अठारवीं सदी में शिपवर्म (एक प्रकार का कृमि) ने लोगों को काफी परेशान किया था। जहाज़ों को डुबाना, तटबंधों को खोखला करना और यहां तक कि समुद्र की लहरों से बचाव करने वाले डच डाइक को भी खा जाना इस कृमि की करामातें थी। लकड़ी इनकी खुराक है। शोधकर्ताओं ने हाल ही में एक ऐसे शिपवर्म की खोज की है जिसका आहार लकड़ी नहीं बल्कि पत्थर है। मीठे पानी में पाया जाने वाला यह मोटा, सफेद, और कृमि जैसा दिखने वाला जीव एक मीटर तक लंबा हो सकता है। शोधकर्ताओं ने इस प्रजाति (Lithoredo abatanica) को पहली बार 2006 में फिलीपींस स्थित अबाटन नदी के चूना पत्थर में अंगूठे की साइज़ के बिलों में देखा था। लेकिन इस जीव का विस्तार से अध्ययन 2018 में किया गया।
चट्टान को चट करने वाला यह शिपवर्म लकड़ीभक्षी शिपवर्म से काफी अलग है। प्रोसीडिंग्स ऑफ दी रॉयल सोसाइटी बी में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार सभी शिपवर्म वास्तव में कृमि नहीं बल्कि क्लैम होते हैं। इनमें दो सिकुड़े हुए कवच रूपांतरित होकर बरमे की तरह काम करते हैं। लकड़ी खाने वाले कृमि के कवच पर सैकड़ों तेज़ अदृश्य दांत होते हैं वहीं चट्टान खाने वाले कृमि में दजऱ्न भर मोटे, मिलीमीटर साइज़ के दांत होते हैं जो चट्टान को खरोंचने में सक्षम होते हैं।
लकड़ीभक्षी समुद्री शिपवर्म में विशेष पाचक थैली होती है जहां बैक्टीरिया लड़की को पचाते हैं। अन्य शिपवर्म की तरह चट्टान खाने वाले शिपवर्म भी कुतरे हुए पदार्थ को निगलते ज़रूर हैं लेकिन इसमें पाचक थैली और बैक्टीरिया का अभाव रहता है। चट्टान के चूरे से इन्हें कोई पोषण नहीं मिलता। पोषण के लिए वे पिछले सिरे से चूसे गए भोजन के भरोसे रहते हैं जिसे गलफड़ों में उपस्थित बैक्टीरिया पचाते हैं। बहरहाल, लकड़ीभक्षी और चट्टानभक्षी शिपवर्म में एक समानता है। दोनों काफी नुकसान कर सकते हैं। लकड़ीभक्षी ने तो जहाज़ों और लकड़ी से बनी अन्य रचनाओं को तहस-नहस किया था और दूसरा चट्टान को खोखला कर नदी के रास्ते को भी बदल सकता है। लेकिन इसका एक उजला पक्ष भी है। कृमि द्वारा बनाई गई दरारें केकड़ों, घोंघों और मछलियों के लिए बेहतरीन घर होते हैं। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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