यदि हम 3-डी प्रिंटिंग तकनीक से ऊतक और अंग बना सकें तो इनका उपयोग अंग-प्रत्यारोपण के अलावा औषधि परीक्षण और प्रयोगशाला में मॉडल के रूप में किया जा सकेगा। लेकिन 3-डी प्रिंटिंग की मदद से जटिल अंग जैसे आहार नाल, श्वासनली, रक्त वाहिनियों की प्रतिकृति बनाना एक बड़ी चुनौती है। ऐसा इसलिए क्योंकि 3-डी प्रिंटिंग के पारंपरिक तरीके में परत-दर-परत ठोस अंग तो बनाए जा सकते हैं लेकिन जटिल ऊतक बनाने के लिए पहले एक सहायक ढांचा बनाना होगा जिसे बाद में हटाना शायद नामुमकिन हो।
इसका एक संभावित हल यह हो सकता है कि यह सहायक ढांचा ठोस की जगह किसी तरल पदार्थ से बनाया जाए। यानी एक खास तरह से डिज़ाइन की गई तरल मेट्रिक्स हो जिसमें अंग बनाने वाली इंक (जीवित कोशिका से बना पदार्थ) के तरल डिज़ाइन को ढाला जाए और अंग के सेट होने के बाद सहायक तरल मेट्रिक्स को हटा दिया जाए। लेकिन इस दिशा में अब तक की गई सारी कोशिशें नाकाम रहीं थी, क्योंकि इस तरह बनाई गई पूरी संरचना की सतह सिकुड़ जाती है और बेकार लोंदों का रूप ले लेती है।
इसलिए चीन के शोधकर्ताओं ने जलस्नेही यानी हाइड्रोफिलिक तरल पॉलीमर्स का उपयोग किया जो अपने हाइड्रोजन बंधनों के आकर्षण की वजह से संपर्क सतह पर टिकाऊ झिल्ली बनाते हैं। इस तरीके से अंग निर्माण में कई अलग-अलग पॉलीमर की जोड़ियां कारगर हो सकती हैं लेकिन उन्होंने पोलीएथलीन ऑक्साइड मेट्रिक्स और डेक्सट्रान नामक कार्बोहाइड्रेट से बनी स्याही का उपयोग किया। पोलीएथलीन ऑक्साइड मेट्रिक्स में डेक्सट्रान को इंजेक्ट करके जो आकृति बनी वह 10 दिनों तक टिकी रही। इसके अलावा इस तकनीक की खासियत यह भी है कि तरल मेट्रिक्स में इंक इंजेक्ट करते समय यदि कोई गड़बड़ी हो जाए तो इंजेक्शन की नोज़ल इसे मिटा सकती है और दोबारा बना सकती है। एक बार प्रिंटिंग पूरी हो जाने पर उसकी आकृति वाले हिस्से पर पोलीविनाइल अल्कोहल डालकर उसे फिक्स कर दिया जाता है। शोध पत्रिका एडवांस्ड मटेलियल में प्रकाशित इस नई तकनीक की मदद से शोधकर्ताओं ने कई जटिल रचनाएं प्रिंट की हैं: बवंडर की भंवरें, सिंगल और डबल कुंडलियां, शाखित वृक्ष और गोल्डफिश जैसी आकृति। वैज्ञानिकों के अनुसार जल्द ही स्याही में जीवित कोशिकाओं को डालकर इस तकनीक की मदद से जटिल ऊतक बनाए जा सकेंगे। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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