मित एंटीबॉडीज़ को रक्त रोगाणुओं के आगमन स्थानों पर पहुंचाता है जहां एंटीबॉडीज़ रोगाणुओं को बांधकर उन्हें अक्रिय कर देती हैं जिन्हें भक्षी कोशिकाएं खा जाती हैं।
एंटीबॉडीज़ एकत्रित के लिए पूरी तरह ठीक हो चुके व्यक्ति के शरीर से लगभग 800 मिलीलीटर रक्त निकाला जाता है और रक्त से प्लाज़्मा को अलग किया जाता है। प्लाज़्मा अलग होने के बाद लाल रक्त कोशिकाओं को सलाइन में मिलाकर वापस दानदाता के शरीर में डाल दिया जाता है। प्लाज़्मा में से खून का थक्का जमाने वाले प्रोटीन फाइब्रिनोजन को अलग कर सिरम प्राप्त किया जाता है। सिरम में केवल एंटीबॉडीज़ पाई जाती हैं। सिरम को अल्पकाल के लिए 40 डिग्री सेल्सियस पर तथा ज़्यादा समय तक संग्रहित करने के लिए कुछ रसायन मिलाकर -60 डिग्री सेल्सियस पर रखा जाता है। एक व्यक्ति से प्राप्त प्लाज़्मा में इतनी एंटीबॉडीज़ होती हैं कि 4 मरीज़ों का इलाज हो सकता है।
गंभीर संक्रमण से ग्रस्त रोगियों के प्लाज़्मा में अनेक प्रकार के सूजन पैदा करने वाले रसायन भी पाए जाते हैं जो फेफड़ों को गंभीर क्षति पहुंचा सकते हैं। ऐसी अवस्था में उनके प्लाज़्मा से अवांछित रसायनों को पृथक कर निकाल दिया जाता है। प्लाज़्मा उपचार का उपयोग केवल मध्यम या गंभीर संक्रमण वाले रोगियों पर किया जाता है।
कारगर टीके या इलाज के अभाव में कोविड-19 रोगियों के लिए प्लाज़्मा उपचार तकनीक लड़ाई में आशा की किरण है। चीन, दक्षिण कोरिया, अमेरिका और ब्रिटेन जैसे कई देशों में प्लाज़्मा उपचार पर प्रयोग चल रहे हैं और भारत भी इस दौड़ में पीछे नहीं रहना चाहता।(स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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