विश्व दृष्टि दिवस के मौके पर आई विश्व स्वास्थ संगठन (WHO) की रिपोर्ट कहती है कि दुनिया भर में कम से कम 2.2 अरब लोग दृष्टि सम्बंधी समस्याओं से पीड़ित हैं। और इनमें से तकरीबन एक अरब लोग दृष्टि सम्बंधी ऐसी दिक्कतों (जैसे ग्लोकोमा, मोतियाबिंद, निकट और दूर-दृष्टिदोष) से पीड़ित हैं जिनसे या तो बचा जा सकता है, या चश्मा लगाकर, मोतियाबिंद का ऑपरेशन करवाकर या अन्य तरीकों से जिन्हें ठीक किया जा सकता है।
रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं तथा कुछ अन्य आबादियों में दृष्टि सम्बंधी समस्याएं अधिक हैं। जैसे ग्रामीण इलाकों, वृद्धों, विकलांगों और निम्न और मध्यम आय वाले देशों में। रिपोर्ट के मुताबिक
- निम्न और मध्यम आय वाले इलाकों में दूरदृष्टि दोष की समस्या उच्च आय वाले इलाकों से चार गुना अधिक हैं।
- उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया के गरीब इलाकों के लोगों में अंधेपन की समस्या उच्च आमदनी वाले देशों से आठ गुना अधिक है।
- मोतियाबिंद और बैक्टीरिया संक्रमण की समस्या निम्न और मध्यम आय वाले देशों की महिलाओं में अधिक हैं। यह अंधत्व का प्रमुख कारण है।
- शहरी जीवन शैली में निकट-दृष्टि (मायोपिया यानी दूर का देखने में समस्या) अधिक दिखाई देती है।
रिपोर्ट दृष्टिदोष बढ़ने के कारणों के बारे में भी बात करती है। रिपोर्ट के अनुसार अक्सर राष्ट्रीय रोकथाम नीतियां और अन्य नेत्र सुरक्षा योजनाएं उन समस्याओं पर केन्द्रित होती हैं जिनके कारण अंधापन या गंभीर दृष्टि दोष हो सकते हैं, जैसे मोतियाबिंद, रोहे और अपवर्तन दोष। लेकिन जो समस्याएं गंभीर दृष्टि समस्याओं में तब्दील नहीं होतीं वे उपेक्षित ही रही हैं (जैसे आंखों में सूखापन, आंख आना) जबकि इन्हीं समस्याओं से बचाव और उपचार की लोगों को अधिक आवश्यकता पड़ती है। इसके अलावा –
- अधिक समय कमरे या सीमित जगह में बिताने से या नज़दीक से देखने वाले कार्य करने से मायोपिया (निकट दृष्टि) की समस्या बढ़ी है। सुझाव है कि बाहर या खुले में समय बिताने से मायोपिया होने की संभावना को कम किया जा सकता है।
- लोगों में बढ़ता मधुमेह खास (तौर से टाइप-2) दृष्टि सम्बंधी समस्याओं को जन्म देता है। मधुमेह से पीड़ित मरीज़ को कभी ना कभी किसी ना किसी स्तर की रेटिना विकृति की समस्या का सामना करना पड़ता है। आंखों की नियमित जांच और मधुमेह पर नियंत्रण से इसे कम किया जा सकता है।
- कमज़ोर और घटिया स्वास्थ्य सेवाओं के कारण कई लोग आंखों की नियमित जांच से वंचित रह जाते हैं। इसलिए समस्या देर से पता चलती है और रोकथाम व उपचार मुश्किल हो जाते हैं।
संभावना है कि आने वाले वर्षों में विश्व की आबादी की उम्र बढ़ने के साथ, तथा अधिक लोगों के शहरों की ओर पलायन के साथ उपेक्षित दृष्टि समस्याओं की संख्या में भी वृद्धि होगी।
इस सम्बंध में रिपोर्ट सिफारिश करती है कि दृष्टि सम्बंधी देखभाल को प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा और राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों में शामिल किया जाना चाहिए। रिपोर्ट के मुताबिक उपेक्षित दृष्टि दोषों से बचाव या उपचार में तकरीबन 1400 अरब रुपए से अधिक निवेश की ज़रूरत होगी। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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