कंप्यूटर और इंटरनेट के बढ़ते उपयोग से आजकल लोगों की गोपनीय जानकारी स्मार्टफोन, कंप्यूटर या किसी अन्य जगह पर डिजिटल रूप में स्टोर रहती है। जहां एक ओर लोग इन जानकारियों को महफूज़ रखने के प्रयास में होते हैं वहीं दूसरी ओर हैकर इन जानकारियों तक पहुंचने के प्रयास में होते हैं।
आजकल डैटा या उपकरणों की सुरक्षा के लिए बायोमेट्रिक पहचान प्रणाली का उपयोग किया जा रहा है। भारत में तो बड़े पैमाने पर बायोमेट्रिक पहचान प्रणाली आधार से नागरिकों की ज़रूरी जानकारी (बैंक अकाउंट, आयकर सम्बंधी सूचना वगैरह) को जोड़ा जा रहा है। किन्हीं भी दो व्यक्तियों की बायोमेट्रिक पहचान – फिंगरप्रिंट, चेहरा और आंखों की पुतली की संरचना – एक जैसी नहीं होती और ऐसा माना जाता है कि किसी व्यक्ति का फिंगरप्रिंट, चेहरा या आइरिस कोई चुरा नहीं सकता इसलिए उपकरणों और डैटा की सुरक्षा के लिए व्यक्ति की बायोमेट्रिक पहचान उपयोग करने का चलन बढ़ा है।
लेकिन हाल के शोध में पता चला है कि बायोमेट्रिक सुरक्षा प्रणाली को भी हैक किया जा सकता है।
बायोमेट्रिक सुरक्षा प्रणाली कितनी सुरक्षित है यह जांचने के लिए न्यूयॉर्क युनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक एल्गोरिद्म बनाई है। यह एल्गोरिद्म ना सिर्फ जाली फिंगरप्रिंट बना लेती है बल्कि यह एक मास्टर एल्गोरिद्म है यानि एक ऐसा फिंगरप्रिंट तैयार करती है जो किसी भी फिंगरप्रिंट के लिए काम करता है। बिल्कुल वैसे ही जैसे किसी भी ताले को खोलने के लिए एक मास्टर चाबी होती है। इस एल्गोरिद्म को डीपमास्टरप्रिंट नाम दिया है।
पहले चरण में विभिन्न फिंगरप्रिंट का विश्लेषण करके एल्गोरिद्म को फिंगरप्रिंट की विशेषता, उसकी बनावट के बारे में सीखना था। अगले चरण में एल्गोरिद्म ने कुछ मास्टर फिंगरप्रिंट के नमूने बनाए। फिर अलग-अलग सुरक्षा स्तर (निम्न, मध्यम और उच्च सुरक्षा स्तर) के फिंगरप्रिंट स्कैनर में इन मास्टर फिंगरप्रिंट की जांच की गई। शोधकर्ताओं ने पाया कि मध्यम सुरक्षा स्तर पर स्कैनर हर 5 में से एक बार यानि 20 प्रतिशत मामलों में बेवकूफ बन गया था।
मिशिगन स्टेट युनिवर्सिटी के एरन रोश का कहना है स्मार्ट फोन जैसे उपकरणों का सुरक्षा स्तर निम्न होता है। इन उपकरणों में फिंगरप्रिंट स्कैनर का सेंसर बहुत छोटा होता है। इसलिए सेंसर द्वारा पूरा फिंगरप्रिंट एक साथ मैच करने की बजाए फिंगरप्रिंट के छोटे-छोटे हिस्सों को मैच किया जाता है। यदि ये टुकड़े मैच हो जाते हैं तो उपकरण खुल जाता है। इसिलिए ये उपकरण विशेष रूप से असुरक्षित हैं।
स्विटज़रलैंड स्थित आइडिएप रिसर्च इंस्टीट्यूट के सेबेस्टियन मार्शेल की टीम भी बायोमेट्रिक सुरक्षा प्रणाली को दुरुस्त करने के लिए काम कर रही है। सेबेस्टियन मार्शेल का कहना है कि सोशल मीडिया, इंटरनेट पर लोगों द्वारा अपनी निजी तस्वीरें साझा किए जाने के कारण हैकर द्वारा बायोमेट्रिक पहचान तक पहुंचना आसान हो गया है। लेकिन लोगों की बायोमैट्रिक पहचान के साथ अन्य फैक्टर जैसे उनका रक्त प्रवाह, शरीर का तापमान या कुछ अंक वगैरह, जोड़कर डैटा को और अधिक सुरक्षित किया जा सकता है। पर ज़ाहिर है कि बायोमेट्रिक सुरक्षा अनुलंघनीय नहीं है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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