चींटियों को भोजन का छोटा टुकड़ा मिले तो वे उसे धकेलकर अपनी बांबी तक ले जाती हैं। लेकिन यदि टुकड़ा बड़ा हो तो वे उसे खींचकर ले जाती हैं। सवाल यह है कि इस तरह उल्टे चलते हुए उन्हें दिशा का अंदाज़ कैसे लगता है। पहले वैज्ञानिक सोचते थे कि चींटियों को अपने सामने की ओर कुछ परिचित चिंह देखना पड़ते हैं और उन्हीं की मदद से वे अपनी मंज़िल तक पहुंच पाती हैं। लेकिन अब एक अनुसंधान दल ने स्पष्ट किया है कि उल्टे चलते हुए भी वे पुराने परिचित दृश्यों को पहचान सकती हैं।
बात स्पैनिश रेगिस्तानी चींटियों (Cataglyphis velox) की है। ये जब उल्टी चलती हैं तो दिशा निर्धारण के लिए ‘पाथ इंटीग्रेशन’ नामक रणनीति का इस्तेमाल करती हैं। वे यह याद रखती हैं कि घर से किसी जगह तक पहुंचने में वे कितने कदम चली थीं और रास्ते में कितने मोड़ या पेंच आए थे। वे अपनी स्थिति को याद रखने के लिए सूर्य से बनने वाले कोण की भी मदद लेती हैं। और वे घर से किसी जगह तक चलते हुए मुड़-मुड़कर देखती रहती हैं और नज़र आने वाले पहचान चिंहों को याद रखती हैं जो वापसी यात्रा में मददगार हो सकते हैं।
लेकिन अभी भी यह स्पष्ट नहीं है कि उल्टे चलते हुए उन्हें पता कैसे चलता है कि वे कहां जा रही हैं। कभी-कभी चींटियां भोजन को नीचे रखकर मुड़कर देख भी लेती हैं। पौल सेबेटियर विश्वविद्यालय के सेबेस्टियन श्वार्ज़ और उनके साथी इसी का अध्ययन करना चाहते थे। उन्होंने उन चींटियों को चुना जो रेगिस्तान में अपने घर से निकलकर गंतव्य तक पहुंच चुकी थीं। यानी पाथ इंटीग्रेशन के ज़रिए उन्हें मालूम था कि वे कहां हैं। शोधकर्ताओं ने घर के एकदम बाहर से कुछ ऐसी चींटियां भी पकड़ी जिन्हें लगता था कि वे घर पहुंच चुकी हैं। इन सब चींटियों को उन्होंने बांबी से थोड़ी दूर उनके पसंदीदा भोजन के टुकड़ों के पास छोड़ दिया।
जब चींटियां भोजन को लेकर घर की ओर चलीं, तो कभी-कभी शोधकर्ता दृश्यों में थोड़ा फेरबदल कर देते। जब ऐसे बदले हुए पहचान चिंहों से सामना हुआ तो चींटियों ने 8 मीटर के रास्ते में 3.2 मीटर चलने के बाद मुड़कर देखा जबकि परिचित रास्ते पर चींटियां बगैर मुड़े 6 मीटर तक चलती रह सकती हैं। इससे पता चलता है कि वे उल्टे चलते हुए अपने आसपास के परिवेश पर ध्यान देती हैं और समय-समय पर पीछे मुड़कर देखती हैं।
उम्मीद के मुताबिक, उन चींटियों का प्रदर्शन कहीं बेहतर रहा जिन्हें पहले से पता था कि वे कहां हैं। वे बगैर मुड़े ज़्यादा दूरी तय कर पार्इं और अपना भोजन लेकर घर भी ज़्यादा संख्या में पहुंचीं। जिन चींटियों के पास रास्ते की जानकारी नहीं थी, उनमें से कुछ तो भटक गर्इं लेकिन शेष चींटियां घर पहुंच गर्इं जबकि उनके पास पाथ इंटीग्रेशन द्वारा मिली जानकारी नहीं थी। वे शायद अपनी दृश्य स्मृतियों अथवा सूर्य से बने कोण की मदद से घर पहुंची थीं।
चींटियों की आंखें काफी विस्तृत दृश्य देख पाती हैं – वे सिरे को घुमाए बगैर लगभग 360 डिग्री का क्षेत्र देखती हैं जबकि मनुष्य अपने आसपास का एक हिस्सा ही देख पाते हैं। श्वार्ज़ का कहना है कि संभवत: कीट घर से दूर जाते समय अपने बाजू और पीछे के दृश्य की जानकारी भी हासिल करते रहते हैं और वापसी में इसका उपयोग कर लेते हैं।
श्वार्ज़ इस संदर्भ में कुछ और प्रयोग करने को उत्सुक हैं। जैसे वे कोशिश कर रहे हैं कि चींटी की एक आंख को बंद करके देखा जाए या उनके लिए एक ट्रेडमिल बनाई जाए। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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