वर्ष 2018 का ट्यूरिंग पुरस्कार तीन शोधकर्ताओं को संयुक्त रूप से दिया गया है। ये वे शोधकर्ता हैं जिन्होंने कृत्रिम बुद्धि (एआई) की वर्तमान प्रगति की बुनियाद तैयार की थी। गौरतलब है कि ट्यूरिंग पुरस्कार को कंप्यूटिंग का नोबेल पुरस्कार माना जाता है। एआई के पितामह कहे जाने वाले योशुआ बेन्जिओ, जेफ्री हिंटन और यान लेकुन को यह पुरस्कार एआई के एक उपक्षेत्र डीप लर्निंग के विकास के लिए दिया गया है। इन तीनों द्वारा बीसवीं सदी के अंतिम और इक्कीसवीं सदी के प्रथम दशक में ऐसी तकनीकें विकसित की गई हैं जिनकी मदद से कंप्यूटर दृष्टि और वाणी पहचान जैसी उपलब्धियां संभव हुई हैं। इन्हीं के द्वारा विकसित तकनीकें ड्राइवर-रहित कारों और स्व-चालित चिकित्सकीय निदान के मूल में भी हैं।
हिंटन अपना समय गूगल और टोरोंटो विश्वविद्यालय को देते हैं, बेन्जिओ मॉन्ट्रियल विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं और लेकुन फेसबुक के एआई वैज्ञानिक हैं तथा न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं। इन तीनों ने उस समय काम किया जब एआई के क्षेत्र में ठहराव आया हुआ था। तीनों ने खास तौर से ऐसे कंप्यूटर प्रोग्राम्स पर ध्यान केंद्रित किया जिन्हें न्यूरल नेटवर्क कहते हैं। ये ऐसे कंप्यूटर प्रोग्राम होते हैं जो डिजिटल न्यूरॉन्स को जोड़कर बनते हैं। वर्तमान एआई की बुनियाद के ये प्रमुख अंश हैं। इन तीनों शोधकर्ताओं ने दर्शाया था कि न्यूरल नेटवर्क अक्षर पहचान जैसे कार्य कर सकते हैं।
तीनों शोधकर्ताओं का ख्याल है कि एआई का भविष्य काफी आशाओं से भरा है। उनका कहना है कि शायद मनुष्य के स्तर की बुद्धि तो विकसित नहीं हो पाएगी लेकिन कृत्रिम बुद्धि मनुष्य के कई काम संभालने लगेगी। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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