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वायरस का तोहफा है स्तनधारियों में गर्भधारण – कालू राम शर्मा

न दिनों कोरोनावायरस सुर्खियों में है। इसने लाखों लोगों को बीमार कर दिया है और ढाई लाख से ज़्यादा लोगों की जान ले ली है।

लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि वायरसों ने जीव जगत में सहयोग व सहकार की भूमिका भी अदा की है। और सहयोग व सहकार केवल थोड़े समय के लिए नहीं बल्कि हमेशा-हमेशा के लिए। उन्होंने जीवों में घुसपैठ कर उनकी कोशिकाओं में अपने जींस छोड़ दिए हैं जिनकी बदौलत उन प्रजातियों के विकास की दिशा बदल गई।

दिलचस्प बात है कि स्तनधारी अपने इस रूप में वायरस की बदौलत ही हैं। अगर वायरस स्तनधारियों में घुसपैठ न करते तो शायद हम इस रूप में न होते। आज के स्तनधारी जो अपने बच्चे को गर्भ में सहेजकर रखते हैं, वे तो हरगिज नहीं होते। गर्भधारण के लिए ज़रूरी गर्भनाल (प्लेसेंटा) वायरस की ही देन है। 

हम जानते हैं कि स्तनधारी समूह के एक बड़े वर्ग – चूहे, चमगादड़, व्हेल, हाथी, छछूंदर, कुत्ते, बिल्ली, भेड़, मवेशी, घोड़ा, कपि, बंदर व मनुष्य में गर्भनाल पाई जाती है। गर्भनाल मांसल, रस्सीनुमा संरचना है जिसका एक सिरा गर्भाशय से जुड़ा होता है और दूसरा बच्चे से।

गर्भनाल एक ऐसी व्यवस्था है जो गर्भ में पल रहे बच्चे को वहां एक नियत अवधि तक टिके रहने में अहम भूमिका अदा करती है। मनुष्य में बच्चा लगभग नौ माह तक मां के गर्भ में रहता है। इस दौरान उसे नियमित ऑक्सीजन व पोषण चाहिए जो गर्भनाल के ज़रिए ही मां से उपलब्ध होता है। गर्भनाल बच्चे के विकास को प्रेरित करती है। यह बच्चे को कई तरह के संक्रमण से भी बचाती है। यह दिलचस्प है कि जो बीमारी गर्भावस्था के दौरान मां को हो उससे गर्भ में पल रहा बच्चा सुरक्षित रहता है। गर्भनाल कई मायनों में बच्चे व मां के बीच एक अवरोध का भी काम करती है। और सबसे बड़ी बात तो यह है कि गर्भनाल की बदौलत ही मां का शरीर भ्रूण को पराया मानकर उस पर हमला नहीं करता।

सवाल यह है कि मादा स्तनधारी में अंडे के निषेचन के बाद गर्भनाल के निर्माण के लिए कौन-से जींस ज़िम्मेदार हैं? इस सवाल का जवाब वे वायरस देते हैं जिन्होंने सैकड़ों-लाखों साल पहले स्तनधारियों के पूर्वजों को संक्रमित किया था। उन वायरसों ने संक्रमित जंतुओं को परेशान नहीं किया बल्कि उनके शरीर में जाकर बैठ गए। मज़े की बात यह है कि वायरस मेज़बान की कोशिका के जीनोम का हिस्सा बन गए व मेज़बान ने उनका फायदा उठाया।

बात 6.5 करोड़ बरस पहले की है। एक छोटा, मुलायम, छछूंदर जैसा निशाचर जीव था। यह आधुनिक स्तनधारी जैसा ही दिखता था। अलबत्ता, उसमें गर्भनाल नहीं थी। आधुनिक स्तनधारियों की गर्भनाल उस छछूंदर के साथ एक रेट्रोवायरस की मुठभेड़ का नतीजा है।

वायरस की खासियत होती है कि यह किसी सजीव कोशिका में पहुंचकर उसके केंद्रक में अपना न्यूक्लिक अम्ल डाल देता है। वायरस का न्यूक्लिक अम्ल मेज़बान कोशिका के न्यूक्लिक अम्ल को निष्क्रिय कर देता है और खुद कोशिका पर नियंत्रण कर लेता है। अब उस सजीव की कोशिका पर वायरस की ही सल्तनत होती है। वायरस उस कोशिका में अपनी प्रतिलिपियां बनाने लगता है।

रेट्रोवायरस एक प्रकार के वायरस हैं जो आरएनए को आनुवंशिक सामग्री के रूप में इस्तेमाल करते हैं। कोशिका को संक्रमित करने के बाद रेट्रोवायरस अपने आरएनए को डीएनए में बदलने के लिए रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज़ नामक एंज़ाइम का इस्तेमाल करते हैं। रेट्रोवायरस तब अपने वायरल डीएनए को मेज़बान कोशिका के डीएनए में एकीकृत करता है। एड्स वायरस रेट्रोवायरस ही है।

आज के स्तनधारियों के पूर्वज के शुक्राणु या अंडाणुओं में वायरस के जींस पहुंच गए और फिर हर पीढ़ी में पहुंचने में कामयाब हो गए। इस तरह से वायरस पूरी तरह से मेज़बान के जीनोम का हिस्सा बन गए। जीनोम अध्ययन से पता चलता है कि मानव के जीनोम में वायरस के लगभग 1 लाख ज्ञात अंश हैं जो हमारे कुल डीएनए का आठ फीसदी से अधिक है। यानी हम आठ फीसदी वायरस से बने हुए हैं।

जब कोई वायरस अपने जीनोम को मेज़बान के साथ एकीकृत करता है तो नए संकर जीनोम बनते हैं तथा वह कोशिका मर जाती है। लेकिन कभी-कभी कुछ दुर्लभ घटना घट सकती है। मसलन शुक्राणु या अंडाणु अगर वायरस से संक्रमित होकर निषेचित हो जाए तो अगली पीढ़ियों की संतानों में वायरल जीनोम की एक प्रति होगी। इसे वैज्ञानिक अंतर्जात रेट्रोवायरस कहते हैं।

प्रारंभिक स्तनधारियों में वायरस के उन कबाड़ में पड़े हुए जींस का इस्तेमाल गर्भनाल बनाने में किया जाने लगा जो आज भी जारी है। सिंसिटिन जो कि रेट्रोवायरस के जीनोम का हिस्सा था वह लाखों बरस पहले स्तनधारी के पूर्वजों में घुसपैठ कर चुका है। यह स्तनधारियों में गर्भधारण के लिए बेहद अहम है। मूल रूप से सिंसिटिन नामक प्रोटीन वायरस को मेज़बान कोशिका के साथ जुड़ने में मदद करता है। सामान्य हालात में वायरस के संक्रमण की स्थिति में सिंसिटिन का संश्लेषण मेज़बान की जीन मशीनरी के माध्यम से होता है और ये एक कोशिका से दूसरी में स्थानांतरित होते रहते हैं। बेशक, सिंसिटिन प्राचीन वायरस की देन है जो गर्भावस्था के दौरान गर्भनाल की कोशिकाओं में प्रकट होता है। सिंसिटिन बनाने वाली कोशिकाएं केवल वहीं होती है जहां गर्भनाल से गर्भाशय का संपर्क बनता है। ये एकल कोशिकीय परत बनाने के लिए एक साथ जुड़ती हैं व भ्रूण अपनी मां से इसके ज़रिए आवश्यक पोषण प्राप्त करता है। वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि इस जुड़ाव के लिए सिंसिटिन का बनना अनिवार्य है। सिंसिटिन का जीन तो वायरस में ही पाया जाता है।

यह दिलचस्प है कि सिंसिटिन प्रोटीन का जीन विकासक्रम में स्तनधारियों के जीनोम में बना रहा। सिंसिटिन तब प्रकट होता है जब कोई पराई चीज़ आक्रमण करे। स्वाभाविक है कि अंडाणु को निषेचित करने वाला नर का शुक्राणु मादा के लिए पराया होता है। जब निषेचित अंडा गर्भाशय में आता है, तब सिंसिटिन प्रोटीन का निर्माण गर्भाशय की कोशिकाएं करती है व भ्रूण को गर्भाशय की दीवार से चिपकने का रास्ता आसान बनाती है।

स्तनधारियों में सिंसिटिन का निर्माण करने वाले जीन आम तौर पर सुप्तावस्था में पड़े रहते हैं। जब गर्भधारण की स्थिति बनती है तब ये जागते हैं और सिंसिटिन के निर्माण का सिलसिला शुरू होता है। प्लेसेंटा में सिंसिटिन का निर्माण करने वाली कोशिकाएं होती हैं। सिंसिटिन नामक यह पदार्थ प्लेसेंटा व मातृ-कोशिका के बीच सीमाओं को निर्धारित करता है। अंड कोशिका के निषेचन के लगभग एक सप्ताह बाद भ्रूण गोल खोखली गेंदनुमा रचना (ब्लास्टोसिस्ट) में विकसित हो जाता है व गर्भाशय में रोपित होकर गर्भनाल के निर्माण को उकसाता है। यही गर्भनाल भ्रूण को ऑक्सीजन और पोषण उपलब्ध कराती है। ब्लोस्टोसिस्ट की बाहरी परत की कोशिकाएं गर्भनाल की बाहरी परत का निर्माण करती है और गर्भाशय से जो सीधे संपर्क में कोशिकाएं होती हैं वे सिंसिटिन का निर्माण करती है।

कोशिकाओं में कबाड़ के रूप में पड़े डीएनए में ज़्यादातर हिस्सा सहजीवी वायरस का है। मनुष्यों के हालिया विकास में अंतर्जात रेट्रोवायरस की भूमिका का खुलासा करने वाले नए अध्ययनों से पता चलता है कि डीएनए के ये टुकड़े मानव और वायरस के बीच की सीमा को धुंधला करते हैं। इस दृष्टि से देखा जाए, तो मनुष्य आंशिक रूप वायरस ही हैं।(स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.mdpi.com/viruses/viruses-12-00005/article_deploy/html/images/viruses-12-00005-g001.png

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