इटली के आल्प्स पर्वतीय क्षेत्र में चार इंजनों वाला एक टर्बाइन चालित विमान उड़ान भर रहा था। विमान ने 1524 मीटर की ऊंचाई से गोता लगाया। इससे पहले कि वह फिर से अपनी सही अवस्था में आए, विमान सिर्फ 90 सेकंड में 213 मीटर की ऊंचाई तक आ चुका था। कुछ ही मिनटों में वह स्विट्ज़रलैंड के सेंट गाटहार्ड दर्रे में ऊपर-नीचे होता हुआ अपने पूर्व निश्चित लक्ष्य की ओर उड़ान भर रहा था। वह चारों ओर से बहुत ही खराब मौसम से घिर चुका था। 7 घंटे से भी अधिक समय तक यह विमान हिचकोले भरता हुआ आल्प्स के इर्द-गिर्द उड़ता रहा और अंत में भूमध्य सागर तथा 4 देशों की सीमाएं पार कर जेनेवा के कोयनट्रिन हवाई अड्डे पर उतरा।
विमान में सवार युरोप और अमरीका के 12 वायुमंडलीय वैज्ञानिकों में से किसी के भी चेहरे पर परेशानी का भाव नहीं था। उनके लिए यह कष्टकारी उड़ान उनके मिशन का एक हिस्सा थी। एल्पाइन एक्सपेरिमेंट (एलपेक्स) के अंतर्गत उड़ान भर रहे इस विमान का उद्देश्य यह अध्ययन करना था कि पर्वतमालाएं एक बड़े क्षेत्र के मौसम को किस तरह प्रभावित करती हैं। इस कार्य के लिए विमान में पूरी प्रयोगशाला थी जिसमें वायु गति मापने से ले कर बादलों में पानी की मात्रा आदि सभी चीज़ें दर्ज करने के लिए कंप्यूटर व अनेक सूक्ष्म यंत्र लगे हुए थे जो उन कारणों का पता लगा रहे थे जिनसे आल्प्स के मौसम से तेज़ हवाएं पैदा होती हैं और दक्षिण फ्रांस से होती हुई इटली के एड्रियाटिक सागर तट पर पहुंच कर तबाही मचाती हैं।
किसी भी वैज्ञानिक चुनौती की अपेक्षा मौसम की भविष्यवाणी करना अधिक रहस्यमय है। खेती-बाड़ी, परिवहन, जहाज़रानी, उड्डयन और यहां तक कि सैर-सपाटे के लिए भी मौसम की पूर्व जानकारी होना महत्वपूर्ण है। अनुमान है कि अकेले पश्चिमी युरोप के लिए ही मौसम की 7 दिन की पूर्ण विश्वसनीय भविष्यवाणी करने से हर साल करोड़ों डॉलर का फर्क पड़ जाता है।
मनुष्य सदियों से मौसम की भविष्यवाणी करने का प्रयास कर रहा है। युरोप के कुछ देशों में तो वर्षा और तापमान के 300 वर्ष पुराने रिकार्ड मिले हैं। परंतु पुराने समय के मौसम वैज्ञानिक बड़े-बड़े यंत्रों और गणना करने की उच्च क्षमता के बिना अपने अनुभवों के आधार पर ही भविष्यवाणियां किया करते थे।
लगभग 60 वर्ष पहले ब्रिटिश वैज्ञानिक एल. एफ. रिचर्डसन ने यह प्रमाणित किया कि भौतिकी के नियमों पर आधारित गणित के समीकरणों की सहायता से मौसम की भविष्यवाणी की जा सकती है। परंतु रिचर्डसन ने एक छोटे से इलाके के मौसम की 6 घंटे पहले भविष्यवाणी करने का जो प्रयास किया, उसकी गणना करने में उन्हें कई सप्ताह तक कड़ी मेहनत करनी पड़ी। अपने इस प्रयास के उपरांत वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि पूरे विश्व के मौसम की निरंतर भविष्यवाणी करने के लिए 64,000 व्यक्तियों को गणना करने वाली साधारण मशीनों पर लगातार काम करते रहना होगा।
1950 में गणितज्ञ जान फॉन नॉइमान और उनके सहयोगियों ने इस समस्या को कंप्यूटर की मदद से हल किया। आज के सशक्त और तेज़ कंप्यूटर तो इस विधि के मुख्य आधार हैं। लेकिन उन्नत तकनीकों ने मौसम के पूर्वानुमान को अत्यधिक खर्चीला बना दिया है। दुनिया की समस्त मौसम विज्ञान सेवाओं को चलाने की सालाना लागत दो अरब डॉलर से अधिक है।
आफनबाक (पश्चिमी जर्मनी) स्थित प्रेक्षणशाला में पूरी कमान कंप्यूटरों के हाथ में है। यहां विश्व के 9000 से अधिक केंद्रों से वायु की दिशा, आद्रता और वायु दाब के बारे में सूचनाएं एकत्र कर कंप्यूटर में डाली जाती हैं। कभी-कभी तो हज़ारों किलोमीटर दूर दर्ज किए गए आंकड़े भी घंटे भर के अंदर कंप्यूटर में भर दिए जाते हैं। जेनेवा स्थित विश्व मौसम विज्ञान संगठन विभिन्न देशों से तथा विमान चालकों, व्यापारिक जहाज़ों और मौसम उपग्रहों से प्राप्त मौसम के सैकड़ों नक्शे जारी करता है। युरोप का मौसम उपग्रह मेटियोसैट-2 भूमध्य रेखा के ऊपर 36,000 कि.मी. की ऊंचाई से हर आधे घंटे बाद वायुमंडल के चित्र भेजता है।
उपग्रहों द्वारा मौसम के बारे में एकत्रित की गई जानकारी हमें अंकों के रूप में प्राप्त होती है। इन अंकों में वायुमंडल की निश्चित समय की परिस्थितियों का पूर्ण विवरण होता है। इस विवरण से कंप्यूटर पूरे वायुमंडल का एक काल्पनिक चित्र तैयार करता है। इस चित्र में विभिन्न स्थान बिंदुओं की सहायता से दर्शाए जाते हैं। इस मानचित्र को गणित समीकरणों की बहुत ही जटिल प्रणाली में फिट किया जाता है। इसी से यह पता चलता है कि प्रत्येक बिंदु पर मौसम में कैसा-कैसा परिवर्तन होगा।
ऐसा माना जाता है कि इंग्लैंड के रीडिंग शहर में स्थित युरोपियन सेंटर फॉर मीडियम रेंज वेदर फोरकास्ट (ईसीएमडब्लूएफ) मौसम की भविष्यवाणी करने वाला सर्वश्रेष्ठ केंद्र है। इस केंद्र में लगा शक्तिशाली कंप्यूटर प्रति दिन लगभग 8 करोड़ सूचनाएं प्राप्त करता है तथा प्रति सेकंड एक साथ 5 करोड़ क्रियाएं कर सकता है।
मध्यम दूरी के मौसम की भविष्यवाणी करना किसी भी अकेले देश के तकनीकी और वित्तीय साधनों के बस के बाहर है, अत: यह केंद्र स्थापित किया गया। केंद्र के निदेशक के अनुसार, बादलों के लिए राष्ट्रों की सीमाओं का कोई महत्व नहीं है। अब 5-6 दिन तक के मौसम की सही भविष्यवाणी की जा सकती है। पहले केवल 2-3 दिन की भविष्यवाणी सही होती थी।
मौसम के बारे में दो-तीन दिन पहले की सूचना भी बहुत महत्वपूर्ण हो सकती है। नवंबर में जब इटली के दक्षिणी भाग में भूकंप आया तो ईसीएमडब्लूएफ ने आने वाले सप्ताह के दौरान ठंडे मौसम और तेज़ तूफान आने की बिलकुल सही भविष्यवाणी की थी। स्थानीय अधिकारी सचेत हो गए कि ढाई लाख बेघर भूकंप पीड़ितों के लिए गरम कपड़ों और शरण स्थलों की आवश्यकता होगी।
ईसीएमडब्लूएफ तथा अन्य सभी राष्ट्रीय केंद्रों द्वारा इस्तेमाल में लाए जाने वाले कंप्यूटर मॉडलों की बराबर सूक्ष्म ट्यूनिंग की जाती है ताकि वे सटीक काम करें। कई मौसम कार्यालयों में और भी सूक्ष्म ग्रिड लगाए गए हैं ताकि छोटे-छोटे क्षेत्रों के बारे में भविष्यवाणी की जा सके। कहते हैं कि 1982 में मध्य फ्रांस में तबाही मचाने वाले बर्फीले तूफान के बारे में पहले से भविष्यवाणी नहीं की जा सकी थी क्योंकि वह इलाका ग्रिड के हिसाब से बहुत ही छोटा था।
इसके बाद फ्रांस में सूक्ष्म ग्रिड इस्तेमाल किया जाने लगा जो बहुत कम दूरी पर स्थित बिंदुओं को भी अलग-अलग दर्शा सकता है। मौसम वैज्ञानिकों का लक्ष्य इन मॉडलों को और अधिक सटीक बनाना तथा पूर्वानुमान लगाने की सीमा को 10 दिन तक बढ़ाना है।
वैज्ञानिक मौसम की भविष्यवाणी के दूसरे पहलुओं पर भी काम करने लगे हैं। जैसे बहुत ही कम अवधि यानी कुछ ही घंटों के मौसम की जानकारी देना। इसे ‘नाऊकास्टिंग’ यानी तत्काल पूर्वानुमान कहते हैं। अलबत्ता, अल्प अवधि की ये भविष्यवाणियां पूरी तरह पक्की नहीं होतीं। जैसे ब्रिाटेन का मौसम कार्यालय आसमान साफ रहने या कहीं-कहीं वर्षा होने की भविष्यवाणी तो कर सकता है परंतु ठीक-ठीक नहीं बता सकता कि छिटपुट वर्षा कहां होगी तथा कहां ज़्यादा होगी।
इन प्रश्नों के उत्तर नाऊकाÏस्टग द्वारा दिए जा सकते हैं। राडार और उपग्रहों से प्राप्त संकेतों के ज़रिए स्थानीय मौसम के बारे में 6 घंटे पहले भविष्यवाणी की जा सकती है। आंकिक मॉडल से मौसम सम्बंधी जानकारी जहां हमें केवल वायुमंडल के तापमान, नमी और हवा की दिशा के रूप में मिलती है, वहां राडार की आंखें वर्षा को भी देख सकती हैं तथा कुछ किलोमीटर तक उसकी स्थिति दर्शा सकती है। उपग्रहों से प्राप्त इंफ्रारेड चित्रों और राडार की मदद से मौसम वैज्ञानिक बिजली गिरने अथवा जल प्लावन जैसी छोटी-मोटी घटनाओं के बारे में भविष्यवाणी कर सकते हैं। इसके अलावा कंप्यूटरों द्वारा यह भी मालूम कर सकते हैं कि वर्षा तूफान का रुख किधर होगा तथा उसकी तीव्रता में क्या-क्या परिवर्तन आ सकते हैं।
बहुत ही छोटे क्षेत्रों के मौसम का अध्ययन दक्षिण फ्रांस के तूलूज स्थित न्यू मेटियोरलॉजिकल नेशनल सेंटर में भी किया जाता है। इस केंद्र में अनुसंधानकर्ता जिस स्केल मॉडल की सहायता से परीक्षण करते हैं, वह स्थानीय क्षेत्रों की रूपरेखा का आंकिक मॉडल न हो कर भौतिक मॉडल है। 10 मीटर लंबे और 3 मीटर चौड़े इन मॉडलों को पानी के एक बड़े टैंक में रखा जाता है। इसके बाद पानी में हलचल पैदा की जाती है ताकि मॉडल के ऊपर और आसपास से पानी ठीक उसी तरह गुज़रे जिस तरह वास्तविक पर्वतों और घाटियों में से हवा गुज़रती है। अनुसंधानकर्ता लेसर किरणों की सहायता से पानी के वेग और हलचल को माप कर उसके आधार पर स्थानीय मौसम का एक विस्तृत मानचित्र तैयार कर लेते हैं।
मौसम की भविष्यवाणी के क्षेत्र में प्रगति धीमी अवश्य है, लेकिन नाऊकॉस्टिंग से लेकर मध्यम दूरी की भविष्यवाणी तक का दृष्टिकोण मौसम विज्ञान की प्रगति के लिए अति महत्वपूर्ण है। एलपेक्स के वैज्ञानिक डॉ. योआकिम क्यूटनर का कहना है, ‘जब तक आप यह नहीं समझेंगे कि मौसम की रचना कैसे होती है, तब तक आप उसकी सही-सही भविष्यवाणी नहीं कर सकते।’ (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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