इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलुरु के वैज्ञानिकों ने हिमनद झीलों के फैलने और फूटने की भविष्यवाणी करने की एक नई तकनीक विकसित की है। वास्तव में हिमनद झीलें तब बनती हैं जब हिमनद खिसकने से खोखली जगहों में बर्फ के बड़े जमाव रह जाते हैं जिनके पिघलने से झीलों का निर्माण होता है।
अध्ययन के लिए सिक्किम की सबसे बड़ी झील, दक्षिण ल्होनाक झील, पर इस नई तकनीक को लागू किया गया। वैसे तो यह झील पहले से ही संभावित खतरे की श्रेणी में है और इस तकनीक के उपयोग से इस बात कि पुष्टि भी हो गई। नेचर इंडिया में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार दिवेचा सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज के वैज्ञानिक रेम्या नंबूदिरी ने सिक्किम स्टेट काउंसिल ऑफ साइंस एंड टेक्नॉलॉजी के साथ किए गए अध्ययन में बताया कि इस झील का आकार तेज़ी से बढ़ रहा है जो आने वाले संभावित खतरे की ओर इशारा करता है।
शोधकर्ताओं का अनुमान है कि 51.4 मीटर गहरी झील का आयतन 2015 में लगभग 6 करोड़ क्यूबिक मीटर था जो बढ़कर 9 करोड़ क्यूबिक मीटर होने की संभावना है। यदि यह झील फूट गई तो इतनी बड़ी मात्रा में पानी के अचानक बहाव से निचले इलाके में खतरनाक हालात बन सकते हैं। पूर्व में हिमालयी क्षेत्र में कई बार प्रलय की स्थिति बन चुकी है। जैसे 1926 का जम्मू-कश्मीर जलप्रलय, 1981 में किन्नौर घाटी, हिमाचल प्रदेश में बाढ़ और 2013 में केदारनाथ, उत्तराखंड का प्रकोप।
हिमनद में छिपी इन झीलों पर उपग्रहों की मदद से लगातार नज़र रखी जा रही है। किंतु रिमोट सेंसिंग से न तो झीलों की गहराई का पता लगाया जा सकता है और न ही आपदा के संभावित समय का, इसलिए शोधकर्ताओं ने झीलों के आयतन और उसके विस्तार का अनुमान और असुरक्षित स्थानों की पहचान करने के लिए हिमनद की सतह का वेग, ढलान और बर्फ के प्रवाह जैसे मापदंडों का उपयोग करते हुए एक तकनीक विकसित की है।
उन्होंने इस क्षेत्र में नौ अन्य हिमनद झीलों और तीन स्थलों का भी चित्रण किया है जहां भविष्य में नई झीलें बन सकती हैं। रिपोर्ट के अनुसार, इस तकनीक का उपयोग हिमालय के अन्य हिमनदों की निगरानी के लिए भी किया जा सकता है ताकि लोगों को अचानक आने वाली बाढ़ के बारे में पहले से चेतावनी दी जा सके। फिलहाल तो भारत के पास हिमनद झील के फूटने की कोई चेतावनी प्रणाली नहीं है लेकिन इस तकनीक की मदद से प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली को एक ऐसे मॉडल के साथ जोड़ा जा सकता है जो आकस्मिक बाढ़ के आगमन के समय की भविष्यवाणी करने में सक्षम हो। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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