लगभग एक सदी पहले अमेरिकी जीव विज्ञानी हर्बर्ट स्पेंसर जेनिंग्स ने तुरही के आकार के एक-कोशिकीय जीव स्टेंटर रोसेली पर एक प्रयोग किया था। इस प्रयोग में जेनिंग्स ने इस जीव के आसपास तकलीफदेह कार्मीन पाउडर डाला था। बिहेवियर ऑफ दी लोअर ऑर्गेनिज़्म्स नामक लेख में जेनिंग्स ने बताया था कि पावडर से बचने के लिए यह जीव पहले तो पाउडर के चारों ओर अपने शरीर को मोड़ने की कोशिश करेगा। यदि इससे काम न चले तो वह अपने सिलिया (सतह पर उपस्थित रोम) को उल्टा चलाकर पावडर के कणों को दूर करने की कोशिश करेगा। यदि फिर भी नाकाम रहता है तो वह खुद को सिकोड़ लेगा और यदि ये सारे तरीके काम नहीं करते, तो वह वहां से रुखसत हो जाएगा।
बाद में इन निष्कर्षों को दोहराया नहीं जा सका और इन्हें खारिज कर दिया गया। लेकिन हाल ही में हार्वर्ड युनिवर्सिटी के शोधकर्ता जेरेमी गुणवर्दना और उनकी टीम ने इसे फिर से दोहराने का निर्णय लिया। शोधकर्ताओं ने स्टेंटर रोसेली के व्यवहार को सूक्ष्मदर्शी की मदद से देखकर रिकॉर्ड किया।
उन्होंने सबसे पहले जंतु के आसपास कार्मीन पावडर डाला, लेकिन जंतु पर कोई असर नहीं हुआ। शोधकर्ता बताते हैं कि प्राकृतिक उत्पाद होने के चलते कार्मीन की संरचना जेनिंग्स के समय से काफी बदल चुकी है। लिहाज़ा उन्होंने कार्मीन की बजाय सूक्ष्म प्लास्टिक मोतियों का उपयोग किया। जैसा कि अनुमान था, स्टेंटर रोसेली ने प्लास्टिक मोतियों से बचने के लिए ठीक वैसा ही व्यवहार किया जैसा कि जेनिंग्स ने बताया था। सारे जंतुओं के व्यवहार किसी विशेष क्रम में तो नहीं थे लेकिन सांख्यिकीय विश्लेषण करने पर पता चला कि औसतन उनके निर्णय लेने की प्रक्रिया एक समान है। इस एक-कोशिकीय जीव ने तैरकर भाग निकलने से पहले खुद को मोड़ने, सिलिया की गति की दिशा को बदलकर कणों को हटाने और सिकुड़ने की क्रियाओं को चुना।
शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि यदि जीव खुद को सतह से अलग करने या सिकोड़ने के चरण तक पहुंचता है तब इनमें से किसी एक को चुनने की संभावना बराबर होती है। इस अध्ययन से पता चला कि स्टेंटर रोसेली के पास कोई मस्तिष्क तो नहीं है लेकिन फिर भी पहले वे आसान उपाय करते हैं, उसके बाद भी यदि आप उन्हें छेड़ते रहें तो वे कुछ और करने का निर्णय लेते हैं। यानी कोई व्यवस्था है जिसकी बदौलत उकसावा देर तक जारी रहने पर वे ‘मन बदल लेते हैं’।
ये निष्कर्ष कैंसर अनुसंधान में काफी सहायक हो सकते हैं। साथ ही अपनी कोशिकाओं को लेकर हमारी समझ में भी बदलाव ला सकते हैं। कोशिकाएं एक जटिल पारिस्थितिक तंत्र में जीती हैं और वे मात्र अपने जीन्स द्वारा निर्धारित ढंग से काम नहीं करतीं। गुणवर्दना के अनुसार एक-कोशिकीय जीव, जो एक समय में इस धरती पर राज करते थे, हमारी सोच से भी कहीं अधिक जटिल हो सकते हैं। यह निष्कर्ष 5 दिसंबर की करंट बायोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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