कोरोना वायरस का प्रकोप थमने का नाम नहीं ले रहा है। यह तो स्पष्ट है कि यह वायरस व्यक्ति से व्यक्ति में फैलता है। यह भी स्पष्ट है कि खांसी-छींक के साथ निकलने वाली सूक्ष्म बूंदों की फुहार इस वायरस को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुंचने में मदद करती हैं। लिहाज़ा रोकथाम का सबसे प्रमुख उपाय तो यही है कि व्यक्ति आपस में बहुत करीब न आएं। वैज्ञानिक बताते हैं कि इन बूंदों के माध्यम से यह वायरस 2 मीटर का फासला तय कर सकता है। खांसते-छींकते वक्त मुंह और नाक को कपड़े वगैरह से ढंकना वायरस के प्रसार को रोकने का कारगर उपाय है।
एक बात यह भी कही जा रही है कि हाथों को बार-बार साबुन से धोएं और अपने हाथों से मुंह, नाक व आंखों को छूने से बचें। कारण यह है कि यह वायरस हाथों पर काफी देर तक सक्रिय अवस्था में रह सकता है।
लेकिन आम लोगों के मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब यह हाथों पर टिका रह सकता है, तो क्या अन्य सतहों (जैसे मेज़, बर्तन, दरवाज़ों के हैंडल, किचन प्लेटफॉर्म, टॉयलेट सीट वगैरह) पर भी बना रह सकता है? और यदि ऐसा है तो ये चीज़ें कितने समय के लिए वायरस की वाहक होंगी।
मुख्तसर जवाब तो यही है कि हम नहीं जानते। लेकिन फिर भी कुछ अनुमान तो लगाए गए हैं।
जैसे दी न्यू इंगलैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि यह वायरस हवा में तीन घंटे तक जीवन-क्षम बना रहता है। तांबे की सतह पर 4 घंटे, कार्डबोर्ड पर 24 घंटे तथा प्लास्टिक व स्टील के बर्तनों पर 72 घंटे तक जीने-योग्य बना रहता है।
एक अन्य अध्ययन सीधे नए वायरस पर तो नहीं किया गया है बल्कि इसी के भाई-बंधुओं पर किए गए पूर्व अध्ययनों पर आधारित है। दी जर्नल ऑफ हॉस्पिटल इंफेक्शन में प्रकाशित इस अध्ययन का निष्कर्ष है कि (यदि यह वायरस अन्य मानव कोरोना वायरस का मिला-जुला परिवर्तित रूप है) तो यह धातु, कांच या प्लास्टिक जैसी सतहों पर 9 दिनों तक जीवन-क्षम बना रह सकता है। तुलना के लिए देखें कि सामान्य फ्लू का वायरस ऐसी सतहों पर अधिक से अधिक 48 घंटे तक जीवन-क्षम रहता है।
अब आप ऐसी सतहों को छूने से तो नहीं बच सकते। इसलिए बेहतर है कि समय-समय पर हाथ धोते रहें और हाथों से मुंह, नाक और आंखों को छूने से बचें।
लेकिन एक खुशखबरी भी है। यदि तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो तो ये वायरस इतने लंबे समय तक जीवन-क्षम नहीं रह पाते। यानी जब गर्मी बढ़ेगी तो इस वायरस के परोक्ष रूप से फैलने की संभावना कम होती जाएगी। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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