भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो की कामयाबी की फेहरिस्त में एक और नई उपलब्धि जुड़ गई है। हाल ही में उसने अंतरिक्ष से धरती की निगरानी की क्षमता प्रदान करने वाले कार्टोसैट-3 उपग्रह का सफल प्रक्षेपण किया है। कार्टोसैट-3, कार्टोसैट शृंखला का नौवां उपग्रह है। यह उपग्रह पूर्ववर्ती कार्टोसैट-2, 2ए और 2बी के समान है। कार्टोसैट-3 तीसरी पीढ़ी का बेहद चुस्त और उन्नत उपग्रह है। यह धरती की उच्च गुणवत्ता वाली तस्वीरें लेने के साथ-साथ उसका मानचित्र तैयार करने की क्षमता रखता है। 44.4 मीटर लंबे स्वदेशी पीएसएलवी-सी 47 रॉकेट की यह 49वीं उड़ान थी, जिसने कार्टोसैट-3 के साथ-साथ अमेरिका के 13 वाणिज्यिक नैनो उपग्रहों को भी अंतरिक्ष में कामयाबी से प्रक्षेपित किया।
इस प्रक्षेपण के साथ ही इसरो अब तक तकरीबन दो दर्जन देशों के 310 उपग्रहों को अलग-अलग मिशन में सफलतापूर्वक प्रक्षेपित कर चुका है। अंतरिक्ष कार्यक्रम में इस बेमिसाल कामयाबी के ज़रिए हमारे वैज्ञानिकों ने एक बार फिर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है।
आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित कार्टोसैट-3 उपग्रह का वज़न 1625 किलोग्राम है। प्रक्षेपण के 17 मिनट 46 सेकंड बाद ही पीएसएलवी-सी 47 ने इस उपग्रह को पृथ्वी से 509 किलोमीटर की ऊंचाई पर सूर्य स्थैतिक कक्षा में स्थापित कर दिया। यह पांच साल तक काम करेगा।
इन उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करना आसान काम नहीं था। इसरो के सामने इस बार एक अलग ही किस्म की चुनौती थी, क्योंकि मुख्य उपग्रह कार्टोसैट-3 को एक अलग कक्षा में स्थापित करना था और बाकी उपग्रहों को अलग कक्षा में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर स्थापित करना था।
कार्टोसैट-3 संचार और निगरानी का दोहरा काम करेगा। यह हाई रेज़ॉल्यूशन उपग्रह है जो अंतरिक्ष से पृथ्वी की स्पष्ट तस्वीरें लेने में सक्षम है जिनमें 1 फुट दूर स्थित वस्तुएं अलग-अलग दिखाई देंगी। एडॉप्टिव ऑप्टिक्स तकनीक की मौजूदगी फोटो को धुंधला होने से रोकेगी। अपनी इस खूबी के चलते यह सैन्य कार्यों के लिए बहुत उपयोगी होगा। सेना इसकी मदद से दुश्मनों पर पैनी नज़र रखेगी। यही नहीं इसकी वजह से शहरी क्षेत्रों में नियोजन, ग्रामीण क्षेत्रों में ढांचागत विकास और संसाधनों का मानचित्रण, तटवर्ती क्षेत्रों में भू-उपयोग इत्यादि कामों में मदद मिलेगी। इन्हीं विशेषताओं को देखते हुए कार्टोसैट-3 को अंतरिक्ष में भारत की आंख कहा जा रहा है।
बीते एक दशक में विज्ञान प्रौद्योगिकी व अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में इसरो की कामयाबियों से भारत का सिर ऊपर उठा है। अत्याधुनिक अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में तो इसरो ने अब महारत हासिल कर ली है। चंद्रमा पर मानवरहित यान चंद्रयान-1 के सफल प्रक्षेपण, खुद का नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम, एस्ट्रोसैट, स्वदेश में बने अंतरिक्ष यान रीयूज़ेबल लॉन्च व्हीकल-टेक्नॉलॉजी डेमॉनस्ट्रेटर (आरएलवी-टीडी) से लेकर मंगलयान का सफल प्रक्षेपण इन कामयाबियों की बानगी है। संचार सेवाओं के अतिरिक्त धरती के अवलोकन एवं मौसम पूर्वानुमान समेत देश के अधिकांश मंत्रालयों एवं विभागों को अंतरिक्ष तकनीक उपलब्ध कराने के लिए अंतरिक्ष में इसरो के अनेक उपग्रह सक्रिय हैं। इसरो अपने पोलर सेटेलाइट लांच वेहिकल (पीएसएलवी-सी 47) से अब तक सिंगापुर, ब्रिटेन और अमेरिका जैसे विकसित देशों समेत कई देशों के दर्जनों उपग्रहों का प्रक्षेपण कर चुका है। इस काम से इसरो को अब आमदनी भी होने लगी है। यह सिलसिला अभी थमा नहीं है। आने वाले सालों में यह रफ्तार और भी बढ़ेगी। अंतरिक्ष अनुसंधान और उपग्रह प्रक्षेपण के क्षेत्र में इसरो फिलहाल कई योजनाओं पर एक साथ काम कर रहा है। अगले साल नवंबर तक चंद्रमा पर दोबारा सॉफ्ट लैंडिंग के अलावा कई उन्नत उपग्रह प्रक्षेपित किए जाएंगे। इसरो की वाणिज्यिक शाखा एंट्रिक्स कार्पोरेशन ने कई देशों के उपग्रह छोड़ने के लिए समझौता किया हुआ है।
मार्च 2020 तक इसरो 13 मिशन पूरे करेगा। इनमें छह प्रक्षेपण यान और सात उपग्रह मिशन शामिल हैं। आदित्य एल-1 सौर मिशन, छोटा उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएसएलवी) के साथ ही 200 टन के सेमीक्रायो इंजन पर काम शुरू होने वाला है। यही नहीं मानव को अंतरिक्ष में भेजने के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम पर भी गंभीरता से काम चल रहा है।
अंतरिक्ष के क्षेत्र में इसरो ने जिस तरह से कुछ सालों में बड़ी-बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं, उससे देश की क्षमता बढ़ी है। 2013 से पहले व्यावसायिक संचार उपग्रहों का प्रक्षेपण करने में रूस, अमेरिका आदि का ही दबदबा था, लेकिन इसरो ने अब इन देशों के दबदबे को तोड़ा है। अमेरिका और रूस की अंतरिक्ष कार्यक्रमों से जुड़ी एजेंसियों नासा और रॉसकॉसमोस को लगने लगा है कि यदि भारत इसी तरह नित नई कामयाबी हासिल करता रहा, तो उनके अंतरिक्ष कारोबार पर असर पड़ेगा। जहां दूसरे देशों का उपग्रह प्रक्षेपण में भारी खर्च आता है, वहीं भारत अपने सस्ते लांच वेहिकल पीएसएलवी-सी 24 और पीएसएलवी-सी 47 के जरिए कम खर्च में ही उपग्रह प्रक्षेपित करने में सक्षम है। बाकी अंतरिक्ष एजेंसियों के मुकाबले वह 60 फीसदी कम पैसे लेता है।
एक महत्वपूर्ण बात इसरो के हक में जाती है कि उसने अभी तक जितने भी विदेशी उपग्रहों का प्रक्षेपण किया है, वे सब सफल रहे हैं। यही वजह है कि 20 देशों की 57 से ज़्यादा अंतरिक्ष एजेंसियां साल 1999 से ही उपग्रह प्रक्षेपण में इसरो की मदद ले रही हैं। मार्स ऑर्बाइटर जैसे बड़े मिशन को महज 450 करोड़ रुपए में पूरा करने वाले इसरो से अब अमेरिका भी अपने संचार उपग्रहों का प्रक्षेपण करने में सहायता ले रहा है। एक दर्जन से ज़्यादा उपग्रहों को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित करके इसरो ने अमेरिका, रूस की अंतरिक्ष एजेंसियों को बड़ी चुनौती दी है।
दुनिया में फिलवक्त तीन अरब डॉलर का अंतरिक्ष बाज़ार है, वह दिन दूर नहीं जब इसके बड़े हिस्से पर इसरो का कब्ज़ा होगा। इसरो की सफलता के पीछे यकीनन हमारे देश के वैज्ञानिकों एवं इंजीनियरों की विशेष दक्षता, कड़ी मेहनत और प्रतिबद्धता शामिल हैं। अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारतीय वैज्ञानिकों की इस कामयाबी को देखते हुए, सरकार को भी इस क्षेत्र में अब ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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