हाल ही में केरल के वायनाड़ ज़िले के पश्चिमी घाट इलाके में वैज्ञानिकों को मेंढक की नई प्रजाति मिली है। इन मेंढकों के पेट नारंगी रंग के हैं। और शरीर के दोनों तरफ हल्के नीले सितारों जैसे धब्बे हैं और उंगलियां तिकोनी हैं। शोघकर्ताओं ने नेचर इंडिया पत्रिका में बताया है कि इन मेंढकों को छुपने में महारत हासिल है। ज़रा-सा भी खटका या सरसराहट होने पर ये उछल कर पत्ते या घास के बीच छुप जाते हैं।
चूंकि इनके शरीर पर सितारानुमा धब्बे हैं और ये कुरुचियाना जनजाति बहुल वायनाड़ ज़िले में मिले हैं, इसलिए शोधकर्ताओं ने इन मेंढकों को एस्ट्रोबेट्रेकस कुरुचियाना नाम दिया है।
मेंढक की यह प्रजाति सबसे पहले 2010 में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के एस.पी. विजयकुमार ने पहचानी थी। बारीकी से अध्ययन करने पर पता चला कि ये पश्चिमी घाट के अन्य मेंढकों की तरह नहीं है। इसके बाद उन्होंने युनिवर्सिटी ऑफ फ्लोरिडा के डेविड ब्लैकबर्न और जॉर्ज वाशिंगटन युनिवर्सिटी के एलेक्स पायरॉन की मदद से मेंढक की हड्डियों और जीन का विश्लेषण किया। हड्डियों की जांच में उन्होंने पाया कि यह मेंढ़क निक्टिबेट्रेकिडी कुल का है। इस कुल के मेंढकों की लगभग 30 प्रजातियां भारत और श्रीलंका में पाई जाती हैं। और जेनेटिक विश्लेषण से लगता है कि ये मेंढक 6-7 करोड़ वर्ष पूर्व अपनी करीबी प्रजातियों से अलग विकसित होने शुरू हुए थे।
यह वह समय था जब भारत अफ्रीका और मैडागास्कर से अलग होकर उत्तर की ओर सरकते हुए एशिया से टकराया था और हिमालय बना था। भारत के लंबे समय तक किसी अन्य स्थान से जुड़ाव न होने के कारण यहां नई प्रजातियों का विकास हुआ, और उन प्रजातियों को भी संरक्षण मिला जो अन्य जगह किन्हीं कारणों से लुप्त हो गर्इं।
इस नई प्रजाति के सामने आने से एक बार फिर पश्चिमी घाट जैव विविधता के हॉटस्पॉट के रूप में सामने आया है, खास तौर से उभयचर जीवों के मामले में। इस व अन्य प्रजातियों की खोज से पश्चिमी घाट के मेंढकों की विविधता के पैटर्न को समझने में मदद मिल सकती है। (स्रोत फीचर्स)
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