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कोरोनावायरस: क्या कर सकते हैं वैज्ञानिक? – डॉ. सुशील जोशी

पिछले दिनों कोरोनावायरस सुर्खियों में रहा है। चीन के समुद्री खाद्य पदार्थों के बाज़ार वुहान से निकला यह वायरस एक आतंक का पर्याय-सा बन गया है। शुरू-शुरू में इसे अस्थायी नाम 2019- nCoV दिया गया था लेकिन अब इसे एक स्थायी नाम भी मिल गया है – COVID-19।

इसके संक्रमण से लगभग फ्लू जैसे लक्षण पैदा होते हैं – बुखार, खांसी, जुकाम, थकान, और कभी-कभी उल्टी-दस्त हालांकि COVID-19 कुछ ही मरीज़ों में नाक बहना तथा और भी कम मरीज़ों में उल्टी-दस्त की शिकायत रिपोर्ट हुई है। साधारण फ्लू और COVID-19, दोनों ही मामलों में मृत्यु की भी आशंका रहती है।

COVID-19 वायरस मनुष्य से मनुष्य में फैलता है। फ्लू वायरस के बारे में कहा जाता है कि यदि रोकथाम के कोई उपाय (जैसे मास्क लगाना वगैरह न किए जाएं) तो कोई भी फ्लू संक्रमित व्यक्ति औसतन 1.3 व्यक्तियों तक यह वायरस पहुंचा पाता है। यानी यदि 100 लोग फ्लू वायरस से संक्रमित हैं तो वे 130 लोगों को संक्रमित कर देंगे। COVID-19 के बारे में एक अनुमान है कि 100 संक्रमित व्यक्ति 220 लोगों को यह संक्रमण संचारित करेंगे। वैसे इन सब मामलों में मुख्य दिक्कत यह है कि COVID-19 एक नया वायरस है और इसके बारे में अनुमान दिन-ब-दिन बदलते जाएंगे। अभी तो विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे अंतर्राष्ट्रीय चिंता का स्वास्थ्य संकट घोषित किया है।

इसी नवीनता की वजह से वैज्ञानिक अभी असमंजस में हैं कि COVID-19 से निपटने के सबसे कारगर तरीके क्या होंगे। इसलिए फिलहाल मोटे तौर पर यही सलाह दी जा रही है कि लोगों से ज़्यादा निकट संपर्क से बचें, खांसते-छींकते समय मुंह और नाक को ढंककर रखें, पास में कोई खांसता-छींकता हो, तो अपनी नाक पर कपड़ा रख लें, हाथों को बार-बार धोएं वगैरह।

COVID-19 की प्रमुख चुनौती उसकी नवीनता है। उदाहरण के लिए जहां फ्लू के खिलाफ टीका उपलब्ध है (जो रोकथाम का एक प्रमुख उपाय है), वहीं COVID-19 के खिलाफ हमारे पास फिलहाल कोई टीका नहीं है। लेकिन यूएस नेशनल इंस्टीट्यूट ऑॅफ हेल्थ के शोधकर्ता COVID-19 के खिलाफ टीका विकसित करने की दिशा में काम कर रहे हैं और उम्मीद है कि तीन महीने के अंदर टीके का परीक्षण शुरू हो जाएगा।

इलाज के उपाय

अब तक हमारे पास COVID-19 का कोई विशिष्ट इलाज नहीं है। अत: फिलहाल लक्षणों का ही इलाज किया जा रहा है। इसका मतलब यही है कि मरीज़ को सांस लेने में सहायता मिले, बुखार पर नियंत्रण रखा जाए और पर्याप्त तरल शरीर में पहुंचाए जाएं। फिर भी विशेषज्ञों ने कुछ उपाय सुझाए हैं और कुछ प्रगति की है। इस मामले में दो रास्ते अपनाए जा रहे हैं।

पहला रास्ता है कि पुरानी वायरस-रोधी दवाइयों को COVID-19 के उपचार में इस्तेमाल करने की कोशिश करना। वैसे भी अभी हाल तक हमारे पास सचमुच कारगर वायरस-रोधी दवाइयां बहुत कम थीं। खास तौर से ऐसे वायरसों के खिलाफ औषधियों की बहुत कमी थी जो जेनेटिक सामग्री के रूप में डीएनए की बजाय आरएनए का उपयोग करते हैं, जिन्हें रिट्रोवायरस कहते हैं। कोरोनावायरस इसी किस्म का वायरस हैं। और COVID-19 तो एक नया वायरस या किसी पुराने वायरस की नई किस्म है। लेकिन हाल के वर्षों में अनुसंधान की बदौलत हमारे वायरस-रोधी खज़ाने में काफी वृद्धि हुई है।

लेकिन फिर भी सर्वथा नई दवा का निर्माण करना कोई आसान काम नहीं है। इसके लिए पैसा और समय दोनों की ज़रूरत होती है। तो यह तरीका ठीक ही लगता है कि नई दवा का इन्तज़ार करते हुए पुरानी दवाओं को आज़माया जाए।

दी न्यू इंगलैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक वॉशिंगटन में COVID-19 से संक्रमित एक व्यक्ति के उपचार के लिए वायरस-रोधी औषधि रेमडेसिविर का उपयोग किया गया। यह दवा मूलत: एबोला वायरस के उपचार के लिए विकसित की गई थी और इसे COVID-19 के संदर्भ में मंज़ूरी नहीं मिली है। विशेष मंज़ूरी लेकर यह दवा दी गई और वह व्यक्ति स्वस्थ हो गया।

वैज्ञानिकों ने रेमडेसिविर को प्रयोगशाला में जंतु मॉडल्स में अन्य कोरोनावारस के खिलाफ भी परखा है। लेकिन यह नहीं दर्शाया जा सका है कि यह दवा सुरक्षित है और न ही यह कहा जा सकता है कि यह कारगर है।

हाल ही में कुछ शोधकर्ताओं ने प्रयोगशाला में कई सारी वायरस-रोधी दवाइयों का परीक्षण COVID-19 पर किया है। यह पता चला है कि रेमडेसिविर कम से कम प्रयोगशाला की तश्तरी में तो इस वायरस को प्रजनन करने से रोक देती है। इसी प्रकार से यह भी पता चला है कि आम मलेरिया-रोधी औषधि क्लोरोक्वीन प्रयोगशाला में COVID-19 को मानव कोशिकाओं में आगे बढ़ने से रोकती है। ऐसा माना जा रहा है कि ये दोनों दवाइयां आगे परीक्षण के लिए उपयुक्त उम्मीदवार हैं।

जहां तक नई दवा खोजने का सवाल है, तो कुछ प्रगति तो हुई है लेकिन इसमें कई दिक्कतें हैं। जब कोई वायरस शरीर में प्रवेश करता है तो उसे कोशिकाओं के अंदर पहुंचना पड़ता है। कोशिकाओं में प्रवेश पाने के लिए वह कोशिका की सतह पर किसी प्रोटीन से जुड़ता है। यह प्रोटीन ग्राही-प्रोटीन कहलाता है। इसके बाद कोशिका की झिल्ली पर एक थैली-सी (एंडोसोम) बनती है जिसमें समाकर वायरस कोशिका के अंदर पहुंच जाता है। इसी थैली में बैठे-बैठे वायरस अपना आरएनए कोशिका के कोशिका द्रव्य में पहुंचा देता है। इसके बाद इस आरएनए की मदद से वायरस कोशिका पर पूरा कब्जा कर लेता है और उससे वह वायरस प्रोटीन बनवाता है जो खुद उसकी प्रतिलिपि बनाने के लिए ज़रूरी होते हैं। इस प्रोटीन का उपयोग करके वह अपने एंज़ाइम की मदद से अपने आरएनए की प्रतिलिपियां बना लेता है। अंत में प्रोटीन और आरएनए इस तरह पैकेज होते हैं कि वायरस उस कोशिका से बाहर निकलकर किसी अन्य कोशिका में घुसने को तैयार हो जाता है।

कुल मिलाकर देखा जाए तो पूरी प्रक्रिया में कई चरण होते हैं और हम इनमें से किसी भी चरण में बाधा पहुंचाकर वायरस का प्रसार रोक सकते हैं। उदाहरण के लिए क्लोरोक्वीन के बारे में पता चला है कि वह वायरस को एंडोसोम में से अपना आरएनए बाहर भेजने से रोकती है। दूसरी ओर, रेमडेसिविर वायरस के आरएनए से जुड़ जाती है और वहां ऐसी त्रुटियां पैदा कर देती है कि आरएनए किसी काम का नहीं रहता।

2003 के सार्स प्रकोप के समय वायरस के लिए स्वीकृत एक दवा का उपयोग किया गया था। दरअसल यह दवाइयों का एक समूह है जिसे प्रोटिएस इनहिबिटर कहते हैं। इसे अब COVID-19 के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए परीक्षण चल रहे हैं।

चीन सरकार ने इसी समूह की दो अन्य दवाइयों के उपयोग का सुझाव दिया था। सुझाव था कि COVID-19 से संक्रमित व्यक्तियों को रोज़ाना लोपिनेविर/राइटोनेविर की दो गोलियां दी जाएं और उन्हें दिन में दो बार अल्फा-इंटरफेरॉन सूंघने को कहा जाए। ये दवाइयां कोशिकाओं को ऐसे रसायन स्रावित करने को उकसाती हैं जो अन्य कोशिकाओं के लिए चेतावनी का काम करते हैं कि शरीर में कोई संक्रमण मौजूद है।

वायरसों के साथ दो समस्याएं और भी हैं। पहली है कि वायरस में बहुत विविधता पाई जाती है। दूसरी दिक्कत है कि वायरस आपकी अपनी कोशिका की मशीनरी का उपयोग करते हैं। इस वजह से वायरस के कामकाज में बाधा डालते हुए खतरा यह भी रहता है कि कहीं आपकी कोशिकीय मशीनरी प्रभावित न हो। इस मामले में अनुसंधान ज़ोर-शोर से जारी है कि कोशिका की सतह के उन अणुओं की पहचान की जाए जो COVID-19 को कोशिका से जुड़ने और प्रवेश करने में मदद करते हैं। वैसे कई अन्य समूह COVID-19 के लिए टीका बनाने का प्रयास भी कर रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक ऐसी किसी दवा के विकास में कम से कम दो साल का समय लगेगा।

इस बीच भारत सरकार के आयुष मंत्रालय ने 29 जनवरी को एक स्वास्थ्य सलाह जारी की है जिसमें COVID-19 के उपचार हेतु होम्योपैथी तथा अन्य पारंपरिक औषधियों के उपयोग की वकालत की गई है। इसके अंतर्गत होम्योपैथी औषधि आर्सेनिकम एल्बम 30-सी लेने तथा रोज़ाना सुबह दोनों नथुनों में 2-2 बूंद तिल का तेल डालने को कहा गया है। इसके अलावा, यूनानी औषधियों के उपयोग की भी सलाह दी गई है। आयुष मंत्रालय की केंद्रीय होम्योपैथी अनुसंधान परिषद (सीसीआरएच) के अध्यक्ष अनिल खुराना का कहना है कि 2009 में आर्सेनिकम एल्बम 30-सी को स्वाइन फ्लू की रोकथाम में उपयोगी पाया गया था। वैसे उन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि मात्र आर्सेनिकम एल्बम लेने से काम नहीं चलेगा, बाकी के रोकथाम के उपाय जारी रखने होंगे और लक्षण प्रकट होते ही अस्पताल जाना बेहतर होगा। वैसे चिकित्सा समुदाय के कई लोगों ने इस सलाह की आलोचना की है।

कुल मिलाकर स्थिति यह है कि COVID-19 तेज़ी से फैल रहा है, कोई पक्का इलाज उपलब्ध नहीं है और यह भी स्पष्ट नहीं है कि आने वाले दिनों में यह बीमारी क्या रुख अख्तियार करेगी। अत: इसे फैलने से रोकने के उपाय करना ही बेहतर होगा। एक अच्छी बात यह है कि बीमारी के लक्षण वाले व्यक्तियों में बच्चों की संख्या कम है। आंकड़े बताते हैं कि अधिकांश मरीज़ 49 से 56 वर्ष के बीच हैं। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://media.npr.org/assets/img/2020/01/22/sciencesource_ss2413465-bd5e295079f203794a6d35a99a4db82fa5615d4d-s800-c85.jpg

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