खगोल विज्ञानियों को ऐसा लगता है कि हमारे सौरमंडल में नेप्च्यून से परे एक और ग्रह सूर्य की परिक्रमा कर रहा है। इस ग्रह को कोई भी देख नहीं पाया है इसलिए हाल ही में खगोल विज्ञानियों ने यह सुझाव दिया है कि यह बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल वगैरह की तरह पारंपरिक ग्रह न हो कर शायद कुछ और हो! इससे पहले कुछ इसे प्लेनेट नाइन तो कुछ प्लेनेट एक्स कह रहे थे।
हाल ही में खगोल विज्ञानियों ने यह दावा किया है एक कारण यह भी हो सकता है कि इस नौवें ग्रह को अब तक की सबसे उन्नत दूरबीन से भी इसलिए नहीं देखा जा सका है, क्योंकि यह ग्रह न होकर एक ब्लैक होल है। दरअसल ब्लैक होल अत्यधिक घनत्व तथा द्रव्यमान वाले ऐसे पिंड होते हैं, जो आकार में तो बहुत छोटे होते हैं मगर इनके अंदर गुरुत्वाकर्षण बल इतना ज़्यादा होता है कि इनके चंगुल से प्रकाश की किरणों का भी बच निकलना नामुमकिन होता है। चूंकि यह प्रकाश की किरणों को भी अवशोषित कर लेता है, इसलिए यह हमारे लिए अदृश्य बना रहता है।
खगोल विज्ञानियों को एक अरसे से ऐसा लगता रहा है कि सौरमंडल के बिलकुल बाहरी किनारे पर, जहां से हमारी आकाशगंगा शुरू होती कही जा सकती है, एक ऐसा विशाल पिंड होना चाहिए, जिसका द्रव्यमान हमारी पृथ्वी से 5 से 10 गुना ज़्यादा है। उसे अभी देखा नहीं गया है, लेकिन खगोलीय गणनाएं यही इशारा करती हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि हमारे सौरमंडल की बाहरी सीमा से परे ऊर्ट-बादल से हो कर गुज़र रहे धूमकेतु (कॉमेट) जिस तरह सौरमंडल की सीमा के भीतर खिंच जाते हैं, उससे यही लगता है कि वहां हमारी पृथ्वी से भी शक्तिशाली कोई विशाल पिंड है। वह अपने गुरुत्वाकर्षण बल से इन धूमकेतुओं को अपने रास्ते से विचलित कर सकता है। एक डच वैज्ञानिक यान हेंड्रिक ऊर्ट ने 1950 में इस बादल के होने की संभावना जताई थी। हिसाब लगाया गया है कि यह बादल सौरमंडल की बाहरी सीमा से परे 1.6 प्रकाश वर्ष की दूरी तक फैला हुआ है।
इंग्लैंड के डरहम युनिवर्सिटी के जैकब शोल्ट्ज़ और शिकागो के इलिनॉय युनिवर्सिटी के जेम्स अनविन ने हाल ही में यह नया सिद्धांत प्रस्तावित किया है कि प्लेनेट नाइन या प्लेनेट एक्स एक आदिम ब्लैक होल है। सूर्य से लगभग 10 गुना अधिक द्रव्यमान वाले तारों का हाइड्रोजन और हीलियम रूपी र्इंधन खत्म हो जाता है, तब उन्हें फैलाकर रखने वाली ऊर्जा भी खत्म जाती है और वे अत्यधिक गुरुत्वाकर्षण के कारण सिकुड़कर अत्यधिक सघन पिंड यानी ब्लैक होल बन जाते हैं। हम आम तौर पर ब्लैक होल शब्द का इस्तेमाल इन्हीं भारी-भरकम खगोलीय पिंडों के लिए करते हैं। मगर, आदिम ब्लैक होल के बारे में वैज्ञानिकों की मान्यता है कि इनका निर्माण ब्राहृांड की उत्पत्ति यानी बिग बैंग के समय हुआ होगा। और ये ब्लैक होल आकार में बहुत छोटे होते हैं। स्टीफन हॉकिंग का ऐसा मानना था कि इन ब्लैक होल्स के अध्ययन से ब्राहृांड की शुरुआती अवस्थाओं के बारे में पता लगाया जा सकता है।
हालिया शोध के मुताबिक इस आदिम ब्लैक होल ने सौरमंडल के बड़े ग्रहों की कक्षाओं को सूर्य के सापेक्ष 6 डिग्री तक झुका दिया है। इस ब्लैक होल की कक्षा काफी चपटी है। यह वर्तमान में अपनी कक्षा में सूर्य से अधिकतम दूरी के आसपास है। इसका परिभ्रमण काल 20 हज़ार वर्ष होना चाहिए। वैज्ञानिकों ने आकाश में 20 डिग्री गुना 20 डिग्री अर्थात 400 वर्ग डिग्री का एक क्षेत्र चिंहित किया है जिसके भीतर यह मौजूद हो सकता है। कंप्यूटर गणनाओं से यह भी पता चला है कि यह ब्लैक होल हमारे सूर्य की परिक्रमा करते हुए हर तीन करोड़ वर्षों पर धूमकेतुओं से भरे ऊर्ट बादल में उथल-पुथल मचाता है।
बहरहाल, अगर प्लेनेट नाइन वास्तव में एक ब्लैक होल है तो इसे खोजना किसी ग्रह को खोजने से बड़ी चुनौती होगी। मगर ध्यान देने वाली ज़रूरी बात यह है कि ब्लैक होल के आसपास का प्रभामंडल उच्च ऊर्जा फोटॉन प्रसारित करेगा और यह एक्स-रे और गामा किरणों के रूप में दिखाई देगा, जिससे इसकी मौजूदगी की पुष्टि की जा सकेगी। अगर हमारे सौर मंडल में ब्लैक होल की मौजूदगी साफ हो जाएगी, तो इससे सौर मंडल के मौजूदा मॉडल में बड़े बदलाव की ज़रूरत होगी! (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : http://www.astronomy.com/-/media/Images/News%20and%20Observing/News/2019/09/planet9cluster.jpg?mw=600