अपने परिजनों की रक्षा करना और अजनबियों को आश्रय देना मानवता का एक ऐसा अनिवार्य भाग है जिसको हमने व्यापक रूप से विकसित किया है। मनुष्यों के अलावा ओरांगुटान और बोनोबो जैसे कुछ ही अन्य जीवों में स्वेच्छा से दूसरों की मदद करने का गुण देखा गया है। अब वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि उन्होंने ऐसे गैर-स्तनपायी प्राणि खोज निकाले हैं जो परोपकारी होते हैं।
गौरतलब है कि पूर्व में हुए अध्ययनों से पक्षियों में बुद्धिमत्ता के प्रमाण तो मिले हैं लेकिन अफ्रीकी मटमैला तोता (Psittacus erithacus) एक ऐसा पक्षी है जो परोपकारी भी है। मैक्स प्लांक इंस्टिट्यूट फॉर ओर्निथोलॉजी के पशु संज्ञान वैज्ञानिकों ने असाधारण मस्तिष्क वाले अफ्रीकन मटमैले तोते और नीले सिर वाले मैकॉ (Primolius couloni) की कुछ जोड़ियों पर अध्ययन किया। सबसे पहले शोधकर्ताओं ने पक्षियों को सिखाया कि वे एक टोकन के बदले पुरस्कारस्वरूप एक काजू या बादाम प्राप्त कर सकते हैं। इस परीक्षा में दोनों प्रजाति के पक्षी सफल रहे।
लेकिन अगली परीक्षा में केवल अफ्रीकी मटमैले तोते ने बाज़ी मारी। इस परीक्षा में शोधकर्ताओं ने जोड़ी के एक ही पक्षी को टोकन दिया और वह भी ऐसे पक्षी को जो किसी भी तरह से शोधकर्ता तक या पुरस्कार तक नहीं पहुंच सकता था। अलबत्ता वह एक छोटी खिड़की से टोकन अपने साथी पक्षी को दे सकता था। और वह साथी टोकन के बदले पुरस्कार प्राप्त कर सकता था। लेकिन इसमें पेंच यह था कि काजू-बादाम जो भी मिलता उसे वही दूसरा पक्षी खाने वाला था।
दोनों प्रजातियों में, जिन पक्षियों को टोकन नहीं मिला, उन्होंने हल्के से चिंचिंयाकर दूसरे साथी का ध्यान खींचने की कोशिश की। ऐसे में नीले सिर वाले मैकॉ अपने साथी को नज़रअंदाज़ करते हुए निकल गए लेकिन अफ्रीकी मटमैले तोतों ने पुरस्कार की चिंता किए बिना अपने साथी पर ध्यान दिया। करंट बायोलॉजी में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार पहले ही परीक्षण में 8 में से 7 मटमैले तोतों ने अपने (वंचित) साथी को टोकन दे दिया। जब इन भूमिकाओं को पलट दिया गया तब तोतों ने अपने पूर्व सहायकों की भी उसी प्रकार मदद की। इससे लगता है कि उनमें परस्परता का कुछ भाव होता है।
शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि यदि उनका साथी कोई करीबी दोस्त या रिश्तेदार नहीं है तब भी उनमें उदारता दिखी। और यदि वह उनका करीबी रिश्तेदार है तब तो वे और अधिक टोकन दे देते थे। मैकॉ के व्यवहार से तो लगता था कि उन्हें साथी चाहिए ही नहीं। बल्कि अपने खाने का कटोरा साझा करना भी उन्हें पसंद नहीं था।
शोधकर्ताओं का मानना है कि इन दोनों प्रजातियों के बीच का अंतर उनके अलग-अलग सामाजिक माहौल के कारण हो सकता है। जहां अफ्रीकी मटमैले तोते अपने झुंड बदलते रहते हैं वहीं मैकॉ छोटे समूहों में रहना पसंद करते हैं। वैसे कुछ अन्य पक्षी वैज्ञानिकों को लगता है कि तोतों के परोपकार के पीछे एक कारण यह भी हो सकता है किवे शायद आपस में भाई-बहन रहे हों, जिनके बीच आधे जीन तो एक जैसे होते हैं। (स्रोत फीचर्स)
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