यह तो एक जानी-मानी टेक्नॉलॉजी बन चुकी है कि किसी स्त्री के अंडाशय को अत्यंत कम तापमान पर संरक्षित रख लिया जाए और बाद में उसे सक्रिय करके अंडाणु उत्पादन करवाया जाए। यह तकनीक उन मामलों में उपयोगी पाई गई है जब किसी स्त्री को कैंसर का उपचार करवाते हुए अंडाशय को क्षति पहुंचने की आशंका होती है। मगर पुरुषों के वृषण को इस तरह संरक्षित करके शुक्राणु उत्पादन की तकनीक का दूसरा सफल प्रयोग हाल ही में पिटसबर्ग विश्वविद्यालय में संपन्न हुआ। यह प्रयोग साइंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
इस प्रयोग में 5 रीसस बंदरों के वृषण के ऊतक निकालकर कम तापमान पर सहेज लिए गए। जब वृषण निकाले गए थे तब ये सभी बंदर बच्चे थे और इनके वृषण ने शुक्राणु निर्माण शुरू नहीं किया था। इसके बाद इन बंदरों को वंध्या कर दिया गया। इसके बाद जब ये बंदर किशोरावस्था में पहुंचे तब बर्फ में रखे वृषण-ऊतक निकालकर उन्हीं बंदरों के वृषणकोश में प्रत्यारोपित कर दिए गए, जिनसे ये निकाले गए थे।
आठ से बारह महीने बाद इन प्रत्यारोपित ऊतकों की जांच करने पर पता चला कि इनमें शुक्राणु का उत्पादन होने लगा है। इन शुक्राणुओं की मदद से 138 अंडों को निषेचित किया गया। इनमें से मात्र 16 ही ऐसे भ्रूण बने जिनका प्रत्यारोपण मादा बंदरों में किया जा सकता था। इनमें से भी मात्र एक ही गर्भावस्था तक पहुंचा और जीवित जन्म हुआ।
यह सही है कि 138 निषेचित अंडों से शुरू करके मात्र एक शिशु का जन्म होना बहुत कम प्रतिशत है लेकिन यह बहुत आशाजनक है कि अविकसित वृषण की स्टेम कोशिकाओं को सहेजकर रखा जा सकता है और वे बाद में विभेदित होकर शुक्राणु का उत्पादन कर सकती हैं। अब अगला कदम मनुष्यों के लिए इस तकनीक की उपयोगिता की जांच का होगा। (स्रोत फीचर्स)
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