न्यूज़ीलैण्ड से मिले एक समाचार के मुताबिक पेड़ एक-दूसरे के साथ पोषण और पानी जैसे संसाधन मिल-बांटकर इस्तेमाल करते हैं। दरअसल, शोधकर्ताओं को न्यूज़ीलैण्ड के नॉर्थ आईलैण्ड के वाइटाकेरे जंगल में एक पेड़ का ठूंठ मिला। उन्हें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि उस ठूंठ में न तो कोई शाखा थी और न ही पत्तियां मगर वह जीवित था।
उपरोक्त कौरी पेड़ (Agathis australis) का ठूंठ पारिस्थिकीविद सेबेस्टियन ल्यूज़िंगर और मार्टिन बाडेर की नज़रों में संयोगवश ही आया था। वे देखना चाहते थे कि क्या यह ठूंठ आसपास के पड़ोसियों के दम पर ज़िन्दा है। वैसे वैज्ञानिक बरसों से यह सोचते आए हैं कि कई पेड़ों के ठूंठ अपने पड़ोसियों के दम पर ही बरसों तक जीवित बने रहते हैं मगर इस बात का कोई प्रमाण नहीं था।
शोधकर्ताओं के लिए यह उक्त विचार की जांच का अच्छा मौका था। एक बात तो उन्होंने यह देखी कि इस ठूंठ में रस का प्रवाह हो रहा था जिसकी अपेक्षा आप किसी मृत पेड़ में नहीं करते। जब उन्होंने उस ठूंठ और आसपास के पेड़ों में पानी के प्रवाह का मापन किया तो पाया कि इनमें कुछ तालमेल है। इससे लगा कि संभवत: आसपास के पेड़ों ने इस ठूंठ को जीवनरक्षक प्रमाणी पर रखा हुआ है। यह आश्चर्य की बात तो थी ही, मगर साथ ही इसने एक सवाल को जन्म दिया – आखिर आसपास के पेड़ ऐसा क्यों कर रहे हैं?
यह ठूंठ तो अब उस जंगल की पारिस्थितिकी का हिस्सा नहीं है, कोई भूमिका नहीं निभाता है, तो पड़ोसियों को क्या पड़ी है कि अपने संसाधन इसके साथ साझा करें। ल्यूज़िंगर के दल का ख्याल है कि इस ठूंठ का जड़-तंत्र आसपास के पेड़ों के साथ जुड़ गया है। पेड़ों में ऐसा होता है, यह बात तो पहले से पता थी। ऐसे जुड़े हुए जड़-तंत्र से पेड़ पानी व अन्य पोषक तत्वों का लेन-देन कर सकते हैं और पूरे समुदाय को एक स्थिरता हासिल होती है।
जीवित पेड़ों के बीच इस तरह की साझेदारी से पूरे समुदाय को फायदा होता है मगर एक ठूंठ के साथ साझेदारी से क्या फायदा। शोधकर्ताओं का मत है कि इस ठूंठ का यह जुड़ाव उस समय बना होगा जब वह जीवित पेड़ था। पेड़ के मर जाने के बाद भी वह जुड़ाव कायम है और ठूंठ को पानी मिल रहा है। है ना जीवन बीमा का मामला – जीवन में भी, जीवन के बाद भी। iScience शोध पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन से लगता है कि पेड़ों के बीच कहीं अधिक घनिष्ठ सम्बंध होते हैं। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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