एक स्तर पर हर कोई जानता है कि वह मरने वाला है। इस्राइल के बार इलान विश्वविद्यालय के अध्ययनकर्ताओं की परिकल्पना थी कि जब बात खुद की मृत्यु की आती है तब हमारे मस्तिष्क में ऐसा कुछ है जो “पूर्ण समाप्ति, अंत, शून्यता” जैसे विचारों को समझने से इन्कार करता है।
इस्राइल के एक शोधकर्ता याइर डोर-ज़िडरमन का यह अध्ययन एक ओर मृत्यु के शाश्वत सत्य और मस्तिष्क के सीखने के तरीके के बीच तालमेल बैठाने का एक प्रयास है। उनका मानना है कि हमारा मस्तिष्क ‘पूर्वानुमान करने वाली मशीन’ है जो पुरानी जानकारी का उपयोग करके भविष्य में वैसी ही परिस्थिति में होने वाली घटनाओं का अनुमान लगाता है। यह जीवित रहने के लिए महत्वपूर्ण है। एक सत्य यह है कि एक न एक दिन हम सबको मरना है। तो हमारे मस्तिष्क के पास कोई तरीका होना चाहिए कि वह स्वयं हमारी मृत्यु का अनुमान लगा सके। लेकिन ऐसा होता नहीं है।
इस विषय पर अध्ययन करने के लिए शोधकर्ताओं ने 24 लोगों को चुना और यह समझने की कोशिश की कि स्वयं उनकी मृत्यु के मामले में उनके मस्तिष्क का पूर्वानुमान तंत्र कैसे काम करता है।
ज़िडरमैन और उनकी टीम ने मस्तिष्क के एक विशेष संकेत पर ध्यान दिया जो ‘अचंभे’ का द्योतक होता है। यह संकेत दर्शाता है कि मस्तिष्क पैटर्न को देख रहा है और उनके आधार पर भविष्यवाणी कर रहा है। उदाहरण के लिए, यदि आप किसी व्यक्ति को संतरे के तीन चित्र दिखाते हैं और फिर उसके बाद एक सेब का चित्र दिखाते हैं तब मस्तिष्क में ‘अचंभे’ का संकेत पैदा होता है क्योंकि पूर्व पैटर्न के आधार पर भविष्यवाणी संतरा देखने की थी।
टीम ने वालंटियर्स को चेहरों की तस्वीरें दिखार्इं – या तो उनका अपना या किसी अजनबी का। इन सभी तस्वीरों के साथ कुछ नकारात्मक शब्द या मृत्यु से जुड़े शब्द, जैसे ‘कब्र’ जोड़े गए थे। इसी दौरान मैग्नेटोएनसेफेलोग्राफी की मदद से इन वालंटियर्स की मस्तिष्क की गतिविधियों को मापा गया।
किसी चेहरे को मृत्यु सम्बंधी शब्दों से जोड़ना सीखने के बाद, वालंटियर्स को एक अलग चेहरा दिखाया गया। ऐसा करने पर उनके मस्तिष्क में ‘अचंभा’ संकेत देखा गया। क्योंकि उन्होंने एक विशिष्ट अजनबी चेहरे के साथ मृत्यु की अवधारणा को जोड़ना सीख लिया था, एक नया चेहरा दिखाई देने पर वह आश्चर्यचकित थे।
लेकिन एक दूसरे परीक्षण में वालंटियर्स को मृत्यु शब्द के साथ उनकी अपनी तस्वीर दिखाई गई। इसके बाद जब उनको एक अलग चेहरे की तस्वीर दिखाई गई तब मस्तिष्क ने ‘अचंभा’ संकेत नहीं दिया। यानी जब एक व्यक्ति को खुद की मौत से जोड़ने की बात आई तब उसके भविष्यवाणी तंत्र ने काम करना बंद कर दिया।
दिक्कत यह है कि जैव विकास की प्रक्रिया में चेतना का जन्म हुआ और इसके साथ ही हम समझने लगे कि मृत्यु अवश्यंभावी है। कुछ सिद्धांतकारों के अनुसार, मृत्यु के बारे में जागरूकता से प्रजनन की संभावना कम हो सकती है क्योंकि आप मौत से डरकर जीवन साथी चुनने के लिए आवश्यक जोखिम नहीं उठाएंगे। एक परिकल्पना है कि दिमाग के विकास के साथ मौत जैसी वास्तविकता से इन्कार करने की क्षमता विकसित होना अनिवार्य था। अध्ययन के निष्कर्ष जल्द ही न्यूरोइमेज जर्नल में प्रकाशित किए जाएंगे। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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