नए साल में इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइज़ेशन (इसरो) ने अपने नए इरादे ज़ाहिर किए हैं। महीने की शुरुआत में ही एक पत्रकार वार्ता में इसरो प्रमुख के. सिवन ने मीडिया को बतलाया था कि इसरो ने अंतरिक्ष में भारत के पहले मानव मिशन ‘गगनयान’ की तैयारी कर ली है। ‘गगनयान’ के डिज़ाइन को अंतिम रूप दिया जा चुका है। ‘गगनयान’ के लिए चार अंतरिक्ष यात्रियों के चयन की प्रक्रिया पूरी हो गई है। चारों यात्री वायुसेना के हैं। इन पायलटों को मेडिकल टेस्ट के बाद, भारत और रूस में इस मिशन सम्बंधी ट्रेनिंग दी जाएगी। अंतरिक्ष यात्रियों को ले जाने के लिए 3.7 टन का अंतरिक्ष यान डिज़ाइन किया गया है। अंतरिक्ष यात्रियों को इस मिशन के लिए प्रशिक्षित करने और क्रू कैप्सूल में लाइफ सपोर्ट सिस्टम बनाने के लिए रूस की मदद ली जाएगी।
गगनयान के अलावा सरकार ने मिशन ‘चंद्रयान-3’ को भी मंज़ूरी दे दी है। इससे जुड़ी सभी गतिविधियां सुचारु रूप से चल रही हैं। यदि सब कुछ योजना के मुताबिक चला, तो यान अगले साल चांद की सतह को छूने के अपने सफर पर निकल सकता है। इसरो की गतिविधियों में तेज़ी लाने के लिए एक और महत्वपूर्ण निर्णय हुआ है। देश का दूसरा अंतरिक्ष प्रक्षेपण केंद्र, तमिलनाडु के थुथुकुडी में बनेगा। केन्द्र के लिए भूमि अधिग्रहण का काम शुरू कर दिया गया है। अभी अंतरिक्ष में उपग्रह, यान और रॉकेट प्रक्षेपित करने का पूरा भार आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर पर ही है।
बीते साल की तरह, नए साल में भी इसरो के अंतरिक्ष अभियान जारी रहेंगे। साल 2020 के लिए उसने तकरीबन 25 अभियान तय किए हैं। साल 2019 में जो मिशन अधूरे रह गए थे, उन्हें भी मार्च 2020 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। इस दिशा में शुरुआत करते हुए इसरो ने हाल ही में उच्च गुणवत्ता वाले संचार उपग्रह जीसैट-30 का फ्रेंच गुयाना से सफल प्रक्षेपण किया। जीसैट-30 इनसैट/जीसैट शृंखला का उपग्रह है और यह 12 सी और 12 केयू बैंड ट्रांस्पॉन्डरों से लैस है। जीसैट-30 इनसैट-4 ए की जगह लेगा और इसकी कवरेज क्षमता भी अधिक होगी। इस उपग्रह से देश को बेहतर दूरसंचार एवं प्रसारण सेवाएं मिलेंगी। भारत अंतरिक्ष में पहली ही कोशिश में मानव यात्री भेजने वाला दुनिया का पहला देश होगा। बाकी देशों ने किसी वस्तु या जानवर को भेजा था। हालांकि, मानव मिशन भेजने से पहले यान कई दौर की आज़माइश से गुज़रेगा। ‘गगनयान’ की पहली मानवरहित उड़ान इसी साल आयोजित करने की योजना है। मानवरहित ‘गगनयान’ के लिए इसरो के वैज्ञानिकों ने एक महिला रोबोट बनाया है। जिसका नाम ‘व्योममित्र’ है। इस रोबोट का नाम संस्कृत के दो शब्दों ‘व्योम’ यानी अंतरिक्ष और मित्र को मिलाकर रखा गया है। गगनयान की उड़ान से ठीक पहले इसरो ‘व्योममित्र’ को अंतरिक्ष में भेजेगा और अध्ययन करेगा। यह इंसानी महिला रोबोट अंतरिक्ष से इसरो को अपनी रिपोर्ट भेजेगी। इसरो ने हाल ही में व्योममित्र को दुनिया के सामने पेश किया और इसकी खूबियों के बारे में बताया। इसरो का कहना है कि व्योममित्र अंतरिक्ष में एक मानव शरीर की एक्टिविटी का अध्ययन करेगी और हमारे पास रिपोर्ट भेजेगी। यह अंतरिक्ष में अंतरिक्ष यात्रियों की साथी होगी और उनसे बातचीत करेगी। यह महिला रोबोट जांच करेगी कि सभी प्रणालियां सही ढंग से काम कर रही हैं या नहीं।
मिशन गगनयान और चंद्रयान-3, दोनों का काम एक साथ चल रहा है। ‘चंद्रयान-3’ की संरचना बहुत हद तक ‘चंद्रयान-2’ जैसी होगी। फर्क सिर्फ इतना रहेगा कि ‘चंद्रयान-2’ में ऑर्बाइटर, लैंडर और रोवर मौजूद था, जबकि ‘चंद्रयान-3’ को लैंडर व रोवर के अलावा प्रोपल्शन मॉड्यूल से भी लैस किया जाएगा। यानी इस बार ऑर्बाइटर नहीं जाएगा। मिशन ‘चंद्रयान-3’ की कुल लागत 600 करोड़ रुपए अनुमानित है। इसरो ने पिछले साल अपने महत्वाकांक्षी मिशन ‘चंद्रयान-2’ की बहुत अच्छी तैयारी की थी। लेकिन चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर विक्रम लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग कराने के दौरान, मून लैंडर विक्रम का इसरो से उस समय संपर्क टूट गया, जब वह चंद्रमा की सतह से महज दो किलोमीटर की दूरी पर था। यानी मिशन कामयाब होते-होते रह गया। भले ही चंद्रयान-2 सफलतापूर्वक लैंड नहीं कर सका लेकिन ऑर्बाइटर अभी भी काम कर रहा है। इससे अगले सात वर्षों के लिए वैज्ञानिक डैटा के उत्पादन करने का काम होता रहेगा।
चंद्रयान-3 और गगनयान के बाद इसरो का अंतरिक्ष में अपना स्पेस स्टेशन बनाने का इरादा है। स्पेस स्टेशन से इसरो की अंतरिक्ष के साथ-साथ पृथ्वी की निगरानी की क्षमता बढ़ेगी। इस स्टेशन पर भारतीय वैज्ञानिक कई तरह के प्रयोग कर पाएंगे। स्पेस स्टेशन में लगे कैमरों से वे अच्छी गुणवत्ता वाली तस्वीरें लेने के अलावा जो देखना चाहेंगे, उसे आसानी से देख सकेंगे। इससे अंतरिक्ष में बार-बार निगरानी उपग्रह भेजने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी और खर्च में भी कमी आएगी।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की योजना है कि पृथ्वी की निचली कक्षा यानी पृथ्वी की सतह से 400 किलोमीटर की ऊंचाई पर परिक्रमा करने वाले इस स्पेस स्टेशन में तीन अंतरिक्ष यात्री 15-20 दिन तक रह सकें। गगनयान की कामयाबी के बाद इस मिशन पर सिलसिलेवार काम शुरू होगा जिसे पांच से सात साल में पूरा किए जाने की संभावना है। अभी इसकी योजना-निर्माण पर काम शुरू ही हुआ है। इसरो के अध्यक्ष के. सिवन के मुताबिक यह स्टेशन महज 20 टन का होगा।
इसरो यदि स्पेस स्टेशन बनाने में कामयाब हुआ तो अंतरिक्ष में उसकी धाक जम जाएगी। अंतरिक्ष अनुसंधान और उपग्रह प्रक्षेपण के क्षेत्र में उसका काम और भी बढ़ेगा। वर्तमान में वैश्विक अंतरिक्ष उद्योग का आकार 350 अरब डॉलर है। साल 2025 तक इसके बढ़कर 550 अरब डॉलर होने की संभावना है। ज़ाहिर है, दुनिया में अंतरिक्ष एक महत्वपूर्ण बाज़ार के तौर पर विकसित हो रहा है। बीते एक दशक में अंतरिक्ष के क्षेत्र में इसरो ने निश्चित तौर पर महत्त्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं, लेकिन भारत का अंतरिक्ष उद्योग अभी भी 7 अरब डॉलर के आस-पास है, जो वैश्विक बाज़ार का सिर्फ 2 फीसदी है। अंतरिक्ष उद्योग में भारत को अपनी भागीदारी बढ़ाना है, तो उसे और भी ज़्यादा गंभीर प्रयास करने होंगे। ना सिर्फ उसे इसरो का सालाना बजट बढ़ाना होगा, बल्कि नए वैज्ञानिकों को भी अंतरिक्ष अभियान में जोड़ना होगा। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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