बुलेटिन ऑफ दी एटॉमिक साइंटिस्ट्स ने इस साल कयामत की घड़ी के कांटों को मध्यरात्रि से बस 100 सेकंड की देरी पर सेट किया है। जब 1947 में इस घड़ी की शुरुआत हुई थी तब से यह कयामत के सबसे नज़दीक रखी गई है। यह इस बात की चेतावनी है कि पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष हम विनाश के और करीब आ गए हैं। पिछले वर्ष घड़ी के कांटे मध्यरात्रि से दो मिनट (120 सेकंड) की दूरी पर थे।
कयामत की घड़ी (डूम्सडे क्लॉक) बुलेटिन ऑफ दी एटॉमिक साइंटिस्ट्स द्वारा संचालित एक प्रतीकात्मक घड़ी है, जिसके कांटों का ठीक मध्यरात्रि पर होना सर्वनाश या कयामत का प्रतीक माना जाता है। घड़ी के कांटों को हर साल विश्व में बढ़ती गंभीर समस्याओं को देखते हुए सेट किया जाता है।
इस वर्ष बढ़ते सूचना संग्राम और अंतरिक्ष हथियारों की होड़ से बढ़ते खतरों को देखते हुए वैज्ञानिकों ने घड़ी को मध्यरात्रि से 100 सेकंड की देरी पर सेट करना तय किया। इसके अलावा परमाणु हथियारों के तनाव को कम करने में विफलता और जलवायु परिवर्तन की बढ़ती चिंता ने भी घड़ी को मध्यरात्रि के और करीब ला दिया है।
इस दौरान, अमेरिका और ईरान के बीच सैन्य टकराव बढ़ा है, उत्तर कोरिया ने अमेरिका के साथ परमाणु समझौता तोड़ दिया है, और अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प ने रूस के साथ मध्यम रेंज परमाणु बल संधि तोड़ दी है, जिसके चलते लोगों की चिंताएं और बढ़ गई हैं। जॉर्ज वाशिंगटन युनिवर्सिटी से परमाणु हथियार का अध्ययन करने वाली शेरन स्केवसनी का कहना है कि परमाणु हथियारों के मामले में असमंजस बहुत तेज़ी से बढ़ता जा रहा है। साथ ही, हथियार विकास के लिए अंतरिक्ष एक नया क्षेत्र बनता जा रहा है। भारत, रूस और अमेरिका द्वारा उपग्रह-भेदी हथियारों को विकसित करने के कदम अंतरिक्ष हथियारों को बढ़ावा दे सकते हैं। इसके अलावा भ्रामक और झूठी खबरें, अनियंत्रित जेनेटिक इंजीनियरिंग और अमेरिका और रूस द्वारा हायपरसोनिक हथियारों के विकास से उत्पन्न संभावित खतरों ने घड़ी के कांटों को आधी रात के और नज़दीक ला दिया है।
इन हालात पर कैलिफोर्निया के पूर्व गवर्नर और वर्तमान में बुलेटिन के कार्यकारी अध्यक्ष जेरी ब्राउन ने आव्हान किया है, “जागो अमेरिका, जागो विश्व, हमें बहुत कुछ करने की ज़रूरत है… अभी कयामत की घड़ी आई नहीं है। हम अभी भी वक्त को पीछे खींच सकते हैं।” वे आगे कहते हैं कि हमारे पास अभी भी वक्त है कि हम परमाणु हथियारों की होड़, कार्बन उत्सर्जन और खतरनाक और विनाशकारी टेक्नॉलॉजी छोड़ दें और इस धरती को बचा लें। हम सब कुछ ना कुछ तो कर ही सकते हैं। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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