एक गीले पत्थर पर जमे एक चिपचिपे लोंदे के अध्ययन से पता चला है कि पौधों को ज़मीन पर डेरा जमाने में शायद बैक्टीरिया की मदद मिली थी। दरअसल, 2006 में शैवाल वैज्ञानिक माइकल मेल्कोनियन पौधे एकत्रित करने में लगे हुए थे। जर्मनी के कोलोन विश्वविद्यालय के समीप एक स्थान पर उन्हें एक असाधारण शैवाल मिली। मेल्कोनियन और उनके साथियों ने अब इस शैवाल (स्पायरोग्लिया मस्किकोला – एस.एम.) और उसके निकट सम्बंधी (मीसोटेनियम एंडलिचेरिएनम – एम.ई.) के जीनोम का विश्लेषण कर लिया है और यह देखने की कोशिश की है कि इसमें वे जीन्स कौन-से हैं जिन्होंने ज़मीन पर जीवन को संभव बनाया है। ऐसे कम से कम दो जीन मिट्टी में पाए जाने वाले बैक्टीरिया से आए हैं।
जीव वैज्ञानिक कई वर्षों से यह समझने की कोशिश करते रहे हैं कि पौधों ने ज़मीन पर कैसे घर बनाया क्योंकि पानी से ज़मीन पर आना कई समस्याओं को जन्म देता है। इसे समझने का एक तरीका यह रहा है कि निकट सम्बंधी पौधों के जीनोम की तुलना की जाए। लेकिन अब शैवालों को भी इस तुलना में शामिल कर लिया गया है। उपरोक्त दो शैवाल (एस.एम. और एम.ई.) के जीनोम काफी छोटे हैं जबकि अन्य पौधों के जीनोम विशाल होते हैं। दूसरी बात यह है कि ये दोनों शैवाल नम सतहों पर पाई जाती हैं जो कुछ हद तक ज़मीन ही है।
मेल्कोनियन की टीम ने उक्त दो शैवालों के जीनोम की तुलना नौ ज़मीनी पौधों और अन्य शैवालों से की। देखा गया कि उक्त अर्ध-ज़मीनी शैवालों और नौ ज़मीनी पौधों में 22 जीन-कुलों के 902 जीन एक जैसे थे जबकि ये जीन अन्य जलीय शैवालों में नहीं थे। ये वे जीन हैं जो करीब 58 करोड़ वर्ष पूर्व उस समय विकसित हुए थे जब ये दो समूह एक-दूसरे अलग होकर अलग-अलग दिशा में विकसित होने लगे थे।
इनमें से दो साझा जीन-कुल वे हैं जो पौधों को सूखे व अन्य तनावों से निपटने में मदद करते हैं। कुछ अन्य शोध-समूह यह भी रिपोर्ट कर चुके हैं कि ज़मीन पर बसने वाले पौधों में कोशिका भित्ती बनाने वाले जीन्स और तेज़ प्रकाश को सहने की सामर्थ्य देने वाले जीन भी शामिल हैं।
शोधकर्ताओं को हैरानी इस बात पर हुई कि ये जीन मिट्टी के बैक्टीरिया में भी पाए जाते हैं तथा किसी अन्य जीव में नहीं पाए जाते। सेल नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित शोध पत्र में शोधकर्ताओं का निष्कर्ष है कि ये जीन बैक्टीरिया में से फुदककर उन जीवों में पहुंचे हैं जो उक्त शैवालों तथा ज़मीनी पौधों दोनों के पूर्वज थे। इस संदर्भ में यह गौरतलब है कि बैक्टीरिया जीन्स का आदान-प्रदान आपस में करते रहते हैं। इसके अलावा, यह भी दावा किया गया है कि बैक्टीरिया और ज़्यादा जटिल जीवों के बीच जीन्स का आदान-प्रदान होता है। कई शोधकर्ता इस दावे को सही नहीं मानते लेकिन इस अनुसंधान से पता चलता है कि शायद यह संभव है और इसने जैव विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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