नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक हालिया लेख में उन तरीकों पर प्रकाश डाला गया है जिनसे विभिन्न भारतीय बायोटेक कंपनियां सरकार और मुक्त-प्रवाह उद्यम पूंजी (वेंचर केपिटल) की मदद से नवाचार का कारोबार कर रही हैं। इस लेख की शुरुआत एक युवा भारतीय उद्यमी द्वारा दो बायोटेक स्टार्टअप कंपनियों की स्थापना के वर्णन से होती है। इसमें से उसकी एक कंपनी डायरेक्ट-टू-कंज्यूमर (डीटीसी) आनुवंशिक परीक्षण कंपनी, पर ध्यान केंद्रित किया गया है। इस लेख का उद्देश्य भारत में डीटीसी आनुवंशिक परीक्षणों से जुड़े उभरते नैतिक, सामाजिक और नियामक मुद्दों का विश्लेषण करना है।
डीटीसी जेनेटिक टेस्ट का उद्भव
आनुवंशिक परीक्षण के व्यवसाय का श्रेय मानव जीनोम प्रोजेक्ट को दिया जाता है। मानव जीनोम प्रोजेक्ट की शुरुआत आधिकारिक तौर पर 1990 में हुई थी जिसका उद्देश्य मानव जीनोम के पूरे डीएनए अनुक्रम का मानचित्र तैयार करना था। 2003 तक पूरे मानव जीनोम का अनुक्रमण कर लिया गया था। और इसके साथ ही डीटीसी जेनेटिक्स के व्यापार का रास्ता खुल गया। जब मानव जीनोम परियोजना शुरू की गई थी, तब यह वादा किया गया था कि जीनोम अनुक्रम के ज्ञान से बीमारी और मानव जीव विज्ञान को समझने में मदद मिलेगी।
इस ज्ञान का फायदा उठाने के लिए, वर्ष 2007 में तीन कंपनियों ने संयुक्त राज्य अमेरिका में अपनी उपभोक्ता आनुवंशिक सेवाएं शुरू कीं। ये तीन कंपनियां थीं 23एंडमी (23andMe), डीकोडमी (deCODEMe) और नेवीजेनिक्स (Navigenics)। बाद के वर्षों में, कई अन्य कंपनियों ने संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत सहित दुनिया के कई हिस्सों में जीनोमिक्स सेवाएं प्रदान करना शुरू कर दिया।
पिछले कुछ वर्षों में भारत में कई सारी डीटीसी आनुवंशिक परीक्षण कंपनियां उभरी हैं। कुछ उल्लेखनीय नाम हैं: मैपमायजीनोम (Mapmygenome), दी जीनबॉक्स (The GeneBox), डीएनए लैब्स इंडिया (DNA Labs India), इंडियन बायोसाइंसेस (Indian Biosciences), पॉजि़टिव बायोसाइंसेस (Positive Biosciences), एक्सकोड (Xcode) और इज़ीडीएनए (EasyDNA)। ये कंपनियां जनता को विभिन्न जीनोमिक्स सेवाएं प्रदान करती हैं। इनमें व्यक्तिगत जीनोमिक्स (व्यक्ति पर दवा प्रतिक्रिया का प्रोफाइल, पोषण सम्बंधी आवश्यकताएं, किसी रोग का अंदेशा), नैदानिक (गर्भधारण से पूर्व स्क्रीनिंग), न्यूट्रिजीनोमिक्स (डीएनए आधारित आहार योजना), फिटनेस, खेलकूद, पितृत्व, वंश और फार्माकोजेनेटिक्स (दवाओं की प्रतिक्रिया में मरीज की आनुवंशिकी की भूमिका) जैसे परीक्षण शामिल हैं। आम लोग जेनेटिक टेस्ट किट ऑनलाइन कंपनियों की वेबसाइट्स या अमेज़न जैसी ई-कॉमर्स कंपनियों के माध्यम से खरीद सकते हैं। टेस्ट के प्रकार के आधार पर एक टेस्ट की लागत 3,000 से लेकर 1,20,000 रुपए तक है।
डीएनए का नमूना (लार या गाल का फाहा) जमा करने के बाद कुछ ही दिनों में उपभोक्ता को परिणाम प्राप्त हो जाते हैं। पश्चिम देशों की तरह, भारत में भी डीटीसी आनुवंशिक परीक्षणों के प्रसार ने कई वैज्ञानिक, नैतिक, सामाजिक और नियामक मुद्दों को जन्म दिया है। जैसे निदान की वैधता और उपयोगिता, आनुवंशिक नियतिवाद और जीनोमिक्स डैटा का संभावित दुरुपयोग। इसके अलावा, कई कंपनियों की विपणन रणनीति ने भारत में वैज्ञानिक कामकाज की प्रकृति के बारे में कई सवाल उठाए हैं।
विपणन रणनीति की नैतिकता
जहां चिकित्सा आचार संहिता तथा विज्ञापन कानून का क्रियांवयन व अनुपालन कमज़ोर तरीके से किया जाता है, वहां डीटीसी आनुवंशिक परीक्षणों के लिए किसी दिशानिर्देश या नियम-कायदों के अभाव में, कंपनियां अपने परीक्षण के लाभों के बारे में अतिरंजित दावे करने के लिए स्वतंत्र हैं। वे आम लोगों की सामाजिक और सांस्कृतिक मान्यताओं का फायदा उठाने के लिए अपने उत्पादों को गलत तरीके से प्रस्तुत कर सकती हैं। उदाहरण के लिए, एक कंपनी ने व्यवसाय रणनीति के रूप में, जीनोमिक्स को ज्योतिष के साथ जोड़ दिया है ताकि अपने परीक्षणों को खरीदने के लिए उपभोक्ताओं को लुभा सके। इस उद्देश्य को मन में रखकर कंपनी ने अपने एक उत्पाद का नाम जीनोमपत्री रखा है, जो जन्मपत्री से मेल खाता है। कंपनी की सीईओ ने यूट्यूब पर एक प्रचार संदेश में ज्योतिष के महत्व पर प्रकाश डालते हुए ऑनलाइन आनुवंशिक परीक्षणों के लाभ पर ज़ोर दिया है। उन्होंने कहा है कि जिस तरह जन्मपत्री लोगों को जन्म के समय राशि, ग्रहदशा और गोत्र आदि समझने में मदद करती है, उसी तरह आनुवंशिक परीक्षण, जेनेटिक बनावट और जेनेटिक लक्षणों को समझने में मदद करेंगे, जिसमें यह भी पता चलेगा कि कोई उत्परिवर्तन तो उपस्थित नहीं है। इसके अलावा, उन्होंने विस्तार से बताया कि व्यक्ति जेनेटिक संरचना की जानकारी होने पर जीवनशैली में बदलाव के ज़रिए सकारात्मक (आनुवंशिक) लक्षणों को समृद्ध कर सकता है। उनके अनुसार, रोकथाम के ये उपाय ज्योतिष के समान ही हैं जिसमें लोग खुद को ग्रहों के बुरे प्रभाव से बचाने के लिए पूजा, यज्ञ आदि करते हैं।
उपरोक्त प्रचार संदेश को उपमा कहकर उचित ठहराया जा सकता है। जटिल वैज्ञानिक अवधारणा को आसान शब्दों में संप्रेषित करने के लिए उपमाओं का उपयोग करना एक आम बात है। हालांकि, जीनोमिक्स के संदर्भ में ज्योतिष की इस विशेष उपमा का भारत में विज्ञान के कामकाज पर दूरगामी प्रभाव पड़ सकता है। यह ध्यान देने योग्य है कि कमोबेश समूचा भारतीय वैज्ञानिक समुदाय ज्योतिष को एक छदम विज्ञान मानता है, और ज्योतिष को वैज्ञानिक मंच पर लाने के किसी भी प्रयास का कड़ा विरोध किया जाता रहा है। यह उपमा वैज्ञानिक स्वभाव की अवधारणा के विपरीत है।
इसके अतिरिक्त, कंपनियों की वेबसाइट्स पर प्रख्यात हस्तियों के प्रशंसा पत्रों का प्रकाशन चिकित्सा नैतिकता से सम्बंधित मुद्दों को भी जन्म देता है। कभी-कभी, इनमें प्रमुख राजनेताओं, उद्योगपतियों और देश की अन्य जानी-मानी हस्तियों के बयान होते हैं। क्योंकि देश के अत्यधिक प्रतिष्ठित और शिक्षित माने जाने वाले लोग इन उत्पादों की सिफारिश करते हैं, इस तरह के प्रशंसा पत्र आम जनता को गुमराह करने की क्षमता रखते हैं। उपरोक्त महत्वपूर्ण मुद्दों के अलावा, आनुवंशिक परीक्षणों के साथ प्रमुख वैज्ञानिक चिंताएं भी हैं जो विशेष रूप से भारत में प्रासंगिक हैं।
विज्ञान सम्बंधी मुद्दे
डीटीसी आनुवांशिक परीक्षणों में से कुछ परीक्षण डीएनए-आधारित आहार योजना, फिटनेस, खेलकूद, पितृत्व और वंशावली जैसे विकल्प उपलब्ध कराते हैं जो गैर-नैदानिक हैं (यानी ये किसी रोग या तकलीफ का पता नहीं लगाते)। वैसे भी, तथ्य यह है कि ये व्यक्तिगत ऑनलाइन परीक्षण किसी बीमारी की उपस्थिति या अनुपस्थिति का सटीक निदान नहीं कर सकते; ये केवल उसकी संभाविता का अनुमान लगाते हैं। ये परीक्षण किसी डॉक्टर से चर्चा किए बिना सीधे आम जनता के लिए पेश किए जाते हैं, इसलिए इस बात की काफी संभावना है कि उपभोक्ता इन परिणामों की गलत व्याख्या कर बैठेंगे। भारत में योग्य आनुवंशिक परामर्शदाताओं और आनुवंशिकीविदों की संख्या नगण्य है जिसकी वजह से स्थिति और भी पेचीदा हो जाती है।
भारत के लोगों के बारे में प्रामाणिक आनुवंशिक डैटा का अभाव है। यह डीटीसी आनुवंशिक सेवाओं के साथ एक और स्पष्ट समस्या है। इस मुद्दे को मीडिया कवरेज भी मिला है। शायद यही कारण है कि कई भारतीय कंपनियां अपने परीक्षणों में तुलना हेतु कॉकेशियन आबादी से प्राप्त डेटा का उपयोग संदर्भ-डैटा के रूप में कर रही हैं।
समापन टिप्पणी
जीनोमिक्स में नवाचारों को नैतिक, सामाजिक, वैज्ञानिक और नियामक मुद्दों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। हालांकि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद पूरी तरह से इस स्थिति से अवगत है लेकिन दुर्भाग्य से, इस समय भारत में जीनोमिक चिकित्सा के लिए कोई दिशानिर्देश या नियम नहीं हैं। भारतीय बायोमेडिकल एजेंसियों, स्वास्थ्य पेशवरों और वैज्ञानिकों को उपभोक्ताओं को संभावित स्वास्थ्य जोखिमों और डीटीसी आनुवंशिक परीक्षणों से जुड़े आर्थिक शोषण से बचाने के लिए एक नियामक ढांचा तैयार करने के लिए आगे आना होगा। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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